एक वक्त था जब सिर्फ महिलाओं को ही बांझपन का दोषी ठहराया जाता था। बच्चों के लिंग से लेकर किसी भी तरह की समस्या का जनक उन्हें बना दिया जाता था। समय बीता और महिलाओं ने चैन की सांस ली। विज्ञान के क्षेत्र में हुए शोधों ने इस तरह के कई विषयों के ऊपर से पर्दा उठा दिया। वैसे महिलाओं और पुरुषों को बांझपन से निजात दिलाने के बहुत से उपाय हैं। दवाइयां, टेस्ट, व्यायाम पुरुषों के लिए फायदेमंद साबित होते हैं।

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अमेरिका में पुरुषों की शुक्राणु संख्या कम हो जाने पर उन्हें जिंक और फॉलिक एसिड के सप्लिमेंट्स दिए जाते हैं। अभी हाल ही में किए गए एक शोध के अनुसार इस तरह के सप्लिमेंट्स उन्हें किसी भी तरह से मदद नहीं पहुंचा रहे हैं। बस ये नाम के ही हैं, इससे पुरुषों के शुक्राणुओं की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है।

अमेरिका में 15 प्रतिशत जोड़े जूझ रहे हैं बांझपन की समस्याओं से
जिंक और फॉलिक एसिड बाजार में बांझपन को दूर करने के लिए उपलब्ध सबसे आम सप्लिमेंट्स हैं। अभी जेएएमए में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार ये सप्लिमेंट्स किसी भी तरह से शुक्राणुओं की गुणवत्ता और नंबर में सुधार नहीं करते हैं। शोधकर्ताओं ने ऐसे पुरुषों को जिंक और फॉलिक एसिड के सप्लिमेंट्स खिलाए जो बांझपन से जूझ रहे थे।

उन्हें करीब छह माह तक ये दवाइयां खिलाई गईं। छह महीने के बाद 2,380 पुरुष जिन्होंने अपने पार्टनर के गर्भवती न होने पर इस तरह का ट्रीटमेंट या असली सप्लिमेंट लिए। उनमें से 35 प्रतिशत पुरुष ट्राएल के दौरान पिता बन गए। लेकिन, उनके शुक्राणुओं में छह महीने के बाद भी कोई अंतर नजर नहीं आया।

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ट्राएल के बाद आए रिजल्ट
इस स्टडी के दौरान पता चला कि फॉलिक एसिड और जिंक किसी भी तरह से वीर्य की गुणवत्ता पर असर नहीं डाल रहे हैं। इसके बाद बांझपन की दवाओं के क्षेत्र में और भी जांच करने की आवश्यकता है। बहुत से सप्लिमेंट्स को खुद पोषण सलाहकार और डॉक्टर भी पैसे की बर्बादी बताते हैं। उनके अनुसार ये दवाएं जिन तकलीफों को ठीक करने का दावा करती हैं वो सब झूठ हैं। वहीं दूसरी ओर प्रोबायोटिक सप्लिमेंट्स बस हाजमा सही करते हैं।

कुछ सप्लिमेंट्स से सेहत पर भी पड़ रहा है असर
इसी स्टडी के दौरान ये भी पता चला कि कैल्शियम सप्लिमेंट्स की वजह से मरीज के शरीर में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है। इससे उन्हें कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इस लापरवाही के पीछे सप्लिमेंट इंडस्ट्री का भी सबसे बड़ा हाथ है। उन्होंने लेजिटिमेट और सप्लिमेंट्स को एक-दूसरे से अलग नहीं किया, जिससे कई बार लोगों पर या तो कोई असर नहीं हुआ या उलटा प्रभाव पड़ा।

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