एब्सोल्यूट मोनोसाइट काउंट (एएमसी) टेस्ट क्या है?

एब्सोल्यूट मोनोसाइट काउंट (एएमसी) टेस्ट किसी व्यक्ति के रक्त में मौजूद मोनोसाइट्स की संख्या का परीक्षण करने के लिए किया जाता है। मोनोसाइट्स सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं, जिनमें एक ही न्यूक्लियस होता है और दिखावट में ये नॉन-ग्रेन्युलर (गैर-दानेदार) होते हैं। ये बोन मेरो में बनते हैं और रक्त के माध्यम से विभिन्न ऊतकों तक जाते हैं। ऊतक के अंदर जाने के बाद मोनोसाइट्स मैक्रोफेज में बदल जाते हैं। मैक्रोफेज एक तरह की फेगोसाइटिक (phagocytic) कोशिकाएं होती हैं जो कि पैथोजन को निगल कर उन्हें खत्म करती हैं। फेगोसाइटिक की भूमिका में मोनोसाइट्स मानव शरीर की एक दूसरी महत्वपूर्ण रक्षात्मक प्रतिक्रिया है। मोनोसाइट्स मृत और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं, सूक्ष्मजीवों और ऐसे पदार्थों को खून में से हटाती हैं जो रक्त में घुल नहीं पाते। मोनोसाइट्स जठरांत्र, मूत्रजनन और श्वसन तंत्र में संक्रमण होने से बचाती हैं और संक्रमण की स्थिति में जीवाणुओं से लड़ती हैं। 

एएमसी टेस्ट ट्यूबरकुलोसिस, अन्य बैक्टीरियल/वायरल संक्रमण, जलन व सूजन संबंधी स्थितियों और कैंसर की स्थितियों में रक्त में मौजूद मोनोसाइट्स की संख्या की जांच करता है। 

  1. एब्सोल्यूट मोनोसाइट काउंट (एएमसी) टेस्ट क्यों किया जाता है - Why is an Absolute monocyte count (AMC) test performed?
  2. एएमसी टेस्ट से पहले - How do you prepare for an Absolute monocyte count (AMC) test?
  3. एएमसी टेस्ट के दौरान - How is an Absolute monocyte count (AMC) test performed?
  4. एएमसी टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज - Absolute monocyte count (AMC) test results and Normal Range

एएमसी टेस्ट किसलिए किया जाता है?

मोनोसाइट्स शरीर की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया होती है। किसी भी वायरल या क्रोनिक संक्रमण और कोशिकाओं व ऊतकों में विकसित वाले कैंसर की स्थिति में मोनोसाइट्स की संख्या कम होने लगती है। ये किसी भी तरह की सूजन होने पर साइटोकिन के बनने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिससे मोनोसाइट्स की संख्या बढ़ जाती है। आमतौर पर डब्लूबीसी की गणना डिफरेंशियल काउंट (हर तरह की सफेद रक्त कोशिका के प्रतिशत की जांच) द्वारा की जाती है। लेकिन डिफरेंशियल काउंट के परिणाम 100% के बराबर आते हैं जिसका मतलब होता है कि यदि एक तरह के डबल्यूबीसी में वृद्धि हुई है तो दूसरे तरह के डबल्यूबीसी में कमी आ जाएगी। ऐसी स्वास्थ्य स्थितियां जिनमें एएमसी टेस्ट करवाने की और जिन पर नियमित रूप से नजर रखने की जरूरत होती है वे निम्न हैं:

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एएमसी टेस्ट की तैयारी कैसे करें?

टेस्ट शुरु करने से पहले ही डॉक्टर आपको टेस्ट करने का उद्देशय व उसकी प्रक्रिया के बारे में समझा देंगे। यह एक सामान्य ब्लड टेस्ट है इसके लिए भूखे रहने की जरूरत नहीं होती। हालांकि, ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें अधिक मात्रा में वसा होता है वे टेस्ट के परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। यदि आप कोई भी दवा जैसे इम्यूनोसुप्रेसेंट और ग्लुकोकोर्टिकॉइड आदि ले रहे हैं, तो इनके बारे में डॉक्टर को बताएं क्योंकि ये मोनोसाइट की संख्या को कम कर सकती हैं।

एएमसी टेस्ट कैसे किया जाता है?

डॉक्टर नस में सुई लगाकर आपकी बांह की नस से लगभग 7 mL तक खून के सैंपल ले लेंगे। सैंपल पर लेबल लगाकर आगे के टेस्ट के लिए लैब में भेज दिया जाएगा। 

टेस्ट के बाद इंजेक्शन लगी जगह पर हल्की सूजन हो सकती है या नील भी पड़ सकता है। लेकिन अगर यह ज्यादा समय तक रहता है तो जल्द से जल्द डॉक्टर को दिखा लें।

 
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एएमसी टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज

सामान्य परिणाम:
एएमसी की नॉर्मल रेंज 100-500/mm3 या 0.1-0.5 × 109 /L के बीच में होती है। हर लैब के अनुसार परिणाम की वैल्यू थोड़ी सी अलग हो सकती है।

असामान्य परिणाम:
एएमसी संक्रमण, सूजन और कैंसर से सीधे जुड़ी होती है। इसीलिए असामान्य परिणाम एएमसी में वृद्धि या कमी की तरफ संकेत करते हैं। मोनोसाइट की बढ़ी हुई मात्रा को मोनोसाइटोसिस कहा जाता है, वहीं मोनोसाइट की कम मात्रा को मोनोसाइटोपेनिया कहा जाता है। असामान्य वैल्यू निम्न हैं:

  • मोनोसाइटोसिस में मोनोसाइट काउंट 500/mm3  से अधिक या  0. ×109 /L से अधिक होती है।
  • मोनोसाइटोपेनिया में, काउंट 100 /mm3 से कम या 0.1 × 109 /L से कम होता है।

मोनोसाइटोसिस किसी मरीज में निम्न स्थितियों के होने का संकेत दे सकती है:

  • न्यूट्रोपेनिया या बोन मेरो की रिकवरी (फिर से स्वस्थ होने की अवधि) 
  • क्रोनिक इन्फेक्शन जैसे ट्यूबरकुलोसिस, वायरल संक्रमण, कंजेनिटल सिफलिस, एंडोकार्डिटिस और मलेरिया 
  • इम्यून और इंफ्लेमेटरी विकार जैसे कोलेजेन वैस्कुलर डिजीज, अल्सरेटिव कोलाइटिस, इंफ्लेमेटरी बाउल सिंड्रोम, सारकॉइडोसिस और इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया 
  • मायोकार्डियल इन्फ्रेक्शन 
  • गौशर डिजीज
  • माइलॉयड मलिग्नेंसी जैसे मायलोप्रोलाइफरेटिव निओप्लासम और मायलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम 
  • कार्सिनोमा 
  • लिम्फोइड और प्लाज्मा सेल मलिग्नेंसी 
  • सिकल सेल डिजीज और हेमोलीटिक एनीमिया, लुपस एरीथेमेटोसस और गंभीर रूप से सेप्सिस
  • लंबे समय से तनाव

जिन लोगों ने स्प्लेनेक्टॉमी करवाई है उनके शरीर में भी मोनोसाइट काउंट अधिक होता है। 

मोनोसाइटोपेनिया किसी मरीज में निम्न स्थितियों के होने का संकेत देती है:

  • हेयरी सेल ल्यूकेमिया 
  • एचआईवी संक्रमण 
  • अधिक संक्रमण जिससे न्यूट्रोपेनिया होता है 
  • अप्लास्टिक एनीमिया 
  • एक्यूट स्ट्रेस (तीव्रता से तनाव होना)

इम्यूनोसुप्रेसेंट और ग्लुकोकोर्टिकोइड जैसी कुछ विशेष दवाओं से भी मोनोसाइटोपेनिया होता है 

असामान्य वैल्यू के मामलों में यह जरूरी है कि अन्य सहायक परीक्षण किए जाएं। इनमें  ब्लड स्मीयर में मोनोसाइट मॉर्फोलॉजी का अध्ययन व प्रभावित अंगों का परीक्षण और कैंसर के मामलों में क्रोमोजोम टेस्टिंग शामिल हैं। इन टेस्टों से यह पता लगाने में मदद मिलती है कि मोनोसाइट्स का असामान्य स्तर क्यों हुआ है और इसके लिए उचित इलाज क्या है।

संदर्भ

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