डी-डिमर टेस्ट क्या है?

डी डिमर एक ब्लड टेस्ट है जो कि खून में प्रोटीन फ्रेगमेंट की जांच करता है, ये शरीर में तब बनते हैं जब रक्त में ब्लड क्लॉट घुलने लग जाते हैं। आमतौर पर डी-डिमर रक्त में दिखाई नहीं देता, लेकिन अगर खून में थक्के बन रहे हैं और घुलने लगे हैं, तो डी-डिमर का स्तर इतना बढ़ जाता है जिसको टेस्ट की मदद से आसानी से देखा जा सकता है।

रक्त वाहिकाओं में असामान्य रूप से बन रहे खून के थक्कों का पता लगाने के लिए डि-डिमर टेस्ट का उपयोग किया जाता है। ये थक्के डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी), पल्मोनरी एम्बोलिस्म (पीई), स्ट्रोक और डिसमिनेटेड इंट्रावस्क्युलर कोयग्युलेशन (डीआईसी) जैसी स्थितियों में देखे जाते हैं। इस टेस्ट की मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि डाआईसी जैसे रोगों के इलाज कितने अच्छे से काम कर पा रहे हैं। डी-डिमर टेस्ट की मदद से यह भी निर्धारित किया जा सकता है कि, हाइपरकोयग्युलेबिलिटी (Hypercoagulability) के लिए और अधिक परीक्षण करने की जरूरत है या नहीं।

  1. डी-डिमर टेस्ट क्यों किया जाता है - What is the purpose of D-dimer test in Hindi
  2. डी-डिमर टेस्ट से पहले - Before D-dimer test in Hindi
  3. डी-डिमर टेस्ट के दौरान - During D-dimer test in Hindi
  4. डी-डिमर टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब है - What does D-dimer test result mean in Hindi?

डी-डिमर टेस्ट किसलिए किया जाता है?

आमतौर पर डी-डिमर टेस्ट आपातकालीन स्थितियों में ही किया जाता है। यह टेस्ट छाती के दर्द, सांस फूलने और बांहों व पैरों में दर्द के लक्षण दिखने पर किया जाता है।

यह टेस्ट डीवीटी के लक्षण दिखने पर किया जाता है जिनमें निम्न शामिल हैं:

  • टांग में दर्द रहना या टेंडरनेस (छूने पर दर्द होना)
  • प्रभावित जगह पर अत्यधिक दर्द होना
  • प्रभावित टांग में सूजन 
  • जिस जगह क्लॉट है उस जगह की त्वचा गर्म होना 
  • प्रभावित टांग की त्वचा का रंग बदल जाना 

डी-डिमर टेस्ट पीई के लक्षण दिखने पर किया जाता है, जिसमें निम्न शामिल हैं:

डी-डिमर टेस्ट तब भी किया जाता है यदि व्यक्ति में डीआईसी के लक्षण जैसे मसूड़ों से खून, मतली, उल्टी, दौरे, मांसपेशियों में तेज दर्द, पेट में दर्द और कम पेशाब आना आदि दिखाई दें। आमतौर पर यह टेस्ट डीआईसी के परीक्षण के लिए प्रोथ्रोम्बिन टाइम (पीटी), पार्शियल थ्रोम्बोप्लास्टिन टाइम (पीटीटी) और प्लेटलेट काउंट टेस्ट के साथ किया जाता है। डी-डिमर टेस्ट को डीआईसी की थेरेपी के दौरान एक नियमित अंतराल में बार-बार किया जा सकता है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि इलाज कितने अच्छे से काम कर पा रहा है।

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डी-डिमर टेस्ट की तैयारी कैसे करें?

इस टेस्ट के लिए किसी भी तैयारी की जरूरत नहीं होती। 

डी-डिमर टेस्ट कैसे किया जाता है?

यह एक सामान्य टेस्ट है जिसमें पांच मिनट से भी कम का समय लगता है। डॉक्टर इस दौरान आपकी बांह की नस में सुई लगाकर ब्लड सैंपल निकाल लेते हैं। खून की छोटी-सी मात्रा टेस्ट ट्यूब में निकाल ली जाएगी। नस में सुई लगने से कुछ सेकेंड तक दर्द का अनुभव हो सकता है।

इस टेस्ट से हल्का सा खतरा चक्कर आने का, सुई लगी जगह पर नील पड़ने का होता है। हालांकि, अधिकतर मामलों में ये लक्षण जल्दी ही गायब हो जाते हैं। कभी-कभार रक्त निकाली गयी जगह पर संक्रमण हो सकता है।

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डी-डिमर टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब है?

सामान्य परिणाम:

रक्त में डी-डिमर का न मिलना यह बताता है कि परिणाम सामान्य है। डी-डिमर के नेगेटिव परिणाम यह दर्शातें हैं कि शरीर में कोई भी ऐसी स्थिति या बीमारी नहीं है जिससे खून में थक्के जमने या घुलने की समस्याएं हो रही हों। यह थ्रोम्बोसिस के लो रिस्क की तरफ इशारा करता है।

असामान्य परिणाम:

डी-डिमर के स्तर का रक्त में मिलना इस बात का संकेत है कि शरीर में फाइब्रिन का असामान्य रूप से ब्रेकडाउन (छोटे टुकड़ों में टूटना) हुआ है। जिससे ये पता चलता है कि व्यक्ति के रक्त में थक्के बने हुऐ हैं और वे टूट भी रहे हैं। हालांकि, ये टेस्ट इसके कारण और स्थान के बारे में नहीं बता पाता।

डी-डिमर के पॉजिटिव रिजल्ट निम्न स्थितियों में देखे जा सकते हैं:

  • डीआईसी
  • वेनस थ्रोम्बोएम्बोलिस्म (वीटीई)
  • डीवीटी 
  • पीई 
  • स्ट्रोक 
  • हार्ट अटैक 

परीक्षण की पुष्टि के साथ-साथ डीवीटी, पीई और वीटीई के स्थान का पता लगाने के लिए अन्य टेस्ट किए जाते हैं। इन अन्य टेस्टों में अल्ट्रासोनोग्राफी, कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सीटी), एंजियोग्राफी, पल्मोनरी एंजियोग्राफी और वेंटिलेशन-पर्फ्यूशन स्कैनिंग शामिल हैं।
कभी-कभी कुछ स्थितियों में ये परिणाम गलत तरीके से भी पॉजिटिव आ सकते हैं, जैसे गर्भावस्था या 80 वर्ष से अधिक के मरीजों में। इसके अलावा डी-डिमर टेस्ट के परिणाम लिवर रोग, उच्च लिपिड या ट्राइग्लिसराइड के स्तर, कुछ विशेष प्रकार के कैंसर, तीव्र संक्रमण (सेप्सिस), क्रोनिक हार्ट डिजीज, ट्रॉमा या हाल ही में हुई सर्जरी के कारण भी पॉजिटिव आ सकते हैं।

डी-डिमर टेस्ट एक सूक्ष्म टेस्ट है लेकिन यह पूर्णतया सही नहीं होता इसलिए परीक्षण की पुष्टि के लिए कुछ अन्य टेस्ट भी किए जाते हैं। डी-डिमर के साथ जो अन्य टेस्ट किए जाते हैं उनमें पीटी, पीटीटी, फाइब्रिनोजेन टेस्ट और प्लेटलेट काउंट शामिल हैं। जिन लोगों में डी-डिमर का स्तर अधिक होता है उनमें क्लॉट (थ्रोम्बस) बनने या डीवीटी के होने का सामान्य या कभी-कभी अधिक खतरा होता है।

संदर्भ

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