हर्निया जीवनशैली से संबंधित विकार है। किसी मांसपेशी या ऊतक में छेद के माध्‍यम से अंदर का अंग उभरकर बाहर आने लगता है तो उसे हर्निया कहा जाता है। इस बीमारी में हर्निया वाली जगह एक उभार निकल आता है।

शरीर के प्रभावित हिस्‍से के आधार पर हर्निया को विभिन्‍न प्रकार में वर्गीकृत किया गया है जैसे कि वंक्षण (इनगुइनल), जघनास्थिक (फीमोरल), नाभि (अम्‍बिलिकल) और हाइटल हर्निया। अधिकतर हर्निया के मामलो में वंक्षण क्षेत्र में पेट की परत प्रभावित होती है।

सूजन के कारण पेट की परत कमजोर हो जाती है जिसकी वजह से मुलायम ऊतकों या हिस्‍से में असामान्‍य उभार आने लगता है। खांसी, झुकने या भारी वजन उठाने की वजह से ऐसा हो सकता है।

हर्निया के इलाज के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक तेल लगाने और पिंड स्‍वेद (गर्म सिकाई) की सलाह देते हैं। हर्बल औषधियों के मिश्रण, आहार में उचित बदलाव, आंतों को स्‍वस्‍थ रखकर और तनाव में कमी लाकर हर्निया का इलाज किया जा सकता है।

(और पढ़ें - तनाव के लिए योग)

हर्निया के लक्षणों से राहत पाने के लिए करंज, सेन्‍ना, कुटज और हिंगु (हींग) जड़ी बूटियों का प्रयोग किया जाता है। जड़ी बूटियों के अलावा हर्निया के इलाज में विरेचन (मल निष्‍कासन की विधि), स्‍नेहन (तेल लगाने की विधि) और बस्‍ती कर्म (औषधीय एनिमा की विधि) लाभकारी होती है।

(और पढ़ें - एनिमा लगाने का तरीका)

हालांकि, हर्निया रोग में मरीज को तुरंत अस्‍पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं होती है लेकिन हर्निया को पूरी तरह से ठीक करने के लिए सर्जरी करवाना जरूरी होता है। सर्जरी के बाद लंबे समय तक रहने वाली सूजन को कम करने के लिए संतुलित आहार लेना चाहिए। इसमें पौधों से मिलने वाला फाइबर, ट्रांस फैट की जगह पौधों से मिलने वाली वसा, थोड़ा-थोड़ा करके खाना और रिफाइंड एवं संसाधित खाद्य पदार्थों से दूरी शामिल है।

(और पढ़ें - संतुलित आहार चार्ट)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से हर्निया - Ayurveda ke anusar Hernia
  2. हर्निया का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Hernia ka ayurvedic treatment in Hindi
  3. हर्निया की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Hernia ki ayurvedic medicine, dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार हर्निया होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Hernia me kya kare kya na kare
  5. हर्निया में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Hernia ki ayurvedic medicine kitni labhkari hai
  6. हर्निया की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Hernia ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. हर्निया के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Hernia ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
हर्निया की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद के अनुसार आंतों की सूजन को ही हर्निया कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे आंत्र वृद्धि कहा गया है। जीवनशैली से संबंधित कई कारणों की वजह से हर्निया की बीमारी हो सकती है जैसे कि अनुचित आहार लेने के कारण वात का बढ़ना, ठंडे पानी से नहाना, भारी वजन उठाना, देर तक दौड़ लगाना, प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि पेशाब या मल त्‍याग की क्रिया को समय से पहले ही करना।

(और पढ़ें - वात दोष क्या है)

बढ़ा हुआ वात दोष आंतों को कमजोर कर उन्‍हें नीचे उतारने लगता है जिसकी वजह से इनगुइनल हर्निया होने लगता है। पुरुषों में हर्निया वंक्षण नलिका के माध्‍यम से अंडकोष में फैलता है जबकि महिलाओं में यह वंक्षण लिगामेंट के नीचे ग्रंथियों के जमाव के रूप में होता है।

हर्निया का ध्‍यान न रखने या इसे नज़रअंदाज करने पर अकसर सूजन की समस्‍या हो जाती है। हाइटल हर्निया में नाभि के हिस्‍से में हर्निया होता है और आमतौर पर ये समस्‍या कमजोर बच्‍चों में देखी जाती है।

(और पढ़ें - कमजोर बच्चों को मोटा करने की टिप्स)

हर्निया के इलाज में विरेचन, स्‍नेहन, निरुह बस्‍ती (बस्‍ती कर्म का एक प्रकार) और औषधियों को शरीर पर लगाने के साथ जड़ी-बूटियों का सेवन शामिल है। हर्बल उपचार में आंतों की खराब सेहत की पहचान कर वहां से बैक्‍टीरिया और पैथोजन (रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव) को हटाया जाता है। इस तरह आंतों और पाचन तंत्र को मजबूत किया जाता है।

(और पढ़ें - पाचन तंत्र मजबूत कैसे बनाएं)

  • स्‍नेहन
    • इस प्रक्रिया में गर्म, औषधीय या सुगंधित तेल से शरीर की मालिश की जाती है। इस तरह शरीर की नाडियों से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। (और पढ़ें - मालिश के फायदे)
    • वात बढ़ने के कारण हुए हर्निया का इलाज तिल के तेल या घी (क्लैरिफाइड मक्‍खन- वसायुक्त मक्खन से दूध के ठोस पदार्थ और पानी को निकालने के लिए दूध के वसा को हटाना) से किया जा सकता है जबकि कफ दोष के कारण हुए हर्निया में सरसों के तेल, कैनोला तेल या अलसी के तेल का प्रयोग किया जाता है।
    • ये चिकित्‍सा 3 से 7 दिन तक नियमित की जाती है।
       
  • विरेचन
    • पित्ताशय की थैली, यकृत और छोटी आंत से अत्‍यधिक पित्त को हटाने में विरेचन कर्म सबसे ज्‍यादा प्रभावकारी है।
    • कफ दोष के कारण हुई सूजन के इलाज में विरेचन (शुद्धिकरण) के लिए अम्‍लपर्णी (रूबर्ब), सेन्‍ना, त्रिफला (आमला, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण), त्रिकटु (तीन अम्‍लों का मिश्रण – पिप्‍पली, शुंथि [सूखी अदरक] और मारीच [काली मिर्च]) का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • वात दोष को खत्‍म करने के लिए गर्म, नमकीन और तैलीय विरेचक (शोधक या पेट साफ करने वाले) जैसे कि काला नमक, ईसबगोल और अदरक का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • विरेचन कर्म के बाद पाचन अग्‍नि को बढ़ाने के लिए हल्‍का भोजन दिया जाता है। इस क्रिया के बाद व्‍यक्‍ति के शरीर को ताकत देने के लिए स्‍नेहन कर्म किया जाता है। (और पढ़ें - ताकत बढ़ाने का आसान तरीका)
    • विरेचन के बाद व्‍यक्‍ति को हल्‍का, मानसिक रूप से शांत और गैस के निकलने का अहसास होता है।
       
  • निरुह बस्‍ती
    • निरुह बस्‍ती को अस्‍थापन बस्‍ती के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रक्रिया में दूध और थोड़े-से तेल में हर्बल काढ़े का एनिमा मिलाकर प्रयोग किया जाता है। बढ़े हुए अंडकोष, गंभीर वात विकार और कमजोर ऊतकों के लिए ये उपचार सबसे अधिक लाभकारी होता है। (और पढ़ें - काढ़ा कैसे बनाए)
    • यह प्रक्रिया आंतों की मांसलता को मजबूत और साफ करके पूरे शरीर को स्‍वस्‍थ करती है तथा ऊर्जा देती है।  
    • इसमें ऊतकों से विषाक्‍त पदार्थों के साथ-साथ पाचन तंत्र से मल को बाहर निकालकर पूरे पेट की सफाई एवं उपचार किया जाता है।
    • इस प्रक्रिया के बाद जितने दिनों तक बस्‍ती चिकित्‍सा की गई है, उससे दोगुने दिनों तक व्‍यक्‍ति को पौष्टिक आहार देना चाहिए। (और पढ़ें - पौष्टिक आहार के लाभ)
       
  • पिंड स्‍वेद
    • इस प्रक्रिया में प्रभावित हिस्‍से पर तेल लगाया जाता है और चावल के गर्म पेस्‍ट से बनी पुल्टिस से सिकाई की जाती है।
    • ये चिकित्‍सा मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के इलाज में सबसे ज्‍यादा उपयोगी है। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक ऐसी बीमारी, जिसके कारण समय के साथ व्यक्ति की मासपेशियां कमजोर व पतली होने लगती हैं। 

हर्निया के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • हिंगु
    • पाचन में सुधार के लिए हिंगु का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • आयुर्वेद के अनुसार हिंगु में दीपन (भूख बढ़ाने वाले) गुण मौजूद होते हैं। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने के लिए घरेलू उपाय)
    • एक प्रकार के कंद से प्राप्‍त गोंद और हींग के पौधे की जड़ की प्रकृति ऐंठन से राहत, वायुनाशक, कफ निस्‍सारक (बलगम निकालने वाले) और रेचक (मल त्‍याग की क्रिया को नियंत्रित) प्रभाव वाली होती है एवं इस वजह से ये हर्निया के लक्षणों से राहत दिलाने में मदद करती है।
    • वात विकारों के इलाज के लिए इसे सबसे बेहतरीन जड़ी-बूटियों में से एक माना जाता है। पेट फूलने, ऐंठन, दर्द और गैस की समस्‍या से निजात पाने के लिए ये उत्तम जड़ी-बूटी है।
    • ये आंतों को मजबूती और कब्‍ज से राहत दिलाती है जो कि हर्निया की सामान्‍य समस्‍याएं हैं।
       
  • कुटज
    • संकुचक, पेचिश रोधी (पेचिश रोकने वाले) और कृमिनाशक गुणों से युक्‍त होने के कारण कई रोगों के इलाज में इस आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ये भूख को बढ़ाती है और पाचन में सुधार कर हर्निया के इलाज में मदद करती है।
    • इसके अलावा पेट खराब करने वाले हानिकारक बैक्‍टीरिया या पैथोजन को भी आंतों से साफ करती है।
       
  • सेन्‍ना
    • ये जड़ी-बूटी पेरिस्‍टलसिस (भोजन को पाचन तंत्र में विभिन्न जगहों तक ले जाने वाली मांसपेशियों के संकुचन की श्रृंखला जिसे क्रमाकुंचन भी कहा जाता है) को बढ़ाकर मल त्‍याग की क्रिया को बेहतर करती है और आंतों की मांसपेशियों में नियमित संकुचन लाती है।
    • इससे हर्निया में होने वाली कब्‍ज की समस्‍या को भी दूर किया जा सकता है।
    • मल त्‍याग की क्रिया को नियंत्रित कर मल के जमने के कारण पेट की परतों पर बने अत्‍यधिक दबाव को भी सेन्‍ना से खत्‍म किया जा सकता है।
       
  • मंजिष्‍ठा
    • काढ़े, पाउडर, पेस्‍ट या घी के रूप में इसे प्रयोग कर सकते हैं। मंजिष्‍ठा की जड़ को खून साफ करने के लिए जाना जाता है। (और पढ़ें - खून को साफ करने वाले आहार)
    • ट्यूमर और सूजन से संबंधित कफ विकार के इलाज में मंजिष्‍ठा प्रभावी है इसलिए हर्निया के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता है। 
    • ये ऊतकों के उपचार में भी सहायक है इसलिए इसके इस्‍तेमाल से सर्जरी के बाद व्‍यक्‍ति की हालत में सुधार लाया जा सकता है।
       
  • करंज
    • करंज आंतों को उत्तेजित कर पाचन को बढ़ाती है। ये शरीर में जाकर भोजन को टूटने और आवश्‍यक पोषक तत्‍वों के अवशोषण में मदद करती है।
    • ये पेट की गैस को खत्‍म कर पेट फूलने की समस्‍या से राहत दिलाती है।

हर्निया के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • त्रिफला गुग्‍गुल
    • इसमें प्रमुख घटक के रूप में त्रिफला, त्रिकटु और गुग्‍गुल मौजूद है।
    • त्रिफला मिश्रण में पाचक, हल्‍के रेचक (पेट साफ करने वाले), आंतों के लिए शक्‍तिवर्द्धक, वायुनाशक, कफ निस्‍सारक और ऐंठन दूर करने वाले गुण होते हैं। ये सभी गुण मिलकर हर्निया के लक्षणों को दूर कर इस बीमारी का इलाज करते हैं।
    • त्रिफला गुग्‍गुल में दर्द निवारक गुण भी होते हैं और ये हर्निया की सर्जरी के बाद होने वाले दर्द को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
       
  • गंधक रसायन
    • इस मिश्रण में शुद्ध गंधक के साथ-साथ दालचीनी, हरीतकी और नागकेसर मौजूद होता है।
    • ये रक्‍त धातु को साफ और सभी धातुओं की चयापचय अग्‍नि को नियंत्रित करता है। किसी दोष या धातु के घातक रूप से बढ़ने या असंतुलित होने पर विशेष रूप से इस औषधि को दिया जाता है।
    • गंधक रसायन को वात और पित्त दोष शांत करने के लिए जाना जाता है। ये पाचन को बढ़ाता है एवं इसमें दीपन गुण मौजूद होते हैं। इस तरह ये पाचन में सुधार और आंतों के मांस पर पड़ रहे अत्‍यधिक दबाव को कम करता है।
    • गंधक रसायन में दर्द निवारक गुण होते हैं एवं यह हर्निया की सर्जरी के बाद होने वाले दर्द को नियंत्रित करने में मदद करता है।

(और पढ़ें - सर्जरी क्या है)

क्‍या करें

  • अपने आहार में सूजनरोधी और वात को कम करने के गुणों से युक्‍त जड़ी-बूटियों एवं मसालों को शामिल करें। (और पढ़ें - मसालों के औषधीय गुण)
  • कभी-कभी व्रत भी रख सकते हैं।
  • अपने भोजन में पौधों से मिलने वाले फाइबरयुक्त आहार को शामिल करें।
  • 4 से 5 बार थोड़ा-थोड़ा कर के खाएं या कम खाने के साथ बीच-बीच में स्‍नैक्‍स खाएं। (और पढ़ें - खाना खाने का सही समय)
  • भोजन में रसोनम (लहसुन), करवेलका (करेला), परस्निप और छोटे खीरे खाएं।

क्‍या न करें

  • फलियां आदि खाने से बचें।
  • तिक्‍त (तीखी), कटु (चरपरा), कषाय (कसैला), रूक्ष (सूखा) और गुरु (भारी) भोजन का हर्निया की औषधियों पर दुष्‍प्रभाव पड़ सकता है। 
  • उच्‍च प्रोटीन युक्‍त खाद्य पदार्थ बिलकुल न खाएं क्‍योंकि इनकी वजह से सूजन हो सकती है।
  • अधिक मात्रा में चीनी और सिंपल कार्बोहाइड्रेट (शरीर में आसानी से घुलकर एनर्जी में तब्‍दील होने वाले खाद्य पदार्थ) नहीं खाना चाहिए।
  • ज्‍यादा खाना न खाएं वरना इसकी वजह से हर्निया पर अनावश्‍यक दबाव पड़ सकता है। 

(और पढ़ें - पेट में सूजन के लक्षण)

एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन सर्जरी के बाद होने वाले दर्द को कम करने वाली औषधि त्रिफला गुग्‍गुल (450 ग्राम) और गंधक रसायन (250 ग्राम) के प्रभाव की तुलना डाइक्‍लोफेनेक (सर्जरी के बाद दी जाने वाली दर्द निवारक और जीवाणुरोधी अंग्रेजी दवा) से करने के लिए  किया गया था।

इस अध्‍ययन में 30 हर्निया के मरीज़ों को शामिल किया गया था एवं इन्‍हें दो समूह में बांटा गया। एक समूह के प्रतिभागियों को आयुर्वेदिक औषधि दी गई जबकि दूसरे समूह के लोगों को अंग्रेजी दवा डाइक्‍लोफेनेक दी गई।

अध्‍ययन में दर्द से राहत दिलाने के लिए आयुर्वेदिक दवा को ज्‍यादा असरकारी पाया गया। अध्‍ययन में बताया गया है कि अंग्रेजी दवा की तुलना में आयुर्वेदिक औषधियां अधिक किफायती और दर्द निवारक होती हैं।

(और पढ़ें - हर्निया के लिए योग)

आयुर्वेदिक औषधियों के कोई विशिष्‍ट हानिकारक प्रभाव नहीं होते हैं, उपचार के दौरान आवश्‍यक सावधानियां बरतनी चाहिए। किसी एक व्‍यक्‍ति पर असर करने वाली दवा या जड़ी-बूटी भिन्‍न प्रकृति वाले अन्‍य व्‍यक्‍ति को नुकसान पहुंचा सकती है।

  • ध्‍यान या योग करने वाले लोगों पर हिंगु का गलत प्रभाव पड़ सकता है। इसे पित्तरस या एसिड की समस्‍या को बढ़ाने के लिए जाना जाता है।
  • मंजिष्‍ठा की वजह से वात की समस्‍या बढ़ सकती है इसलिए अत्‍यधिक ठंड लगने की स्थिति में इसे नहीं लेना चाहिए।
  • कमजोर या अत्‍यधिक मजबूत पाचन शक्‍ति वाले व्‍यक्‍ति को स्‍नेहन की सलाह नहीं दी जाती है। दस्‍त, मोटापे या जांघों में अकड़न से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को भी स्‍नेहन नहीं दी जाती है।
  • विरेचन कर्म से पहले जांच लेना चाहिए कि व्‍यक्‍ति को हाल ही में बुखार तो नहीं हुआ या वो खराब पाचन, सख्‍त मल आने या कमजोरी की समस्‍या से तो ग्रस्‍त नहीं है। इन सभी मामलों में विरेचन कर्म के दौरान अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है।
  • शिशु के लिए निरुह बस्‍ती की सलाह नहीं दी जाती है। दस्‍त, कोलोन कैंसर, डायबिटीज, डाइवर्टिक्युलाइटिस (विपुटीशोथ), पॉलिप्स और गुदा मार्ग में ब्‍लीडिंग से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को भी ये चिकित्‍सा नहीं देनी चाहिए। (और पढ़ें - ब्लीडिंग रोकने के उपाय)

इसीलिए उपरोक्‍त औषधियों या उपचारों के इस्‍तेमाल से पूर्व आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करने की सलाह दी जाती है। 

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हर्निया एक जीवनशैली संबंधी विकार है एवं यह समस्‍या अधिकतर भारी चीजें उठाने या रोज ज्‍यादा चलने वाले लोगों में देखी जाती है। वैसे हर्निया को पूरी तरह से ठीक करने के लिए सर्जरी करना जरूरी होता है लेकिन हर्निया का ये ही एकमात्र उपचार नहीं है। हर्निया में वात और कफ दोष बढ़ जाता है जिसका विशेष ध्‍यान रखने की जरूरत है।

आयुर्वेद के अनुसार शरीर के ऊतकों को मजबूत करने के लिए विशिष्ट उपचार प्रक्रियाओं के साथ जड़ी-बूटियों, औषधियों, जीवनशैली और आहार संबंधित बदलाव के साथ इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। हर्निया के उचित एवं सुरक्षित इलाज के लिए एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श की सलाह दी जाती है। 

(और पढ़ें - हर्निया में क्या खाना चाहिए)

Dr Bhawna

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