कैंसर एक गंभीर बीमारी है, जिसका समय पर और शुरुआती स्टेज में पता चल जाए तो इलाज संभव है। हालांकि, कई मामलों में इस बीमारी के लक्षणों का पता नहीं चलता, जिसके कारण आगे चलकर ये जानलेवा साबित होता है। वहीं अगर मुंह और गले के कैंसर की बात की जाए तो दुर्भाग्य से शुरुआत में इनकी पहचान थोड़ी मुश्किल होती है, क्योंकि क्लीनिकल जांच के दौरान मुंह के कैंसर की सही जगह जानने में परेशानी होती है। इसलिए जब तक इस कैंसर के लक्षण ठीक से उभरकर नहीं आते हैं, इसलिए इस तरह के कैंसर की पुष्टि भी मुश्किल होती है।

हालांकि, अध्ययनकर्ताओं ने अब एक नया रास्ता निकाला है जो गले और मुंह के कैंसर की जल्द पहचान कर सकेगा। दरअसल शोधकर्ताओं ने सलाइवा यानि लार (थूक) के जरिए इसकी जांच का रास्ता तलाश लिया है।

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क्या कहती है रिसर्च?
इस संबंध में जनरल ऑफ मॉलिक्यूलर डायग्नोसिस में छपी एक रिपोर्ट छापी गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इंजेक्शन रहित एकोस्टोफ्लूइडिक्स के जरिए सलाइवा में मौजूद ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) - 16 का पता लगाया जा सकता है जो एक रोगजनक है और ऑरोफेरिंजियल कैंसर (ओपीसी) से संबंधित है। इस तकनीक से टेस्ट करने पर पता चला कि जिन मरीजों का परीक्षण किया गया था, उनमें लगभग 40 प्रतिशत मरीजों की लार में ओपीसी पाया गया और उनमें से 80 फीसदी मरीजों में ओपीसी की पुष्टि हुई।

ओपीसी (ऑरोफेरिंजियल कैंसर) सबसे तेजी से फैलने वाला कैंसर है जो एचपीवी से संबंधित है। इस कैंसर के दुनिया भर में हर साल 1,15,000 मामले सामने आते हैं। यह कैंसर ज्यादातर युवाओं में पाया जाता है।

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विशेषज्ञों की राय
अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी में को-लीड इन्वेस्टिगेटर टोनी जुन हुआंग ने बताया कि यह महत्वपूर्ण है कि इन तरीकों के जरिए बीमारी की जांच कर उसका इलाज जल्द से जल्द किया जाए। इसके अलावा हुआंग का कहना है कि एचपीवी की सफल पहचान हमारे एक्यूस्टो फ्लूइडिक प्लेटफॉर्म द्वारा अलग किए गए लार के एक्सोसोम से होती है, जो शुरुआती जांच, जोखिम मूल्यांकन और स्क्रीनिंग सहित अलग-अलग फायदे देती है।

यह तकनीक, चिकित्सकों को यह पता लगाने में भी मदद कर सकती है कि कौन से मरीज़ को रेडिएशन थेरेपी से फायदा होगा और लंबे समय तक कैंसर से मुक्त रहते हुए वो जीवित रह पाएगा।

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कैसे की गई रिसर्च?
अध्ययन में, जांचकर्ताओं ने पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके एचपीवी-ओपीसी के साथ पहचाने गए 10 रोगियों से लार के नमूनों का विश्लेषण किया।

  • पाया गया कि जब इस तकनीक को पारंपरिक तकनीक (ड्रॉपलेट डिजिटल पीसीआर) के साथ इस्तेमाल किया गया तो इसने 80 फीसद मामलों में ट्यूमर बायोमेकर की पहचान की।
  • लॉस-एंजिलिस की कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी में को-लीड इंवेस्टिगेटर डेविड टीडब्ल्यू वोंग के मुताबिक ओपीसी की जल्द पहचान और जोखिमों को जानने के लिए लार एक्सोसोम लिक्विड बायोप्सी एक प्रभावशाली प्रक्रिया है।

डॉक्टर की राय
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर अर्चना निरूला के मुताबिक क्योंकि, गले के कैंसर के दौरान वायरस अंदर की तरफ होता है। जिससे उसकी पहचान करने में मुश्किल होती है। इसलिए इस तरह की तकनीक के आने से इस कैंसर का जल्दी पता चल पाएगा और कई लोगों की जान बचाने में यह तकनीक मददगार साबित हो सकती है।

रिपोर्ट के आधार पर समझाया जाए तो मुंह और गले के कैंसर में वैज्ञानिकों की ये रिसर्च मरीजों के साथ-साथ डॉक्टरों के लिए भी सहायक साबित हो सकती है। अगर लार के जरिए गले के कैंसर को पहचानने में मदद मिलेगी तो इससे बीमारी को समय रहते रोका जा सकता है।

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