होमोसिस्टीन टेस्ट क्या है?

होमोसिस्टीन टेस्ट रक्त में होमोसिस्टीन की मात्रा का पता लगाने में मदद करता है। होमोसिस्टीन एक एमिनो एसिड है, जो कि विटामिन बी12, बी 6 और फोलिक एसिड की प्रतिक्रिया से बनता है। हमारे शरीर को कुछ मात्रा में होमोसिस्टीन की जरूरत होती है। विटामिन बी 12, बी 6 और फोलिक एसिड होमोसिस्टीन को अन्य पदार्थों में तेजी से तोड़ने में मदद करते हैं। इसलिए शरीर में होमोसिस्टीन कम मात्रा में ही मौजूद होना चाहिए। यदि होमोसिस्टीन का स्तर शरीर में अधिक है तो आमतौर पर इसका मतलब होता है, कि शरीर में विटामिन की कमी है या यह किसी हार्ट डिजीज का संकेत भी हो सकता है।

  1. होमोसिस्टीन टेस्ट क्यों किया जाता है - What is the purpose of Homocysteine test in Hindi
  2. होमोसिस्टीन टेस्ट से पहले - Before Homocysteine test in Hindi
  3. होमोसिस्टीन टेस्ट के दौरान - During Homocysteine test in Hindi
  4. होमोसिस्टीन टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज - Homocysteine test result and normal value in Hindi

होमोसिस्टीन टेस्ट क्यों किया जाता है?

होमोसिस्टीन टेस्ट विटामिन बी12, बी6 और फोलिक एसिड की कमी का पता लगाने के लिए किया जाता है। यह टेस्ट होमोसिस्टीन्यूरिया नामक एक दुर्लभ विकार का पता लगाने में भी मदद करता है। यह रक्त में कुछ विशेष प्रोटीन को टूटने से रोकता है, जिसके कारण ब्लड और यूरिन में होमोसिस्टीन का स्तर बढ़ जाता है। यूनाइटेड स्टेट में सभी नवजात शिशुओं में मेथिओनिन के उच्च स्तर की जांच की जाती है जो कि होमोसिस्टीन्यूरिया का एक लक्षण है। यदि टेस्ट के परिणाम पॉजिटिव आते हैं तो  होमोसिस्टीन टेस्ट किया जाता है। जिन लोगों को स्ट्रोक और हार्ट डिजीज का अधिक खतरा होता है उनमें ये टेस्ट एक स्क्रीनिंग टेस्ट के तौर पर भी किया जाता है। हार्ट डिजीज के मरीजों की स्थिति पर नजर रखने के लिए भी यह टेस्ट किया जाता है। निम्न लक्षण दिखने पर डॉक्टर आमतौतर पर होमोसिस्टीन टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं:

होमोसिस्टीन के बढ़े हुए स्तर के कारण धमनियों की दीवारों की मोटाई अत्यधिक बढ़ जाती है जिससे ब्लड क्लॉट, हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। यह बच्चों में हर तीन से पांच दिनों में और वयस्कों में हर तीन से पांच सालों में मापा जाता है।

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होमोसिस्टीन टेस्ट की तैयारी कैसे करें?

व्यक्ति को इस बारे में बताना जरूरी है कि होमोसिस्टीन कैसे किया जाना है और क्यों। इस टेस्ट के लिए आमतौर पर सात से दस घंटे भूखे रहने की जरूरत होती है। जिन लोगों को होमोसिस्टीन्यूरिया होता है उनमें रीनल फंक्शन की भी जांच की जाती है।

होमोसिस्टीन टेस्ट कैसे किया जाता है?

टेस्ट के लिए व्यक्ति की बांह की नस में सुई लगाकर ब्लड सैंपल ले लिया जाता है। ये सैंपल एक विशेष प्रकार की ट्यूब में लिए जाते हैं जो कि खून और सीरम को अलग करती है। सुई लगने से कुछ लोगों को हल्का सा दर्द हो सकता है। यह एक सामान्य और आसान प्रक्रिया है, जो कि कुछ ही मिनट में पूरी हो जाती है। ब्लड लेने के बाद पंक्चर की जगह पर हल्का सा दबाव लगाकर पट्टी कर दी जाती है। सैंपल ट्यूब पर लेबल लगाकर, उसे तुरंत बर्फ पर रखा जाता है। इसके बाद सैंपल को लैब में ले जाया जाता है जहां इसे सैंपल लेने के एक घंटे के अंदर सेंट्रीफ्यूज (किसी मशीन द्वारा ठोस और द्रव्य को उन के घनत्व के अनुसार अलग करना) किया जाता है और फ्रीज (जमाया) किया जाता है।

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होमोसिस्टीन टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज

सामान्य परिणाम:

  • पुरुष: 1-2.12 मिलीग्राम /लीटर  (mg/L) की रेंज 
  • महिला: 0.53-2 mg/L की रेंज

असामान्य परिणाम:
होमोसिस्टीन के बढ़े हुए स्तर निम्न की ओर संकेत करते हैं:

  • हृदय रोग होने का अधिक खतरा 
  • धूम्रपान 
  • विटामिन की कमी (विटामिन बी12, बी6 और फोलिक एसिड)
  • कार्बामाजेपिन, साइक्लोसेरिन, आइसोनियाजिड, मेथोटेराक्सेट,  पेनिसिलामाईन, फेनीटोइन और प्रोकारबाजिन जैसी दवाओं का प्रयोग 

होमोसिस्टीन के बढ़े हुए स्तर के अन्य कारण निम्न हैं:

  • थायराइड हार्मोन के कम स्तर 
  • रीनल इलनेस 
  • सोरायसिस 
  • फैमली हिस्ट्री

एक स्वस्थ आहार लिया जाना चाहिए, जिसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन, फोलिक एसिड हो। ये रक्त में होमोसिस्टीन के स्तर को कम करता है। हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है, कि इससे भविष्य में हार्ट डिजीज और स्ट्रोक का खतरा कम करने में मदद मिलेगी। आमतौर पर जिन लोगों के शरीर में होमोसिस्टीन के स्तर अधिक होते हैं, उन्हें इलाज के रूप में मल्टीविटामिन लेने के लिए कहा जाता है। पर्याप्त आहार और जीवनशैली से संबंधित कुछ बदलावों के लिए भी कहा जाता है। कुछ अन्य घटक जो कि कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का खतरा बढ़ा सकते हैं, उनकी भी जांच की जानी चाहिए। यदि आपके डॉक्टर ने आपको होमोसिस्टीन के स्तर को कम करने के लिए दवाएं दी हैं, तो आपको आठ हफ्ते बाद होमोसिस्टीन के स्तर की जांच करवानी चाहिए। चूंकि, यह टेस्ट महंगा होता है, इसलिए इसे नियमित रूप से करवाने के लिए नहीं कहा जाता। सामान्य रूप से वयस्कों को हर तीन से पांच सालों में और नवजात शिशुओं में हर तीन से पांच दिनों में होमोसिस्टीन के स्तर की जांच की जानी चाहिए।

संदर्भ

  1. Fischbach FT. Manual of Laboratory and Diagnostic Tests-Lippincott 9th Edition China: Lippincott Williams & Wilkins Publishers, 2015, Page no: 425- 426
  2. Denise D. Wilson.Manual of Laboratory and Diagnostic Tests New York: McGraw-Hill Education, 2008, Page no
  3. American Academy of Family Physicians [Internet]. Leawood (KS); High Homocysteine Level: How It Affects Your Blood Vessels
  4. Health Harvard Publishing [internet], Harvard Medical School,Harvard University, Cambridge, Massachusetts January 2015 Ask the doctor: Should I worry about my homocysteine level?
  5. University of Rochester Medical Center [Internet]. Rochester (NY): University of Rochester Medical Center; Homocysteine
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