शिशु के गंदे डायपर को बदलना एक सामान्य प्रक्रिया है और इससे यह भी पता चलता है कि आपके शिशु का पेट सही तरह से कार्य कर रहा है, लेकिन यदि पिछले कुछ दिनों से आपका शिशु डायपर को कम गंदा कर रहा हो या उसका मल कठोर हो, तो यह शिशु को कब्ज होने का संकेत होता है। शिशुओं में कब्ज के लक्षणों का पता लगा पाना बेहद ही मुश्किल होता।

इन सभी परेशानियों के चलते आपको इस लेख में एक साल से छोटे शिशुओं को होने वाली कब्ज के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही इसमें आपको नवजात शिशु को कब्ज के लक्षण, नवजात शिशुओं को कब्ज के कारण, नवजात शिशु को कब्ज होने पर डॉक्टर के पास कब ले जाएं, नवजात शिशु की कब्ज का इलाज, नवजात शिशु का कब्ज से बचाव और नवजात शिशु के कब्ज की दवा आदि के बारे में भी बताया गया है।

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  1. नवजात शिशु में कब्ज के लक्षण - Navjat shishu me kabj ke lakshan
  2. नवजात शिशु के कब्ज का कारण - Navjat shishu ke kabj ka karan
  3. नवजात शिशु को कब्ज होने पर डॉक्टर के पास कब जाएं - Navjat shishu ko kabj hone pr doctor ke pass kab jaye
  4. नवजात शिशु की कब्ज का इलाज - Navjat shishu ki kabj ka ilaj
  5. नवजात शिशु को कब्ज से बचाव - Navjat shishu ko kabj se bachav
नवजात शिशु को कब्ज के डॉक्टर

नवजात शिशुओं को कब्ज होने पर मल त्याग करने में कठिनाई होती है। इस समय मल देरी से आता है और यह स्थिति कम से कम दो सप्ताह तक बनी रहती है। हालांकि, शिशुओं में कब्ज के संकेत व्यस्कों की अपेक्षा भिन्न हो सकते हैं। नीचे शिशुओं में कब्ज के दौरान होने वाले कुछ सामान्य लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

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मल त्याग सम्बन्धी लक्षण:

जब शिशु मल त्याग करते समय 10-15 मिनट तक जोर लगाए और ऐसा करते समय उसका चेहरा लाल हो जाए, तो समझ लेना चाहिए कि शिशु को मल त्याग करने में मुश्किल हो रही है। मल त्यागने में देरी होना, कुछ मामलों में शिशु कई दिनों तक मल त्याग नहीं करते हैं। यह भी कब्ज का ही लक्षण है। यदि मल को त्याग करते समय शिशु परेशान हो जाए, तो ऐसा मल निकलने में दर्द के कारण होता है। ऐसे में भी आपको शिशु को कब्ज की समस्या होने का संदेह हो जाना चाहिए। 

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शारीरिक लक्षण:

शिशु के पेट का निचला हिस्सा सामान्य से अधिक फूला हुआ और छुने में कठोर लगे, तो यह कब्ज का संकेत हो सकता है। इसके अलावा अगर शिशु का मल किसी गोली की तरह और सख्त दिखाई दे, तो भी यह शिशु को कब्ज होने का ही लक्षण है।

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शिशु में कब्ज होने के कारणों को आगे विस्तार से बताया जा रहा है।

रोग जिनकी वजह से शिशुओं में कब्ज की समस्या हो सकती है:

पोषण की कमी से बेबी को कब्ज हो सकती है:

  • फाइबर की कमी – आहार में फाइबर की कमी की वजह से शिशुओं को कब्ज होने लगती है।​
  • पानी की कमी – सही तरह से तरल पदार्थ न लेने से शिशु का मल बाहर आने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। स्तनपान करने वाले शिशु मां के दूध से ही पानी की जरूरत को पूरा कर लेते हैं। लेकिन 6 माह या उससे थोड़े बड़े शिशु को पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने से कब्ज की समस्या होने लगती है। (और पढ़ें - शरीर में पानी की कमी को कैसे दूर)

दूध सम्बन्धी समस्या भी कब्ज का कारण हो सकती हैं:

  • पर्याप्त स्तनपान न करना - अगर शिशु को पर्याप्त स्तनपान नहीं मिलता हैं, तो उसका मल कठोर हो जाता है।
  • फॉर्मूला दूध में बदलाव करना - जब शिशुओं के फॉर्मूला दूध में बदलाव किया जाता है, तो नया फॉर्मूला दूध अच्छी प्रतिक्रिया नहीं दे पाता है। शिशु को नए फार्मूला को पाचने में मुश्किल होती है, जिससे उसको कब्ज हो सकती है। (और पढ़ें - बच्चों की इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं)

जब तक बच्चा स्वस्थ नहीं होता, तब तक आपका उसके स्वास्थ्य के प्रति चिंता ग्रस्त होना स्वाभाविक हैं। हालांकि, यदि आपका शिशु तीन महीने से कम हो तो कब्ज होने पर उसको किसी डॉक्टर को दिखाएं।

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अगर आपका शिशु खाना नहीं खा रहा हो और उसका वजन तेजी से गिरने के साथ ही मल में खून आ रहा हो, तो इस स्थिति में आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। साथ ही शिशु की डाइड में आवश्यक बदलाव करने के बाद भी कब्ज की समस्या बनी रहे, तो इससे उसके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। 4 माह से कम आयु के शिशु को मल त्याग करने में एक दिन से ज्यादा समय लगे या उसका मल सख्त हो तो आपको उसे अपने डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।   

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नवजात शिशु की कब्ज का इलाज डाइट और जीवनशैली में बदलाव से किया जा सकता है। इस समस्या के लिए दवाइयों का उपयोग, तब तक नहीं करना चाहिए जब तक वह बेहद जरूरी न हो जाए। 

ग्लिसरीन सपोसिटरीज, ग्लिसरीन की कैप्सूल होती हैं, इन कैप्सूल को शिशु के गुदा से मलाशय के अंदर डाला जाता है। सपोसिटरी मात्र ऐसा चिकित्सीय इलाज है जिसको एक साल से कम आयु के शिशुओं के लिए सही माना जाता है। हालांकि इसके लिए डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए, माता-पिता इस तरीके में सपोसिटरी को खुद ही लगाने का प्रयास न करें। इसकी कैप्सूल गुदा के भीतर मल के साथ घुल जाती है, और मल को बाहर आने में मदद करती हैं। स्तनपान करने वाले शिशुओं को ग्लिसरीन सपोसिटरीज देने की सलाह दी जाती है, ऐसा इसलिए क्योंकि केवल स्तनपान करने वाले शिशुओं को फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ नहीं दिये जा सकते हैं।

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डॉक्टर छह माह से अधिक आयु के शिशुओं की डाइट में उच्च फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ और पर्याप्त पानी को शामिल करने की सलाह देते हैं। नवजात शिशु को कब्ज होने पर माता-पिता अपने शिशु के लिए डाइटिशियन से विशेष डाइड चार्ट भी तैयार करवा सकते हैं।

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बाल रोग विशेषज्ञ नवजात शिशु को कब्ज से छुटकारा दिलाने के लिए किसी भी तरह के टॉनिक, रेचक (लैक्सेटिव) और एनीमा आदि का इस्तेमाल करने की सलाह नहीं देते हैं। शिशु के कब्ज को ठीक करने के लिए घेरलू उपायों को ही प्राथमिकताएं दी जानी चाहिए।

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शिशु को कब्ज का इलाज करने से कहीं आसान होता है, इस समस्या का पहले से ही बचाव करना। आगे आपको कब्ज की समस्या से बचाव के लिए उपयोगी सलाह दी गई हैं।

स्तनपान है जरूरी:

  • डॉक्टर ऐसा कहते हैं कि स्तनपान करने वाले शिशुओं को कब्ज की समस्या कम होती है। तो अपने शिशु को स्तनपान जरूर करवाएं। (और पढ़ें - स्तनपान के फायदे)
  • अगर आप शिशु को स्तनपान करवा रहीं हैं, तो 5-6 महीने से कम आयु के शिशु को पानी देने की सलाह नहीं दी जाती है। अगर आपको ऐसा लगता है कि शिशु स्तनपान करना चाहता है तो उसको स्तनपान करा दें।

फार्मूला देने का सही तरीका:

  • गर्मी के दिनों में अगर आप शिशु को फार्मूला देती हैं, तो ऐसे मौसम में उनको थोड़ी मात्रा में पानी भी पीने के लिए दें। (और पढ़ें - बच्चे की मालिश कैसे करें)
  • अगर आप शिशु को फार्मूला आहार दे रहीं हो, तो उसमें अन्य फार्मूला आहार को शामिल न करें। अपने शिशु के लिए सही फार्मूला का चयन करें। इस बारे में आप डॉक्टर से सलाह ले सकती हैं। फार्मूला आहार को देने के सभी निर्देशों का पालन सही तरह से करें। (और पढ़ें - नवजात शिशु को खांसी क्यों होती है)

ठोस आहार देने का सही तरीका:

  • अगर आपने शिशु को ठोस आहार देना शुरू कर दिया है, तो उनकी डाइट में सब्जियों और फलों युक्त स्वस्थ आहार देने का ही प्रयास करें। (और पढ़ें - पौष्टिक आहार के फायदे)
  • शिशु को ठोस आहार देने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि आप शिशु पर्याप्त मात्रा में पानी पीला रही हों। 

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