बीसीजी के टीके को कई देशों में इस्तेमाल किया जाता है। बीसीजी का पूरा नाम बेसिल कालमेट ग्युरिन (Bacille Calmette-Guerin) है। यह टीका मुख्यतः शिशु को टीबी और मेनिनजाइटिस (Encephalitis) से सुरक्षित रखने के लिए लगाया जाता है। टीबी के अलावा बीसीजी टीका या इंजेक्शन ब्लैडर कैंसर और ब्लैडर ट्यूमर होने के इलाज के लिए भी उपयोग किया जाता है। भारत के शिशु टीकाकरण में इसको भी शामिल किया गया है। बीसीजी वैक्सीन से शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता टीबी फैलाने वाले रोगाणुओं से लड़ने के लिए सक्षम बनती है।

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बीसीजी टीकाकरण के महत्व के चलते इस लेख में आपको बीसीजी के विषय में विस्तार से बताया गया है। साथ ही इस लेख में आपको बीसीजी का टीका क्या है, बीसीजी का टीका कब लगता है, बीसीजी वैक्सीन की खोज कब हुई, बीसीजी के साइड इफेक्ट और बीसीजी का टीका लगाने के बाद की समस्याएं और देखभाल के बारे में भी विस्तार से बताया गया है।

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  1. बीसीजी टीका क्या है - BCG tika kya hai
  2. बीसीजी का टीका कब लगता है - BCG ka tika kab lagta hai
  3. बीसीजी के टीके की खोज - BCG ke tike ki khoj
  4. बीसीजी वैक्सीन साइड इफेक्ट - BCG vaccine side effect
  5. बीसीजी टीका लगाने के बाद की समस्या और देखभाल - BCG tika lagane ke baad ki samasya aur dekhbhal
बीसीजी का टीका क्या है और क्यों लगाया जाता है के डॉक्टर

बीसीजी टीका मुख्य रूप से टीबी से बचाव के लिए लगाया जाता है। बीसीजी टीका उन शिशुओं को दिया जाता है जिनको टीबी होने की संभावनाएं अधिक होती है। इसके साथ ही जिन देशों में टीबी और कुष्ठ रोग आम समस्या होती है, उन देशों में शिशु के जन्म के समय ही बीसीजी का टीका लगाने की सलाह दी जाती है। इतना ही नहीं बीसीजी बुरूली अल्सर (Buruli ulcer) इंफेक्शन व अन्य नॉन ट्यूबरकुलोस माईकोबैक्टीरिया (nontuberculous mycobateria) इंफेक्शन से भी सुरक्षा प्रदान करता है। इसके अलावा कुछ मामलों में ब्लैडर कैंसर के इलाज में भी इसका उपयोग किया जाता है।

बीसीजी से आपको टीबी के संक्रमण से करीब बीस सालों तक बचाव होता है। बीसीजी वैक्सीन को इंजेक्शन के रूप में शिशु की बाजू पर लगाया जाता है। 

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बीसीजी का टीका कब और किसको लगता है। इस बारे में नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

  • बीसीजी का टीका छह साल से कम आयु के बच्चों को लगाया जाता है। यदि शिशु या बच्चा तीन महीनों के लिए किसी ऐसे देश में जाने वाला हो, जहां पर ट्यूबरकुलोसिस के मामले 0.04 प्रतिशत तक होते हैं।
  • ट्यूबरकुलोसिस संक्रमित देशों में बार-बार जाना। (और पढ़ें - बच्चों में भूख ना लगने के कारण)
  • यदि घर का कोई सदस्य ट्यूबरकुलोसिस के अधिक मामलों वाले देश से आए, तो ऐसे में नवजात शिशु को बीसीजी की आवश्यकता होती है। (और पढ़ें - उम्र के अनुसार लंबाई और वजन का चार्ट)
  • शिशु के माता-पिता या परिवार में किसी सदस्य को पहले कभी कुष्ठ रोग हुआ हो।
  • यदि छह साल से कम आयु के शिशु को बीसीजी नहीं दिया गया हो और हाल ही उसके घर के किसी सदस्य में कुष्ठ रोग की पहचान की गई हो। (और पढ़ें - डायपर रैश के उपचार)
     

बीसीजी टीका लगाने का सही समय

  • शिशु के जन्म के कुछ दिनों बाद से छह माह तक बीसीजी का टीका लगाए जाने का सही समय माना जाता है। लेकिन बच्चे के पांच साल का होने तक भी आप उसको बीसीजी का टीका लगवा सकते हैं। (और पढ़ें - नवजात शिशु का वजन कितना होता है)
  • अगर आपका शिशु छह माह से अधिक आयु का हो गया हो, तो ऐसे में आप शिशु में टीबी की जांच करवा सकते हैं। टेस्ट की रिपोर्ट के आधार पर इस बात को निर्धारित किया जाता है कि शिशु को बीसीजी वैक्सीन दी जाएगी या नहीं। (और पढ़ें - शिशु का वजन कैसे बढ़ाएं

बीसीजी का टीका किसको नहीं लगवाना चाहिए।

  • जिस नवजात शिशु का बॉडी मास 2000 ग्राम से कम हो। (और पढ़ें - बच्चे की मालिश कैसे करें)
  • शिशु, जिनमें जन्म से ही प्रतिरक्षा की कमी हो।
  • जिस व्यक्ति को पहले या वर्तमान में टीबी हुआ हो।
  • कमजोर रोगप्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति जैसे एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति या जो अंग प्रत्यारोपण करने वाले हो।
  • गर्भावस्था में महिला बीसीजी नहीं दिया जाना चाहिए। भले ही बीसीजी से भ्रूण को किसी प्रकार की हानि न हो, पर फिर भी इस विषय पर अन्य अध्ययन की आवश्यकता है।
  • किडनी रोग से ग्रसित मरीज।  
  • गंभीर रोग से ग्रसित व्यक्ति को भी बीसीजी नहीं दिया जाना चाहिए।  

बीसीजी वैक्सीन को माईकोबैक्टीरियम बोविस (Mycobacterium bovis) के सबसे कमजोर बैक्टीरिया से तैयार किया जाता है। यह बैक्टीरिया टीबी के मुख्य कारण माने जाने वाले बैक्टीरिया एम. ट्यूबरकुलोसिस (M. tuberculosis) से संबंधित होता है। यह दवा 13 सालों (1908 से 1921 तक) में तैयार की गई थी। इसको फ्रांस के बैक्टीरियोलोजिस्ट (Bacteriologist) एडबर्ट कैलमिटी व कैमिली ग्युरिन ने तैयार किया था। इन दोनों ही बैक्टीरियोलोजिस्ट के नाम के कारण इस वैक्सीन को बेसिल कालमेट ग्युरिन (Bacillus calmette-guerin) नाम दिया गया। यह टीका टीबी के उच्च जोखिम वाले शिशुओं को जन्म के तुरंत बाद दिया जाता है। बीसीजी वैक्सीन टीबी से बचाव के लिए शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता को तैयार करती है।  

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बीसीजी वैक्सीन के बाद कई तरह के साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इनको नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

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शिशु या बच्चे को टीका लगाने के बाद उनमें प्रतिक्रिया होना आम बात है। बेहद ही कम मामलों में बीसीजी से लंबे समय के लिए समस्या होती है। इस इंजेक्शन को बच्चे की बाईं बाजू की त्वचा के अंदर लगाया जाता है। अधिकतर बच्चों को इंजेक्शन की जगह पर फोड़ा हो जाता है। एक बार फोड़ा सही होने पर इस जगह पर छोटा सा निशान रह जाता है। इंजेक्शन लगाने के बाद बच्चे को निम्न तरह की समस्या होती है।

  • एक से छह सप्ताह में इंजेक्शन की जगह पर लाल रंग का फफोला हो सकता है।
  • छह से बारह सप्ताह के अंदर फफोले से द्रव बहने लगता है। ऐसा होने पर आपको इसे हवादार कपड़े से ढककर रखना चाहिए। इसमें किसी प्रकार की चिपकने वाली पट्टी को ना लगाएं।
  • इसको ठीक होने में तीन महीनों का समय लग सकता है।

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बीसीजी टीके के बाद देखभाल

  • बीसीजी के इंजेक्शन वाली जगह को सूखा रखने का प्रयास करें और साथ ही स्वच्छता का भी पूरा ध्यान दें। (और पढ़ें - माँ का दूध कैसे बढ़ाएं)
  • बच्चे के इंजेक्शन वाली जगह के फफोले को खुद ना फोड़े। ऐसा करने से बच्चे को दर्द हो सकता है और उसको ठीक होने में अधिक समय लग सकता है। (और पढें - नवजात शिशु को सर्दी जुकाम)
  • इंजेक्शन की जगह पर डॉक्टर से पूछे बिना किसी भी तरह की दवाई या मरहम न लगाएं।
  • बच्चे के इंजेक्शन वाले हाथ पर कुछ दिनों के लिए मालिश न करें। (और पढ़ें - बच्चे की मालिश का तेल)
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