आयुर्वेद की मदद से नींद से संबंधित विकारों को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार और औषधियों के प्रयोग से निद्रानाश या अनिद्रा का इलाज किया जाता है। इनसोमनिया नींद से संबंधित एक विकार है जिसमें व्‍यक्‍ति को नींद आने में दिक्‍कत होती है। शारीरिक और मानसिक आराम एवं पर्याप्‍त मात्रा में नींद लाने के लिए व्‍यक्‍ति की प्रकृति के आधार पर जीवनशैली से जुड़े दिशा-निर्देश दिए जाते हैं।

निद्रानाश को दो प्रकार में वर्गीकृत किया गया है – स्‍वतंत्र निद्रानाश (प्राइमरी इनसोमनिया) और परतंत्र निद्रानाश (सेकेंडरी इनसोमनिया)। स्‍वतंत्र निद्रानाश में इनसोमनिया एक प्रमुख बीमारी के रूप में सामने आती है जबकि परतंत्र निद्रानाश में किसी अन्‍य बीमारी के लक्षण या कारण के रूप में इनसोमनिया की समस्‍या होती है। मेध्‍य रसायन (मस्तिष्‍क को ऊर्जा देने वाले) और पंचकर्म थेरेपी से शरीर का शुद्धिकरण कर एवं आराम देकर इनसोमनिया को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

आयुर्वेद में सोने से पहले कुछ घरेलू उपायों की सलाह दी जाती है जिनमें दूध पीना, सादी या खसखस के बीज खाना, गुड़ के साथ पिप्‍पली की जड़ खाना आदि शामिल है। बेहतर नींद के लिए योगासन भी लाभकारी पाए गए हैं।

(और पढ़ें - नींद संबंधी विकार के लक्षण)

अनिद्रा की समस्‍या को दूर करने के लिए कुछ आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों जैसे कि जटामांसी, तगार और सर्पगंधा का इस्‍तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद में इनसोमनिया के इलाज में भावनाओं और व्‍यवहार को नियंत्रित कर व्‍यक्‍ति की नींद से जुड़ी आदतों में सकारात्‍मक बदलाव लाया जाता है।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से अनिद्रा - Ayurveda ke anusar Anidra
  2. अनिद्रा का आयुर्वेदिक उपाय - Anidra ka ayurvedic upay
  3. अनिद्रा की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Anidra ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार अनिद्रा होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Insomnia me kya kare kya na kare
  5. अनिद्रा के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Anidra ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. अनिद्रा की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Anidra ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. अनिद्रा की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Insomnia ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
अनिद्रा की आयुर्वेदिक दवा और उपाय के डॉक्टर

अनिद्रा या इनसोमनिया नींद से संबंधित एक विकार है जोकि शरीर में पित्त और वात दोष के बढ़ने के कारण होता है। कुछ बीमारियों जैसे कि अस्‍थमा, मांसपेशियों में थकान, आर्थराइटिस, डायबिटीज, कुछ विशेष दवाएं लेने या खराब जीवनशैली की वजह से शरीर में त्रिदोष असंतुलित हो सकते हैं जिस कारण नींद से जुड़ी समस्‍याएं होने लगती हैं।

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(और पढ़ें - वात पित्त कफ क्या है)

रात में जागना, सोने के समय पर नींद आने में दिक्‍कत होना, रात को जागने के बाद दोबारा सोने में दिक्‍कत होना, एकाग्रता का स्तर कम होना, दिन में थकान महसूस होना और सुबह जल्‍दी उठ जाना इनसोमनिया के कुछ लक्षण हैं।

(और पढ़ें - कम नींद लेने के नुकसान)

नींद की कमी की वजह से अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं जैसे कि कब्‍ज, बदन दर्द, भूख में कमी, असहजता और रूखी त्‍वचा होने लगती है। आयुर्वेदिक उपचार द्वारा शरीर में कफ और तमा के स्‍तर में सुधार लाया जाता है जिससे अच्‍छी नींद आने में मदद मिलती है।

(और पढ़ें - भूख बढ़ाने का तरीका)

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  • निदान परिवर्जन
    • निदान परिवर्जन का मतलब है रोग के कारण को दूर करना। इसमें ऐसी प्रक्रियाओं का इस्‍तेमाल किया जाता है जो बीमारी के कारण से राहत दिलाने में मदद कर सकती हैं।
    • असंतुलित आहार और गलत खाद्य पदार्थ बीमारियों के प्रमुख कारणों में से एक होते हैं। आहारज निदान (आहार संबंधित कारण) जैसे लंघन (व्रत), वाटिका अन्‍नपान (शरीर में वात को बढ़ाने वाला आहार) आदि से बचना चाहिए।
    • आयुर्वेद में इनसोमनिया के प्रमुख इलाज के तौर पर निदान परिवर्जन की सलाह दी जाती है। अनिद्रा से पूरी तरह से छुटकारा पाने के लिए इसके प्रमुख कारणों जैसे कि वात या पित्त असंतुलित करने वाले आहार और आदतों, अनिद्रा पैदा करने वाली दवाएं या उत्तेजक और प्राकृतिक इच्‍छाओं (मल त्‍याग या पेशाब) को रोकने से बचें। 
    • निदान परिवर्जन रोग को बढ़ने और आगे कभी दोबारा होने से रोकता है। इस तरह यह चिकित्‍सा अनिद्रा के इलाज में मदद करती है।
       
  • शोधन चिकित्‍सा (शुद्धिकरण उपचार)
    निद्रानाश के इलाज के लिए शोधन चिकित्‍सा में विरेचन (मल निष्‍कासन की विधि), बस्ती कर्म  (एनिमा) और नास्‍य (नाक द्वारा औषधि डालने की विधि) की सलाह दी जाती है।
     
    • विरेचन
      • विरेचन, पंचकर्म (शरीर को साफ करने वाली पांच चिकित्‍साओं का संयोजन) में से एक है। इस प्रक्रिया में रेचक जैसे कि एलोवेरा और रूबर्ब देकर शरीर से अत्‍यधिक पित्त को बाहर निकाला जाता है।
      • पित्त से संबंधित रोगों जैसे कि अनिद्रा के इलाज में प्रमुख तौर पर विरेचन का इस्‍तेमाल किया जाता है। विरेचन का इस्‍तेमाल लिवर से संबंधित विकारों, पित्ताशय की पथरी, किडनी स्‍टोन, पेचिश और कब्‍ज के इलाज में किया जाता है। (और पढ़ें - किडनी स्टोन का आयुर्वेदिक इलाज)
      • अगर हाल ही में आपका बुखार ठीक हुआ है या असंतुलित वात दोष से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति, अल्‍सर या खराब पाचन वाले व्‍यक्‍ति को विरेचन कर्म की सलाह नहीं दी जाती है। (और पढ़ें - पाचन शक्ति बढ़ाने के उपाय)
         
    • बस्‍ती कर्म (एनिमा)
      • वात दोष को कम करने में पंचकर्म चिकित्‍सा में से बस्‍ती कर्म सबसे प्रमुख माना जाता है। इस उपचार में औषधीय काढ़े या तेल से रेचक (जुलाब) क्रिया को प्रेरित किया जाता है।
      • ये शुष्क ऊतकों और अंगों को नमी पहुंचाकर वात दोष और इससे संबंधित विकारों को कम करता है। बस्‍ती उपचार इनसोमनिया के लिए दिया जाता है जिसमें तिक्तक्षीर बस्‍ती और यापन बस्‍ती या मात्र बस्‍ती शामिल है।
         
    • नास्य 
      • पंचकर्म में से एक नास्‍य कर्म में नासिका मार्ग से जड़ी बूटियां और हर्बल मिश्रण शरीर में डाले जाते हैं। ये सिर, गले, इंद्रियों और गर्दन से संबंधित रोगों के इलाज में मदद कर सकता है। नास्‍य कर्म रोग को ठीक करने के साथ-साथ इन अंगों की मांसपेशियों को भी स्‍वस्‍थ करता है।
      • ट्यूमर, दौरे पड़ने, दांतों में ढीलापन, बोलने में दिक्‍कत होना, आवाज़ बैठना और चेहरे के लकवे का इलाज नास्‍य कर्म से हो सकता है। नास्‍य कर्म के पांच रूपों (धुएं के ज़रिए, दबाव से, हवा में उड़ाकर, सूंघने और लेप) में से किसी एक का प्रयोग कर जड़ी बूटियां दी जाती हैं।
      • नास्‍य कर्म में अनिद्रा के लिए गौ घृत और ब्राह्मी घृत जैसी औषधियों का प्रयोग किया जाता है। ये वात और पित्त दोष को शांत, तनाव में कमी और बेहतर नींद लाने में उपयोगी हैं।
         
  • शमन चिकित्‍सा
    निद्रानाश के इलाज के लिए दी जा रही शमन चिकित्‍सा में स्‍नेहन (तेल लगाना), मूर्धा तेल (सिर पर तेल) और धारा का प्रयोग किया जाता है।
     
    • स्‍नेहन
      • आयुर्वेद की इस चिकित्‍सा में बाहरी या अंदरूनी तौर पर तेल लगाया जाता है। इस प्रक्रिया में तिल के तेल, औषधीय तेल और सुंगंधित तेलों का इस्‍तेमाल किया जाता है।
      • स्‍नेहन के साथ सबसे ज्‍यादा स्‍नेहपान (तेल या घी पीना) की सलाह दी जाती है। यष्टिमधु (मुलेठी), गुडुची (गिलोय), हरीतकी (हरड़) और कुटकी जैसी जड़ी बूटियों को तेल में मिलाकर स्‍नेहन किया जाता है।
      • ये चिकित्‍सा कई रोगों के इलाज में मदद करती है जिसमें शराब की लत, कंपकंपी, आ‍र्थराइटिस, शरीर का कोई एक अंग कांपना, कब्‍ज और अनिद्रा शामिल है। इस प्रक्रिया से शरीर मजबूत, स्‍वस्‍थ और फुर्तीला बनता है। (और पढ़ें - कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज)
         
    • मूर्धा तेल
      • इस प्रक्रिया में बाल झड़ने, सफेद बालों और पोलोनिका (बालों का एक-दूसरे से चिपका होना), सिर की त्‍वचा का फटना, सिर से सम्बंधित वात विकार और अनिद्रा के इलाज के लिए सिर पर तेल लगाया जाता है।
      • गुनगुने तिल के तेल, क्षीरबाला तेल या अन्‍य औषधीय तेल को सिर पर लगाकर लम्बे समय तक बिना किसी रूकावट के नींद लाने एवं नींद की गुणवत्ता को बेहतर किया जाता है।
      • इस कर्म में सिर पर तेल लगाने के लिए दो तरीकों का इस्‍तेमाल किया जाता है – 1) एक धार में तेल डालना, ये फोड़े-फुंसी, घाव, अल्‍सर और जलन से छुटकारा दिलाने में मदद करता है। 2) तेल में डूबे हुए कपड़े को सिर पर लपेटना, ये जलने और बाल झड़ने की समस्‍या से छुटकारा दिलाता है।
         
    • धारा
      • इस प्रक्रिया में गर्म औषधीय तरल पदार्थ और तेल का मिश्रण शरीर के ऊपर डाला जाता है। पित्त और वात के असंतु‍लन के कारण हुए विकारों के इलाज में इस चिकित्‍सा का प्रयोग किया जाता है। इस चिकित्‍सा में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियां और खाद्य पदार्थ शरीर में त्रिदोषों के असंतुलन में कमी लाते हैं।
      • ये शरीर से अमा (विषाक्‍त पदार्थ), कफ और अतिरिक्‍त वसा को बाहर निकालती है। अनिद्रा के इलाज में धारा चिकित्‍सा के लिए चंदनादि तेल और क्षीरबाला तेल का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
      • धारा चिकित्‍सा में दो तरीकों का इस्‍तेमाल किया जाता है – 1) एक टब को औषधीय काढ़े से भरकर उसमें मरीज को बिठाना, 2) औषधीय तरल में भीगे कपड़े को प्रभावित हिस्‍से पर लगाना। इससे शरीर को आराम मिलता है और मानसिक एवं शारीरिक तनाव में कमी आती है। इस तरह बेहतर नींद आती है और अनिद्रा को भी नियंत्रित करने में मदद मिलती है। (और पढ़ें - मानसिक रोग के लक्षण)
         
  • मेध्‍य रसायन
    • मेध्य रसायन मस्तिष्‍क पर कार्य कर बुद्धि को बढ़ाने का काम करता है। इस चिकित्‍सा में दिमाग के लिए शक्‍तिवर्द्धक जैसे कि ब्राह्मी का इस्‍तेमाल किया जाता है। ब्राह्मी जैसी जड़ी बूटियां याददाश्‍त को बढ़ाने, अवसाद रोधी गुणों और नींद लाने में मदद करती हैं।
    • मेध्‍य रसायन दिमाग के कार्यों को भी ऊर्जा प्रदान करता है। अन्‍य हर्बल मिश्रणों जैसे कि गुडुची का रस, मुलेठी के पाउडर के साथ दूध और शंखपुष्‍पी की पत्तियों से बने पेस्‍ट आदि का इस्‍तेमाल भी आयुर्वेद में हर्बल शक्‍तिवर्द्धक के रूप में किया जाता है। अनिद्रा के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली जटामांसी भी मेध्‍य जड़ी बूटी है। 

(और पढ़ें - गहरी नींद के आसान उपाय)

अनिद्रा के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

जातिफल (जायफल)

  • जायफल में मौजूद घटकों का इस्‍तेमाल मक्‍खन और सुगंधित तेल बनाने के लिए किया जाता है। इस जड़ी बूटी से बने तेल में औषधीय गुण मौजूद होते हैं जोकि त्‍वचा संबंधित विकारों और गठिया के इलाज में मदद करते हैं। परफ्यूम और साबुन बनाने के लिए भी इन तेलों का इस्‍तेमाल किया जाता है।
  • अन्‍य मसालों की तुलना में दर्द निवारक गुणों के लिए जायफल को अधिक जाना जाता है। इसमें संकुचक, उत्तेजक और वायुनाशी गुण भी मौजूद होते हैं। ये असंयमिता, पेट दर्द, चिंता, घबराहट और अनिद्रा से राहत पाने में मदद करता है।
  • 15 दिनों तक सोने से पहले दूध के साथ जातिफल का चूर्ण ले सकते हैं। आप इसे चिकित्‍सक के निर्देशानुसार भी ले सकते हैं।
     

पिप्‍पलीमूल (पिप्‍पली की जड़)

  • पिप्‍पली में कफ निस्‍सारक (बलगम निकालने वाले), दर्द निवारक, कृमिनाशक (कीड़े मारने वाले) और कामोत्तेजक (लिबिडो बढ़ाने वाले) गुण मौजूद होते हैं। ये श्‍वसन और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। (और पढ़ें - कामेच्छा बढ़ाने के लिए योग)
  • पिप्‍पली का इस्‍तेमाल कई रोगों जैसे कि अस्‍थमा, गठिया, साइटिका, लेरिन्जाइटिस (स्‍वर तंत्रों में सूजन) और जुकाम के इलाज में किया जाता है। ये शरीर से अमा को बाहर निकालकर और पाचन अग्‍नि को बेहतर कर रोग का इलाज करने में मदद करती है।
  • पिप्‍पली की मूल जड़ से बने पाउडर का इस्‍तेमाल अनिद्रा के इलाज में किया जाता है। आप पिप्‍पलीमूल चूर्ण को 15 दिनों से 1 महीने तक दिन में दो बार खाने के बाद गुड़ के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

सर्पगंधा 

  • हाई ब्‍लड प्रेशर के इलाज में प्रमुख तौर पर सर्पगंधा का इस्‍तेमाल किया जाता है। ये शरीर को आराम और ब्‍लड प्रेशर के स्‍तर को सामान्य करने में मदद करता है। इस तरह से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की गड़बड़ के कारण हुए रोगों के इलाज में मदद करता है। (और पढ़ें - ब्लड प्रेशर नार्मल कितना होना चाहिए)
  • ये काढ़े और गोली के रूप में उपलब्‍ध है एवं बुखार, पेचिश, आंत्र विकार (आंतों से सम्बंधित) और उन्‍माद (पागलपन) के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। इसके पौधे में शांति देने वाले गुण भी होते हैं जो इसे अनिद्रा के इलाज में उपयोगी बनाते हैं। (और पढ़ें - मानसिक रोग का घरेलू उपचार)
  • 15 दिनों से 1 महीने तक दिन में दो बार खाने के बाद गुनगुने पानी के साथ सर्पगंधा चूर्ण या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

तगार

  • आयुर्वेद में तगार को इसके शामक (शांति देने वाले), वायुनाशक और उत्तेजक कार्य के लिए जाना जाता है। ये श्‍वसन, तंत्रिका और पाचन प्रणाली पर कार्य करती है।
  • वात से संबंधित विकारों के इलाज में तगार को सर्वोत्तम जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। माइग्रेन, डिसमेनोरिया (मासिक धर्म में दर्द), प्रलाप (उलझन में रहना), वर्टिगो, मिर्गी, इनसोमनिया और घबराहट के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। तगार खून, नसों की नाडियों और जोड़ों से अमा को बाहर निकालती है।
  • ये गोली, काढ़े, पाउडर या आसव (तरल में जड़ी बूटी को डुबोकर तैयार किया गया) के रूप में उपलब्‍ध है। आप तगार चूर्ण को 15 दिनों से लेकर 1 महीने तक दिन में दो बार खाना खाने के बाद पानी के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

जटामांसी

  • अनिद्रा के इलाज में जटामांसी भी असरकारी होती है। जटामांसी मस्तिष्‍क के लिए शक्‍तिवर्द्धक के रूप में कार्य करती है। ये तंत्रिका तंत्र और दिमाग को आराम पहुंचाती है और रक्‍त वाहिकाओं को चौड़ा करती है। (और पढ़ें - दिमाग को शांत कैसे रखें)  
  • इसमें चिंता को दूर करने वाले, अवसाद रोधी और ब्‍लड प्रेशर को बढ़ने से रोकने वाले गुण मौजूद हैं। जटामांसी तनाव को कम करती है और बेहतर नींद लाने में मदद करती है। इस तरह जटामांसी तनाव से संबंधित समस्‍याओं और अनिद्रा के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें - तनाव के लिए योगासन)  

अनिद्रा की आयुर्वेदिक औषधियां

सर्पगंधा घन वटी

  • अनिद्रा, हाइपरटेंशन और चिंता के इलाज के लिए आयुर्वेद में सर्पगंधा घन वटी का इस्‍तेमाल किया जाता है। इस मिश्रण में पिप्‍पलीमूल, सर्पगंधा, खुरासानी अजवाइन और जटामांसी शामिल है।
  • आप सर्पगंधा घन वटी को 15 दिनों से लेकर 1 महीने तक दिन में दो बार खाना खाने के बाद पानी के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

अश्वगन्धादि चूर्ण

  • अश्वगंधा कार्डियो के लिए शक्‍तिवर्द्धक है एवं इसमें जीवाणु रोधी, बढ़ती उम्र को रोकने वाले और लिवर को सुरक्षा देने वाले गुण मौजूद होते हैं। ये प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है। अश्वगन्धादि चूर्ण एक पॉलीहर्बल (दो या अनेक जड़ी बूटियों से बना) मिश्रण है जिसमें प्रमुख तत्‍व के रूप में अश्वगंधा मौजूद है। (और पढ़ें - बढ़ती उम्र को रोकने के उपाय)
  • अश्वगंधा दिनभर शरीर में ऊर्जा को बनाए रखने और रात के समय बेहतर नींद लाने में मदद करती है। इस मिश्रण को विशेष तौर पर त्‍वचा रोगों जैसे कि सफेद दाग के इलाज के लिए लेने की सलाह दी जाती है। ये समय से पहले बालों के सफेद होने और त्‍वचा पर झुर्रियां आने की समस्‍या को भी दूर करता है। (और पढ़ें - झुर्रियों के लिए क्रीम)  
  • आप अश्वगन्धादि चूर्ण को 15 दिनों से लेकर 1 महीने तक दिन में दो बार खाना खाने के बाद दूध के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

सारस्‍वत चूर्ण

  • आयुर्वेद के अनुसार सारस्‍वत चूर्ण के नियमित सेवन से याददाश्‍त, बुद्धि, ज्ञान और मानसिक कार्यों में सुधार आता है। सारस्‍वत चूर्ण में काला नमक, अश्‍वगंधा, शुंथि (सूखी अदरक), ब्राह्मी, पिप्‍पली और अन्‍य जड़ी बूटियां मौजूद हैं।
  • इसका इस्‍तेमाल कई मानसिक रोगों जैसे कि डिप्रेशन, याददाश्‍त में कमी और मनोविकृति के इलाज में किया जाता है। ये बेहतर नींद लाने में मदद करता है और इसी गुण की वजह से ये अनिद्रा के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें - याददाश्त कमजोर होने के कारण)  
  • आप सारस्‍वत चूर्ण को 15 दिनों से लेकर 1 महीने तक दिन में दो बार खाना खाने के बाद घी (क्‍लैरिफाइड मक्‍खन - वसायुक्त मक्खन से दूध के ठोस पदार्थ और पानी को निकालने के लिए दूध के वसा को हटाना) के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

आप इन औषधियों के अलावा माय उपचार का प्राकृतिक सप्लीमेंट स्प्राउट मेलाटोनिन का सेवन कर सकते हैं। साथ ही एक बात का ध्यान रखें कि व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

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क्‍या करें

  • पौष्टिक एवं आसानी से पचने वाला आहार खाएं।
  • सोने से कम से कम दो घंटे पहले डिनर करें। (और पढ़ें - रात को क्या खाना चाहिए)  
  • आरामदायक बिस्‍तर पर सोएं और अपने पलंग को किसी शांत एवं आरामदायक जगह पर लगाएं।
  • दिमाग को शांत रखें। सकारात्‍मक सोच रखें।
  • रात के खाने के बाद कुछ समय पैदल चलें। (और पढ़ें - पैदल चलने के फायदे)  
  • रात को सोने से पहले पैरों और सिर की मालिश करें, गर्म पानी से पैरों को धोएं और दूध पीएं। भैंस का दूध फायदेमंद रहेगा। (और पढ़ें - सिर की मालिश कैसे करें)  
  • रोज नहाएं। (और पढ़ें - नहाने का सही तरीका)  
  • सोने से पहले मधुर संगीत सुनें।
  • सोने से पूर्व ध्‍यान एवं योग करें।
  • दही, घी, गन्‍ना, अंगूर, गेहूं, काले चने, दूध, शालि चावल और खसखस को अपने आहार में शामिल करें।

क्‍या न करें

एक अध्‍ययन में यह बात सामने आई है कि अश्‍वगंधा अपर्याप्‍त या कम नींद आने की समस्‍या से राहत दिलाने में कारगर है। अपर्याप्‍त या कम नींद आना इनसोमनिया के प्रमुख कारणों में से एक है।

जटामांसी और ब्राह्मी को तेल धारा के रूप में देना निद्रानाश का सर्वोत्तम उपाय है। ये चिड़चिड़ापन, अवसाद और चिंता को कम करने में भी मदद करता है। 

(और पढ़ें - क्या आधी रात को नींद खुलने से हैं परेशान?

वैसे तो आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां और उपचार से अधिकतर बीमारियों को ठीक किया जा सकता है और इनका इस्तेमाल भी सुरक्षित है लेकिन कुछ स्थितियों में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों एवं उपचार के हानिकारक प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे कि :

  • सर्पगंधा चूर्ण अधिक मात्रा में लेने से इसके शरीर पर जानलेवा प्रभाव हो सकते हैं।
  • तगार की अधिक खुराक लेने पर मानसिक रूप से कमजोर हो सकते हैं। इसकी वजह से लकवा भी मार सकता है। इसलिए चिकित्‍सक की देखरेख में ही तगार का सेवन करना चाहिए। (और पढ़ें - मानसिक मंदता के कारण)  
  • हाइपरथाइराइडिज्‍म के मरीज़ों को अश्‍वगंधा के इस्‍तेमाल से बचना चाहिए। इसकी अधिक खुराक लेने की वजह से आंतों की समस्‍या बढ़ सकती है और इसके निद्राजनक एवं आराम देकर नींद लाने वाले प्रभाव हो सकते हैं। गर्भवती महिलाओं को अश्‍वगंधा के इस्‍तेमाल से बचना चाहिए। (और पढ़ें - क्या थायराइड जानलेवा है)  
  • व्रत के दौरान, खाने से पहले और इसके बाद या प्‍यास लगने पर नास्‍य चिकित्‍सा नहीं लेनी चाहिए। नास्‍य कर्म शराब या पानी पीने के तुरंत बाद, क्रोध, स्‍नेहन, थकान या दुखी होने पर नहीं लेना चाहिए। (और पढ़ें - गुस्सा कैसे कम करें)  

स्‍वस्‍थ जीवन के लिए पर्याप्‍त नींद बहुत जरूरी होती है। ये मानसिक और शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करती है। शरीर को आराम देने एवं विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए आयुर्वेद में हर्बल टॉनिक (शक्‍तिवर्द्धक) और मिश्रणों का प्रयोग किया जाता है। इस तरह अनिद्रा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को अच्‍छी नींद आती है। निदान परिवर्जन और धारा एवं मूर्धा तेल जैसी प्रक्रियाओं से शरीर और मस्तिष्‍क को आराम पाने में मदद मिलती है।

इनसोमनिया या अनिद्रा के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां और मिश्रण चिंता, अवसाद और अन्‍य कारणों की वजह से नींद आने या नींद टूटने की समस्या में कमी लाते हैं। मानसिक शांति और शारीरिक रूप से स्‍वस्‍थ होने के लिए आयुर्वेद में योग एवं ध्‍यान करने की सलाह दी गई है। बेहतर नींद के लिए सोने से पहले या डिनर के बाद दिए गए 'शक्तिवर्द्धक (टॉनिक), खाद्य पदार्थ और उपाय प्रभावकारी साबित होते हैं।

(और पढ़ें - ज्यादा नींद आने के क्या कारण है)  

Dr Bhawna

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आयुर्वेद
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Padam Dixit

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Dr Mir Suhail Bashir

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2 वर्षों का अनुभव

Dr. Saumya Gupta

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संदर्भ

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