एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम क्‍या होता है?

एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को दिमागी बुखार भी कहा जाता है। ये बीमारी हमारे देश में कुछ खास मौसम में बहुत तेजी से फैलती है। भारत के उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्‍य में ये बीमारी सबसे ज्‍यादा पाई जाती है।

वैसे तो एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कई प्रकार होते हैं लेकिन भारत में एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के निम्न 3 प्रकार पाए जाते हैं: 

  1. चमकी बुखार के लक्षण - Acute encephalitis syndrome symptoms in Hindi
  2. चमकी बुखार के कारण - Acute encephalitis syndrome causes in Hindi
  3. चमकी बुखार से बचाव के उपाय - Prevention of Acute encephalitis syndrome in Hindi
  4. चमकी बुखार का इलाज - Acute encephalitis syndrome treatment in Hindi
  • एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से ग्रस्‍त होने पर मरीज़ को सबसे पहले बुखार आता है। बुखार के साथ दस्त या उल्‍टी भी हो सकती है। ये सभी एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के सामान्‍य लक्षणों में शामिल हैं।
  • अगर इन सब लक्षणों के साथ सिरदर्द, उल्‍टी और रोशनी से दिक्‍कत होने लगे तो ये किसी सामान्‍य बुखार नहीं बल्कि दिमागी बुखार का संकेत हैं।
  • दिमागी बुखार होने पर मरीज़ बेसुध हो जाता है और इधर-उधर की बातें करने लगता है। उसे बातें समझ नहीं आती हैं और पेशाब रोक पाने में भी दिक्‍कत होती है। (और पढ़ें - पेशाब न रोक पाने के कारण)
  • एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के गंभीर रूप लेने या समय पर इलाज न करवाने की वजह से व्‍यक्‍ति को दौरे पड़ सकते हैं या वो कोमा में भी जा सकता है। दिमागी बुखार के बिगड़ने पर मरीज़ की मृत्‍यु भी हो सकती है।
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एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम कोई एक बीमारी नहीं है बल्कि अनेक बीमारियों का समावेश है। भारत में इन्सेफेलाइटिस के दो प्रकार ज्‍यादा देखे जाते हैं जिनमें चमकी बुखार और जापानी इंसेफेलाइटिस शामिल हैं। चमकी बुखार को मुजफ्फरपुर इंसेफेलाइटिस भी कहा जाता है।

विश्‍व स्‍तर पर लोग सबसे ज्‍यादा हर्पिस एन्सेफलाइटिस का शिकार होते हैं। हर्पिस एन्सेफलाइटिस हर मौसम में पाया जाता है लेकिन चमकी बुखार और जापानी इन्सेफेलाइटिस गर्मी एवं मॉनसून के मौसम में ज्‍यादा फैलता है।

  • जापानी इंसेफेलाइटिस क्यों होता है?
    • जापानी इंसेफेलाइटिस की बात करें तो ये एक ऐसी बीमारी है जो मच्‍छर के काटने से फैलती है। क्‍युलेक्‍स विश्नोई नामक मच्‍छर इस बीमारी को मनुष्‍य में संचारित करता है। आमतौर पर ये वायरस सूअर और कुछ प्रवासी पक्षियों जैसे कि हेरॉन में पाया जाता है। ये वायरस फैलाने वाले ज्‍यादातर पक्षी पानी वाले स्‍थान में रहते हैं। यहां से इस वायरस और बीमारी को मनुष्‍य तक पहुंचाने का काम मच्‍छर करते हैं। (और पढ़ें - मच्छर के काटने से होने वाले रोग)
    • अगर क्‍युलेक्‍स विश्नोई मच्‍छर किसी व्‍यक्‍ति को काट ले तो उसमें 5 से 15 दिनों के बाद कोई लक्षण दिखने की संभावना होती है। इस समय को इंक्‍युबेशन पीरियड कहते हैं। इस पीरियड के बाद ही जापानी इंसेफेलाइटिस के लक्षण दिखने शुरु होते हैं।
       
  • चमकी बुखार क्यों होता है?
    • चमकी बुखार के स्‍पष्‍ट कारण का अब तक पता नहीं चल पाया है। सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल यूएसए और नेशनल सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल इंडिया, दोनों के शोधकर्ताओं ने मिलकर चमकी बुखार पर एक अध्‍ययन किया था।
    • इस स्‍टडी में पाया गया कि शायद लीची के मौसम या लीची खाने से इस बीमारी का संबंध हो सकता है। शोधकर्ताओं ने ये तर्क दिया कि जिस समय मुजफ्फरपुर में ये बीमारी फैल रही है वो लीची का ही मौसम है।
    • मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से पीडित सभी बच्‍चों के शरीर में शुगर की मात्रा कम पाई गई और आपको बता दें कि लीची एक ऐसा फल है जिसमें मौजूद रसायन जैसे कि हाइपोग्‍लाइसिन तथा एमसीपीजी शरीर में शुगर की मात्रा को कम कर सकते हैं। खासतौर पर खाली पेट लीची खाने या पिछली रात भोजन न कर के सुबह लीची खा लेने पर चमकी बुखार की चपेट में आने का खतरा रहता है।
    • स्‍टडी में लीची और चमकी बुखार के बीच कुछ ऐसा ही संबंध पाया गया है लेकिन ये तथ्‍य पूरी तरह से प्रमाणित नहीं हो पाया है। ये भी संभव है कि चमकी बुखार वायरस से ही होता है और लीची के सेवन से इस वायरस की तीव्रता और ज्‍यादा बढ़ जाती हो।
  • जापानी एनसेफेलिटिस
    • जापानी एनसेफेलिटिस का वैक्सीन उपलब्ध है और सरकार की नीति के अनुसार जापानी एनसेफेलिटिस के फैलने के मौसम से पहले ही खतरे वाले क्षेत्र में रहने वाले लोगों को इस वैक्सीन को लगवा लेना चाहिए।
    • जापानी एनसेफेलिटिस से बचने के लिए बहुत जरूरी है कि मच्‍छरों से दूर रहा जाए। इसके लिए पूरी बाजू के कपड़े पहनें और मच्‍छर भगाने वाली दवाओं का इस्‍तेमाल करें। (और पढ़ें - मच्छर भगाने के घरेलू उपाय )
    • अपने आसपास साफ-सफाई रखें।
    • इस मौसम में जानवरों से दूर रहें, खासतौर पर जिस क्षेत्र में सूअर घूमते हों वहा ना जाएं।
       
  • चमकी बुखार
    • चमकी बुखार से बचने की बात करें तो इस तरह के इंसेफेलाइटिस का खतरा कुपोषित बच्‍चों में ज्‍यादा रहता है। बच्‍चों को अच्‍छी तरह से खाना खिलाएं और रात को भूखा ना सोने दें। साथ ही बच्‍चों को खाली पेट लीची ना खाने दें। (और पढ़ें - कुपोषण के कारण)
    • इसके अलावा गर्मी से बचने से भी काफी हद तक चमकी बुखार का खतरा कम होता है। (और पढ़ें - गर्मी में लू से बचने के आसान उपाय)
    • उपरोक्‍त उपायों एवं बचाव के तरीकों को अपनाकर एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से बचा जा सकता है।
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  • अगर किसी व्‍य‍क्‍ति में इंसेफेलाइटिस के लक्षण जैसे कि बुखार, सिरदर्द, उल्‍टी, रोशनी से आंखों का चुंधियाना, उल्‍टी-सीधी बातें करना, बेसुध होना, दौरे पड़ना, हाथ-पैरों का कांपना या बेहोशी हो रही है तो तुरंत उस व्‍यक्‍ति को किसी नज़दीकी अस्‍पताल ले जाएं।
  • इन बीमारियों का कोई सटीक इलाज उपलब्‍ध नहीं है लेकिन सहायक उपचार इसमें बहुत जरूरी होता है। सहायक उपचार से 70 से 80 फीसदी मरीज़ों की जान बचाई जा सकती है और मरीजों के हालत को गंभीर होने से रोका जा सकता है।
  • इस बीमारी को नज़रअंदाज करने या दिमाग को क्षति पहुंचने से पहले इलाज न करने पर मरीज़ की हालत बहुत ज्‍यादा बिगड़ सकती है। इलाज में जितनी ज्यादा देरी होगी, दिमाग को होने वाले नुकसान का खतरा उतना ही ज्यादा बढ़ जाएगा। 
  • सहायक उपचार का मतलब है बुखार, सिरदर्द का इलाज एवं इसमें सबसे ज्‍यादा जरूरी है दौरों को रोकना। दौरे पड़ने पर दिमाग पर दबाव बढ़ने लगता है जिससे दिमाग को कोई ऐसी क्षति पहुंच सकती है जिसे कभी ठीक न किया जा सके। सहायक उपचार उन बीमारियों के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है जिसमें कोई इलाज उपलब्‍ध न हो। सहायक उपचार से बीमारी के लक्षणों को दूर किया जाता है।
  • इन उपायों की मदद से एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। इसके अलावा बुखार के दिमाग तक पहुंचने पर मरीज़ बेहोश हो सकता है और इस स्थिति में उसे वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है। अगर इस परिस्थिति में मरीज़ को वेंटिलेटर न मिले तो सांस रूकने की वजह से उसकी जान भी जा सकती है। इसलिए एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के सहायक उपचार से इस बीमारी को बढ़ने से रोका एवं नियंत्रित किया जा सकता है।
  • इसके अलावा चमकी बुखार में ब्‍लड शुगर को नॉर्मल रखने के लिए इंजेक्शन की मदद ली जा सकती है। ताकि जब तक बीमारी का असर रहता है तब तक लक्षणों को नियंत्रित एवं दिमाग को किसी बड़ी क्षति से बचाया जा सके। (और पढ़ें - नार्मल ब्लड शुगर लेवल कितना होना चाहिए)
  • एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की पुष्टि होने पर तुरंत इलाज करवाना बहुत जरूरी है। एक्‍यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम में किस समय उपचार शुरु हुआ है, ये बहुत मायने रखता है। उपचार में ज़रा भी देरी होने पर दिमाग को कोई ऐसा नुकसान पहुंच सकता है जिसे कभी ठीक न किया जा सकता हो।

(और पढ़ें - जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन क्या है)

संदर्भ

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