लकवा होने पर प्रभावित हिस्‍सा काम करना बंद कर देता है। लकवा शरीर के किसी एक हिस्‍से या पूरे शरीर को प्रभावित कर सकता है। किसी चोट या बीमारी के नसों की सप्‍लाई को प्रभावित करने के कारण मांसपेशियों के कार्य में बाधा आती है। आयुर्वेद में लकवे को पक्षाघात कहा गया है। वात दोष बढ़ने या असंतुलित होने पर शरीर के एक हिस्‍से के अंगों के संवेदनात्मक (महसूस करने वाले) और मोटर (मूवमेंट करने वाले) कार्यों को नुकसान पहुंचता है जिसे अर्धांग वात कहा जाता है।

आयुर्वेद में पक्षाघात को नियंत्रित करने के लिए पंचकर्म थेरेपी में से स्‍नेहन (तेल लगाने की विधि), स्‍वेदन (पसीना लाने की विधि), बस्‍ती (एनिमा) और नास्‍य (नाक में औषधि डालने की विधि) का प्रयोग किया जाता है। पक्षाघात को नियंत्रित एवं इसके इलाज में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों में अश्‍वगंधा, बला और निर्गुण्डी एवं हर्बल मिश्रण जैसे कि योगराज गुग्‍गुल तथा दशमूलारिष्‍ट का इस्‍तेमाल किया जाता है। पक्षाघात को नियंत्रित करने के लिए तीखे भोजन और धूम्रपान से दूर रह कर एवं आहार में अदरक, अंगूर, मूंग दाल और अनार को शामिल करने से मदद मिल सकती है।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से लकवा - Ayurveda ke anusar paralysis
  2. पैरालिसिस का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Lakwa ka ayurvedic upchar
  3. पक्षाघात की आयुर्वेदिक दवा और जड़ी बूटियां - Paralysis ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार लकवा होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar lakwa me kya kare kya na kare
  5. पैरालिसिस की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Paralysis ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. लकवा की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Lakwa ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. पक्षाघात के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Pakshaghat ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
लकवा की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

पक्षाघात को एक ऐसी बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो वात दोष में असंतुलन के कारण पैदा होती है। जब ये बीमारी किसी एक अंग (हाथ या पैर) को प्रभावित करती है तो इसे एकांग वात कहा जाता है। जब ये बीमारी दोनों हाथों और पैरों को प्रभावित करती है तो इसे सर्वांग वात के नाम से जाना जाता है। वाक्संग (बोलने में दिक्‍कत) और अर्दित (चेहरे पर लकवा) का संबंध पक्षाघात से हो सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार पक्षाघात को लंबे समय तक (3 से 4 महीने) नियंत्रित करने के लिए स्‍वेदन, स्‍नेहन, बस्‍ती, शिरोबस्‍ती (सिर पर तेल डालना), विरेचन आदि की जरूरत होती है। आयुर्वेद में स्ट्रोक से पहले निम्न लक्षण सामने आते हैं जिनको अगर समय पर पहचान लिया जाए और इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे लकवा का रूप लेने से रोका जा सकता है। 

  • मद:
    किसी तरह की दवा या तत्व के सेवन की वजह से उलझन में रहना या बेसुध हो जाना
  • मूर्छा:
    सीवीए (सेरेब्रोवस्‍कुलरएक्सीडेंट) या स्‍ट्रोक के कारण बेहोश होना
  • सन्‍यास:
    किसी चोट या सीवीए के कारण दिमागी रूप से कोमा में जाना

पक्षाघात के कारण शरीर के प्रभावित हिस्‍से में सुन्‍नपन और दर्द, मोटर फंक्‍शन (हाथों, टांगों और शरीर के अन्‍य बड़े भागों का संचालन और समन्‍वय) में कमी, बहुत ज्‍यादा लार निकलना और आंखों से पानी आना, गति से संबंधित विकार (जैसे कि चलने में दिक्कत होना) और बोलने में परेशानी होना (खासतौर पर जब पक्षाघात शरीर के दाएं ओर हुआ हो)।

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  • स्नेहन
    • इस चिकित्सा में 3 से 7 दिन के लिए गाढ़े औषधीय तेल को शरीर पर लगाया जाता है।
    • सामान्य उपचार के तौर पर एवं लकवे को लंबे समय के लिए नियंत्रित करने के लिए बाहरी और आंतरिक रूप से स्नेहन की सलाह दी जाती है।
    • लकवा से ग्रस्त मरीज के लिए स्नेहन चिकित्सा में महानारायण तेल, दशमूल तेल और महामाष तेल जैसे कुछ औषधीय तेलों का इस्तेमाल किया जाता है।
    • पक्षाघात के लिए शमन और शोधन, दोनों में ही स्नेहन का प्रयोग किया जाता है।
    • आमतौर पर स्नेहन के साथ स्नेहपान (तेल या घी पीना) की सलाह दी जाती है। अभ्यंग प्रक्रिया से स्नेहन करने से स्नेहन चिकित्सा का प्रभाव बढ़ जाता है।
       
  • स्‍वेदन
    • लंबे समय तक पक्षाघात को नियंत्रित करने एवं सामान्‍य उपचार के तौर पर स्‍वेदन की सलाह दी जाती है। इसे शोधन थेरेपी के एक हिस्‍से के रूप में भी दिया जा सकता है। विरेचन से पहले स्‍वेदन और स्‍नेहन किया जाता है जिसमें खासतौर पर लकवा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को उपनाह स्‍वेदन (प्रभावित हिस्‍से पर गर्म औषधि का प्‍लास्‍टर लगाना)
    • अगर किसी व्‍यक्‍ति को कफ के साथ वात में असंतुलन के कारण लकवा हुआ हो और उसमें अकड़न, चुभने वाला दर्द, दौरेसूजन और त्‍वचा पर चुभन या ठंड लगने जैसे लक्षण महसूस हो रहे हों तो इस स्थिति में तप (सिकाई), द्रव (तरल), ऊष्‍म (भाप) और उपनाह स्‍वेद दिया जाता है।
       
  • मृदु विरेचन
    • लकवे के प्रमुख उपचार के तौर पर विरेचन की सलाह दी जाती है और इसमें विशेष रूप से शोधन थेरेपी शामिल होती है।
    • लकवे को नियंत्रित करने के लिए स्निग्‍ध विरेचन में सादे या संसाधित अरंडी के तेल को अकेले या दूध के साथ दिया जाता है जिसके बाद व्‍यक्‍ति को दस्‍त आते हैं। मिश्रण स्‍नेह (घी में मिली जड़ी बूटियां) भी विरेचन कर्म में उपयोगी है। संसर्जन कर्म (7 दिन तक संतुलित आहार) के साथ ही विरेचन करना चाहिए।
    • वात प्रकृति के व्‍यक्‍ति खासतौर पर जो कब्‍ज से ग्रस्‍त होए उन्‍हें अरंडी के तेल, एरंड भ्रष्ट हरीतकी, सेन्‍ना और हृदय विरेचन (विरेचन के लिए हृदय को मजबूती देने वाली जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल) से दस्‍त लाए जाते हैं।
       
  • बस्‍ती
    • बस्‍ती कर्म, वात के बढ़ने या असंतुलन के कारण हुई बीमारियों के इलाज में उपयोगी है। ये आंत को पूरी तरह से साफ करता है। इस चिकित्‍सा में शरीर से मल के जरिए अमा (विषाक्‍त पदार्थों) को बाहर निकाला जाता है। इसके बाद आंत ठीक तरह से काम कर पाती है।
    • सभी प्रकार के पक्षाघात के लिए उचित समय पर निरूह बस्‍ती (औषधीय काढ़े का एनिमा) देना लाभकारी होता है। अरंडीमूल बस्‍ती (अरंडी की जड़ और अन्‍य जड़ी बूटियों से बस्‍ती), मधुतेलिका (शहदतिल के तेलगुनगुने पानी, सोआ का पौधा और अन्‍य सामग्रियों से बस्‍ती), सिद्ध बस्‍ती और राजयापन बस्‍ती (शहद, दूध, घी और अन्‍य पौष्‍टिक पदार्थों से बस्‍ती) का इस्‍तेमाल निरूह बस्‍ती में किया जाता है। निरूह बस्‍ती में शोधन थेरेपी शामिल होती है और लकवा की स्थिति एवं मरीज की जीवनशैली के आधार पर इसकी सलाह दी जाती है।
    • पक्षाघात को लंबे समय तक नियंत्रित करने के लिए मूर्धा तेल (सिर पर तेल लगाना) से शिरोबस्‍ती किया जाता है। शिरोबस्‍ती चिकित्‍सा के जरिए विभिन्‍न औषधियों को काढ़े, तेल, दूध, छाछ या पानी के रूप में दिया जाता है।
       
  • नास्‍य
    • नास्‍य कर्म के अंतर्गत नाक में तेल या अर्क (चुनी गई औषधि की पत्तियों का रस) डाला जाता है। अगर किसी व्‍यक्‍ति को हाल ही में लकवा हुआ है तो उसके लिए नास्‍य थेरेपी उपयोगी है। नास्‍य कर्म में वात प्रधान चरण जैसे कि अर्दित, लकवा, मूर्छा और मद के इलाज में धनवंतहरम और शंदबिंधु तेल अहम भूमिका निभाते हैं।
    • प्रधमन नास्‍य एक शोधन चिकित्‍सा है जिसमें कफ के कारण हुए लकवे के इलाज के लिए वच और कटफल के चूर्ण का इस्‍तेमाल किया जाता है। ये बेसुध व्‍यक्‍ति, दिमाग में घाव या दिमागी रूप से कोमा में जा चुके व्‍यक्‍ति के लिए लाभकारी है।

लकवा के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • अश्‍वगंधा
    • अश्‍वगंधा इम्‍युनिटी बढ़ाने वाली जड़ी बू‍टी है जो कि ऊतकों को ठीक करती है और मांसपेशियों की मजबूती कम होने, ऊर्जा में कमी, थकान, सूजन, त्‍वचा रोगों और लकवा के इला ज में मदद करती है।
    • इसमें न्‍यूरोजेनरेटिव (न्‍यूरोन्‍स को ठीक करने वाले), तनाव-रोधी, मांसपेशियां बनाने और पोषण प्रदान करने के गुण होते हैं।
    • अश्‍वगंधा विभिन्‍न रूप में उपलब्‍ध है जैसे कि काढ़ा और पाउडर जिसे तेल या घी में मिलाकर इस्‍तेमाल किया जाता है। आप अश्‍वगंधा चूर्ण गर्म पानी, दूध या शहद के साथ या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
       
  • बला
    • बला शरीर और ह्रदय को मजबूती प्रदान करती ह। ये मांसपेशियों और ऊतकों को ताकत देती है। इसलिए ये लकवा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति की कमजोरी दूर कर उसे शक्‍ति देने का काम करती है। ये विशेष तौर पर शरीर को बल (मजबूती) देने और नसों की नई कोशिकाओं का निर्माण करने में मदद करती है।
    • बला नसों में दर्द, सुन्‍नपन, जोड़ों से संबंधित बीमारियां, घाव, ट्यूमरमांसपेशियों में ऐंठन और अल्‍सर से भी राहत दिलाती है।
    • बला औषधीय तेल, काढ़े और पाउडर के रूप में उपलब्‍ध है। आप बला के चूर्ण को तेल, गर्म पानी या शहद के साथ या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
       
  • निर्गुण्डी
    • निर्गुण्डी जोड़ों और मांसपेशियों में सूजन एवं जलन, अल्‍सर को कम करने में मदद करती है और हाथ या पैरों में मोच एवं सिरदर्द से राहत दिलाती है।
    • लकवा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति पर निर्गुण्डी तेल लगाने की सलाह दी जाती है।
    • निर्गुण्डी का फल खासतौर पर पाउडर के रूप में उपलब्‍ध है जिसका पेस्‍ट या काढ़े के रूप में इस्‍तेमाल कर सकते हैं। निर्गुण्डी पाउडर को शहद या चीनी के साथ या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
       
  • शुंथि
    • शुंथि यानी सोंठ में कई औषधीय गुण होते हैं। ये अपचजी मितली, उल्‍टी, गले में खराश और दस्‍त के इलाज में मदद करती है। ये कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं जैसे कि ऐंठन, अस्‍थमाआर्थराइटिस और मूत्र असंयमिता से राहत दिलाती है।
    • ये मूर्छा, बेसुध होने और बेहोशी में बोलने की समस्‍या को भी दूर करती है। इसलिए लकवा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को होश में लाने के लिए शुंथि उपयोगी है।
    • शुंथि को अर्क, पेस्‍ट, ताजे रस, पाउडर या काढ़े के रूप में ले सकते हैं। आप शुंथि चूर्ण को दूध, गर्म पानी या शहद के साथ या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
       
  • रसना
    • रसना में पौधों में पाए जाने वाले घटक जैसे कि लैक्‍टोंस, फ्लेवोनोइड्सऔर स्टेरोल्स मौजूद हैं जिनमें सूजन-रोधी, नरम मांसेपशियों को आराम देने और ऐंठन दूर करने वाले एवं ऊर्जादायक गुण हैं। इस वजह से रसना लकवा जैसी बीमारियों के इलाज में उपयोगी है।
    • वात हर (वात नष्‍ट करने वाले) गुण के कारण रसना प्रमुख तौर पर लकवा के इलाज में उपयोगी है।
    • आप रसना के चूर्ण को दूध, गर्म पानी या शहद के साथ या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं।
       
  • रसोनम
    • रसोनम डिटॉक्सिफाइंग (अमा को साफ करने वाली) जड़ी बूटी के रूप में काम करती है और अस्‍थमा, नपुंसकतात्‍वचा रोगों, कोलेस्‍ट्रोल, दौरे पड़ने एवं अपच की समस्‍या से राहत दिलाती है। इसमें कई जैविक घटक मौजूद हैं तो लंबे समय से चल रही बीमारियों जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, लकवा और हृदय से संबंधित अन्‍य स्थितियों के इलाज में मदद करते हैं।
    • आप एक बार रसोनम पिंड चूर्ण को तिल के तेल के साथ या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं। लकवा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को खाली पेट रसोनम कषाय (लहसुन और अन्‍य जड़ी बूटियों से बना काढ़ा) लेने की सलाह दी जाती है।

लकवा के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • दशमूलारिष्‍ट
    • दशमूलारिष्‍ट एक ऐसा मिश्रण है जिसे 10 जड़ी बूटियों की जड़ से बनाया गया है और इसमें पिप्‍पली, छवल, हल्‍दी, रसना, जटामांसी और मुस्‍ता शामिल है।
    • दशमूलारिष्‍ट इम्‍युनिटी को बढ़ाता है और इसमें दोष में परिवर्तन का विरोध करने की क्षमता है। इसलिए लकवा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को ताकत और जोश देने के लिए दशमूलारिष्‍ट दिया जाता है।
    • दशमूलारिष्‍ट काढ़े के रूप में भी उपलब्‍ध है जिसे डॉक्‍टर के निर्देशानुसार खाली पेट लेने की सलाह दी जाती है।
       
  • महारसनादि क्‍वाथ
    • ये औषधि प्रमुख तौर पर वात प्रधान रोगों एवं स्थितियों का इलाज करती है। ये वात प्रकृति वाले पतले व्‍यक्‍ति के इलाज में मदद करता है। चूंकि, लकवा एक वात प्रधान स्थिति है इसलिए महारसनादि क्‍वाथ इससे राहत दिलाने में मददगार साबित होता है।
    • इस हर्बल मिश्रण के स्रोतोशोधन गुण भी होते हैं जो कि शरीर की विभिन्‍न नाडियों से अमा और अशुद्धियों को साफ करते हैं।
    • आप डॉक्‍टर के बताए अनुससार खाली पेट महारसनादि क्‍वाथ ले सकते हैं।
       
  • योगराज गुग्‍गुल
    • योगराज गुग्‍गुल, पिप्‍पली, चित्रक, गुग्‍गुल, त्‍वक (दालचीनी), आमलकी, विभीतकी, शुंथि और अन्‍य जड़ी बूटियों का मिश्रण है।
    • आप गर्म पानी या काढ़े के साथ योगराज गुग्‍गुल की गोली या डॉक्‍टर के बताए अनुसार ले सकते हैं। योगराज गुग्‍गुल में वातहर गुण होते हैं और इसी वजह से यह लकवा में असरकारी है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और प्रभावित दोष जैसे कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

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क्‍या करें

  • अपने दैनिक आहार में अदरक, लहसुन, मूलीकाले चने, मूंग दाल, प्‍याज और पेठा शामिल करें।
  • आम, अनार और अंगूर खाएं
  • धूम्रपान से दूर रहें

क्‍या न करें

  • तीखी, नमकीन और कसैली चीजें न खाएं
  • पनीरचीज़, मक्‍खन और दूध से बनी एवं तली हुई चीजें तथा शुगरयुक्‍त ड्रिंक्‍स का सेवन न करें
  • चने, जौ और मटर न खाएं
  • बहुत ज्‍यादा एक्‍सरसाइज न करें और ज्‍यादा देर तक भूखे भी न रहें
  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि मल त्‍याग एवं पेशाब को रोके नहीं (और पढ़ें - पेशाब रोकने के नुकसान)
  • शराब न पीएं
  • ज्‍यादा सोचने की जरूरत नहीं है
  • गर्मी से एक दम ठंडे तापमान में जाने से बचें
  • चिंता, डर और क्रोध से दूर रहें (और पढ़ें - गुस्सा कैसे कम करें)

पक्षाघात के इलाज में स्‍नेहपान के प्रभाव की जांच के लिए एक अध्‍ययन किया गया था। इस अध्‍ययन में यह बात साबित हो चुकी है कि पक्षाघात से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को धीरे-धीरे रिकवर करने में स्‍नेहपान असरकारी है और इसके कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं देखे गए।

लकवा से ग्रस्‍त मरीजों पर शिरोबस्‍ती के प्रभाव को जानने के लिए किए गए एक अन्‍य अध्‍ययन में भी लक्षणों में महत्‍वपूर्ण सुधार देखे गए।

अन्‍य अध्‍ययन में लकवा के मरीज में पंचकर्म के प्रभाव की जांच की गई थी और इसमें पाया गया कि पंचकर्म थेरेपी से लकवा के मरीज को पूरी तरह से ठीक करने की संभावना बहुत कम (लगभग 1 फीसदी) है लेकिन इसे लकवा के मरीज की चिकित्‍सकीय स्थिति और रिकवरी में सुधार लाने में असरकारी पाया गया।

(और पढ़ें - अर्धांगघात के कारण)

अगर सही खुराक और मात्रा एवं अनुभवी चिकित्‍सक की देखरेख में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों को लेने से कोई हानिकारक प्रभाव देखने को नहीं मिलता है। हालांकि, व्‍यक्‍ति की प्रकृति और बीमारी की स्थिति के आधार पर कुछ लोगों को इन दवाओं के गंभीर दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। कुछ आयुर्वेदिक दवाओं और चिकित्‍सा के निम्‍न हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं:

  • असंतुलित पित्त दोष से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को स्‍वेदन की सलाह नहीं दी जाती है।
  • पेट में अल्‍सर या गैस्ट्रिक अल्‍सर, इस्‍केमिक हृदय रोग, पेट दर्दअल्‍सरेटिव कोलाइटिस या शारीरिक कमजोरी की‍ स्थिति में विरेचन नहीं करना चाहिए।
  • अगर किसी व्‍यक्‍ति के सिर से ब्‍लीडिंग होने की आशंका है तो उसे प्रधमन नस्य नहीं देना चाहिए।
  • नाक या छाती में कफ जमने पर अश्‍वगंधा नहीं देना चाहिए। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति रोज 28 ग्राम की मात्रा में अश्‍वगंधा ले सकता है।
  • शुंथि पित्त दोष को बढ़ा सकती है और इसकी वजह से अल्‍सर, त्‍वचा पर जलन, बुखार एवं पित्त से संबंधित रोग हो सकते हैं।
  • अगर किसी व्‍यक्‍ति को कफ जमने की समस्‍या है तो उसे बला नहीं लेना चाहिए।
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पक्षाघात के आयुर्वेदिक इलाज में बस्‍ती, विरेचन, स्‍नेहन और स्‍वेदन के साथ जड़ी बूटियों और औषधियों से लकवा का इलाज और नियंत्रित करने में मदद मिलती है साथ ही ये शरीर को मजबूती देते हैं और शरीर से अमा को निकालकर वात दोष को संतुलित करते हैं।

जड़ी बूटियां और औषधियां कमजोरी को दूर कर व्‍यक्‍ति की संपूर्ण सेहत में सुधार लाते हैं जिससे पक्षाघात को लंबे समय तक नियंत्रित करने में मदद मिलती है और जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार आता है।

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संदर्भ

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  2. Ministry of AYUSH, Govt. of India. Ayurvedic Standard Treatment Guidelines. [Internet]
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