अंगदान लोगों के लिए जीवनदान है। अंगों को एक इंसान से दूसरे इंसान के शरीर में ट्रांसप्लांट कर किसी को जीवनदान दिया जा सकता है। ट्रांसप्लांट के दौरान की गई किसी भी तरह की लापरवाही अंग को खराब और मरीज की जान को खतरे में डाल सकती है। ऐसे में ट्रांसप्लांट एक बहुत ही रिस्क वाला काम है।

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हर एक अंग को ट्रांसप्लांट करने का एक निर्धारित समय होता है। उससे ज्यादा समय हो जाने पर अंग शरीर के बाहर सुरक्षित नहीं रह पाता और खत्म हो जाता है। ऐसे में इंसान के लिवर को एक हफ्ते तक इंसान के शरीर के बाहर जिंदा रखने की एक तकनीक खोज निकाली गई है।

क्या है ये नई तकनीक
पहले से इस्तेमाल की जा रही तकनीक लिवर को शरीर के बाहर 24 घंटें तक जिंदा रख सकती थी। हाल ही में यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ज्यूरिख, ईटीएच ज्यूरिख, विस्स ज्यूरिख और यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक नई परफ्यूजन मशीन बनाई है। इस मशीन की मदद से लिवर को एक हफ्ते तक इंसान के शरीर के बाहर जिंदा रखा जा सकेगा।

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खराब लिवर का किया जाएगा इलाज
इस सिस्टम की मदद से ट्रांसप्लांट के लिए अस्वस्थ लिवर का इलाज कर उसे स्वस्थ किया जाएगा। इस तकनीक से लिवर में होने वाली भयंकर बीमारियों को भी ठीक किया जा सकेगा। इस शोध के दौरान सुअरों और इंसानों के लिवर को एक असल ट्रांसप्लांट की स्तिथियों में रख कर जांचा गया। इस पर की गई पूरी स्टडी पिएर्रे-अलैन क्लेविन और फिलिप्प रुडॉल्फ वॉन रॉहर ने की जिसे नेचर बायोटेक्नॉलॉजी में छापा गया है।

चार साल तक चली रिसर्च
इस सिस्टम को बनकर तैयार होने में चार साल लगे हैं। इस एक्सपेरिमेंट में लिवर को इंसान के शरीर के बाहर जिंदा रखने का हर संभव प्रयास किया गया। ये मशीन लिवर में शरीर में होने वाली सभी सामान्य गतिविधियों जैसे खून और ऑक्सीजन का संचालन, खून में ग्लूकोज लेवल मैनेज करना और लाल रक्त कोशिकाएं बनाना और खून से सभी अनचाहे तत्वों को अलग करने जैसे कामों को जारी रखती है।

इन सामान्य गतिविधियों के दौरान लिवर को ज्यादा पोषक तत्व दिए जाते हैं। परफ्यूजन मशीन पूरी तरह स्वचालित है फिर भी इसे हर वक्त निगरानी की जरूरत है। जब 2015 में इस एक्सपेरिमेंट को शुरू किया गया था, तब लिवर को शरीर के बाहर सिर्फ 12 घंटे तक ही रखा जा सकता था।

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इंसानों के लिवर पर किया गया एक्सपेरिमेंट
70 सूअरों पर एक्सपेरिमेंट के दौरान ग्लूकोज पर नियंत्रण, वेस्ट खत्म करना और लिवर की सभी गतिविधियों को एक असल शरीर का माहौल दिया गया। सूअरों पर एक्सपेरिमेंट करने के बाद 10 ऐसे इंसानी लिवर लिए गए जो ट्रांसप्लांट के दौरान रिजेक्ट कर दिए गए थे। इन दस बीमार लिवरों को परफ्यूजन मशीन में रखा गया। दस में से छह लिवर सात दिनों के भीतर स्वस्थ हो गए। इस दौरान लिवर ने सामान्य काम किया, सैलुलर एनर्जी भी बनाई और लिवर का आकार भी सही रहा।

लिवर को शरीर से बाहर रखने की हानियां
इन सात दिनों के बाद लिवर के वजन में 25 प्रतिशत गिरावट देखी गई। वैज्ञानिकों को इसके पीछे का असल कारण तो पता नहीं चला पर उनके अनुसार वजन घटने से लिवर के काम पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

ये प्रक्रिया कितनी सफल और लाभदायक
इस प्रक्रिया के दौरान आए सभी रिजल्ट सामान्य हैं। एक हफ्ते तक लिवर को परफ्यूजन में रखना फायदेमंद है। लेखकों के अनुसार एक हेल्दी लिवर और एक परफ्यूज्ड लिवर की कार्यक्षमता को जांचना अभी बाकी है। इस तकनीक के लाभ -

  • रिजेक्ट किए गए लिवर को फिर से स्वस्थ किया जा सकेगा
  • दूर दराज के मरीजों तक लिवर ट्रासप्लांट के लिए समय पर पहुंचाया जा सकेगा
  • इस तकनीक की मदद से लिवर को कई हिस्सों में विभाजित कर फिर से मशीन में उगाया जाएगा
  • अगर संभव हो पाया तो एक लिवर से दो - तीन लिवर भी बनाए जा सकेंगे
  • इससे लिवर ट्रांसप्लांट में चल रही कमी को दूर किया जा सकेगा
  • समय बढ़ाने से मशीन में लिवर में जमी वसा को हटा उसमें टिशू रिजनरेशन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
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