जन्म के बाद हर मां-बाप अपने बच्चे को हंसते, बोलते और चलते देखना चाहते हैं। पहले वर्ष में, शिशु के विकास के दौरान उसका चलना, बोलना और दांत निकलना एक अहम प्रक्रिया मानी जाती है। चलना सीखने की प्रक्रिया में शिशु सबसे पहले घुटनों के बल पर ही चलना सीखता है। शिशु अपने आप ही घुटनों के बल पर चलना सीख जाते हैं। घुटनों के बल पर चलने से शिशु अपने हाथ और पैरों की मदद से खुद के शरीर का संतुलन बनना और आगे बढ़ना सीखता है। इससे शिशु के हाथ व पैरों की मांसपेशियां मजबूत होने लगती हैं।

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इस लेख में आपको शिशु के घुटनों पर चलने के विषय में बताया जा रहा है। साथ ही आपको, शिशु अपने घुटनों पर चलना कब शुरू करता है, शिशु के घुटनों पर चलने के प्रकार, घुटनों के बल पर चलने से शिशु को होने वाले फायदे, शिशु को घुटनों के बल चलना कैसे सिखाएं और घुटनों के बल पर चलने के बाद के चरण के बारे में भी विस्तार से बताया गया है।

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  1. शिशु घुटनों पर चलना कब शुरू करते हैं - Shishu ghutno par chalna kab shuru karta hai
  2. शिशु के घुटनों पर चलने के प्रकार - Shishu ke ghutno par chalne ke prakar
  3. घुटनों के बल चलने से शिशु को मिलने वाले फायदे - Ghutno par chlane se shishu ko milne wale fayde
  4. शिशु घुटनों पर चलना कैसे सीखते हैं - Shishu ghutno par chalna kaise sikhte hain
  5. शिशु को घुटनों के बल पर चलना कैसे सिखाएं - Shishu ko ghutno ke bal par chalna kaise sikhaye
  6. शिशु के घुटनों के बल पर चलने का अगला चरण - Shishu ke ghutno ke bal par chalne ka agla charan
शिशु का घुटनों के बल चलना के डॉक्टर

सामान्यतः अधिकतर शिशु 7 से 10 महीनों का होने पर घुटनों पर चलना शुरू कर देते हैं, जबकि कुछ शिशु 9 से 10 महीनों में भी घुटनों पर चलना शुरू करते हैं। आपका शिशु इस समय अन्य तरीकों को भी चुन सकता है, जैसे पेट के बल पर या हाथ-पैरों की मदद से आगे या पीछे होना, पेट के सहारे रेंगना और कमरे में गोल-गोल लुढ़कना, आदि। इस दौरान आपको अपने शिशु के किसी भी तरीके को अपनाने के विषय में चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हर शिशु अलग-अलग तरह से चलना सीखते हैं। हाल के कुछ वर्षों में देखा गया है कि कुछ शिशु देरी से घुटनों पर चलना शुरू करते हैं, या चलने की प्रक्रिया में घुटनों के बल पर चलने के चरण को पूरी तरह से छोड़ देते हैं।  

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शिशु घुटनों के बल पर चलने से पहले मुख्यतः कमांडो स्टाइल (Commando crawl) और बैठकर (Bottom scoot) आगे बढ़ने का प्रयास करता हैं। कमांडो स्टाइल में शिशु तब चलने की कोशिश करता है जब वह अपने पेट के बल पर लेटा होता है, जबकि बॉटम स्कूट (Bottom scoot) में शिशु बैठकर खिसकता हुआ आगे बढ़ता है।

शिशु के घुटनों पर चलने के कुछ प्रकार को नीचे बताया जा रहा है।

  • पेट के बल रेंगना -
    इसमें शिशु अपने पेट के बल पर आगे चलने की कोशिश करता है। इस स्टाइल को कमांडो क्रॉल (Commando Crawl) भी कहा जाता है। आधे से ज्यादा शिशु सबसे पहले पेट के सहारे की जमीन पर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं। इसमें शिशु अपने हाथों और घुटनों के बल पर उठने की बजाय रेंगकर आगे बढ़ते हैं, क्योंकि घुटनों के बल पर चलने के लिए अधिक ताकत की आवश्यकता होती है। (और पढ़ें - बच्चों की इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं)
  • रोल करना –
    कुछ शिशु शुरूआती दौर में गोल-गोल लुढ़कते या घूमते हुए आगे बढ़ते हैं। (और पढ़ें - नवजात शिशु का वजन कितना होता है)

  • सामन्य तरह से घुटनों के बल चलना – 
    इसमें शिशु जब आगे बढ़ता है तो वह जिस हाथ को आगे लाता है, ठीक उसी समय वह उसके विपरीत घुटने को भी आगे लाकर बढ़ने का प्रयास करता है। (और पढ़ें - बच्चों में भूख ना लगने के कारण)  

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घुटनों के बल चलना आपके शिशु के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है। इससे शिशु का खुद के शरीर पर नियंत्रण करने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है। इसके साथ ही घुटनों के बल पर चलने से शिशु को अन्य फायदे भी मिलते हैं। नीचे शिशु को घुटनों पर चलने से होने वाले फायदों के बारे में बताया गया है।

  1. देखने की क्षमता का विकास होता है -
    जब शिशु घुटनों के बल पर एक जगह से दूसरी जगह पर जाता है, तो ऐसे में वह अपनी दूर दृष्टि (distance vision) का उपयोग करता है। इसके बाद शिशु अपने हाथों की ओर देखकर उन्हें सही स्थिति में लाता है। इस तरह की ट्रेनिंग से शिशु की आंखों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं व उसके दोनों आंखों की देखने की सामान्य क्षमता में सुधार होता है। दोनों आंखों के देखने की क्षमता ही आगे चलकर शिशु के पढ़ने और लिखने में सहायक होती है। (और पढ़ें - बच्चे की मालिश कैसे करें)
     
  2. सही निर्णय लेना सीखता है –
    शुरू में शिशु कमरे के चारों ओर घूमता है और कमरे को समझने का प्रयास करता है। जब शिशु कमरे में ही कहीं ढलान से गुजरता है तो उसको खुद ही निर्णय लेना होता है कि वह आगे बढ़े या नहीं। शुरूआत में शिशु ढलान पर तेजी से चलने की कोशिश करता है और ऐसे में वह गिर सकता है। इससे शिशु ढलान पर चलना सीख जाता है और बाद में वह ढलान आने पर धीरे चलता है या फिर रूक जाता है। इसके साथ ही शिशु धीरे-धीरे अनुभव होने पर चलने की सही दिशा के बारे में भी समझने लगता है।
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  3. शिशु के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी –
    घुटनों के बल पर चलने से शिशु में आत्मविश्वास आता है और वह खुद से निर्णय लेने के लिए काबिल हो जाता है। घर में घुटनों के बल पर चलते हुए जब शिशु कई बार गिरता है और सही तरह से अपने लक्षय पर पहुंचता है, तो ऐसा करने से उसके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है। इसके साथ ही शिशु अपनी सीमाओं के बारे में भी अच्छी तरह से जान जाता है। अपने शिशु को इस तरह से सीखता देख, मां-बाप को काफी अच्छा लगता है। (और पढ़ें - नवजात शिशु को खांसी क्यों होती है)
     
  4. शारीरिक क्षमता में बढ़ोतरी होना -
    घर में ज्यादा से ज्यादा घुटनों के बल पर चलने से शिशु की शारीरिक क्षमता में भी बढ़ोतरी होती है। इससे शिशु कुछ ही महीनों में चलने के लिए तैयार हो जाता है। जब शिशु सोफा या किसी अन्य चीज का सहारा लेकर खड़ा होने का प्रयास करता है, तो इससे उसकी रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आना शरू होता है। साथ ही उसकी पीठ का निचला हिस्सा और पैर की मांसपेशियां मजबूत बनती है।

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शिशु एक निश्चित प्रक्रिया के तहत चलना सीखता है, सामान्यतः हर शिशु घुटनों पर चलने के बाद ही पूरी तरह से चलना सीखता है। लेकिन घुटनों के बल पर चलना में हर शिशु को अलग-अलग समय लग सकता है। इसमें शिशु की गर्दन, कंधे, और हाथ की मांसपेशियां कार्य करती हैं। इनकी मदद से ही शिशु अपने शरीर का संतुलन बना पाता है। साधारणतः शिशु घुटनों पर कैसे चलना सीखते हैं इसको नीचे विस्तार से बताया जा रहा है:

  • 6 से 7 महीने में
    इस दौरान शिशु पेट के बल पर लेटकर अपनी मांसपेशियों को मजबूत करते हैं। छह माह का होने पर शिशु हाथों की मदद से अपने शरीर को उठाना सीख जाते हैं। पेट के बल पर लेट हुए शिशु अपने सिर और छाती को जमीन से उठाने की कोशिश करता है। इस दौरान शिशु कमांडो स्टाइल में आगे बढ़ने की कोशिश करता है। (और पढ़ें - बच्चे के दांत निकलना)
     
  • 8 से 10 महीनों में
    इस समय तक शिशु बिना किसी सहारे के बैठना सीख जाता है। इसके बाद शिशु बैठे हुए ही खिसकर आगे बढ़ने की कोशिश करता है। अपने खिलौने को लेने के लिए शिशु इसी तरह से आगे बढ़ने का प्रयास करता है। लेकिन इस तरह से आगे बढ़ने के दौरान शिशु पहले पीछे की ओर जाना सीख जाता है। साथ ही वह धीरे-धीरे घुटनों के सहारे आगे बढ़ने का प्रयास करने लगता है। (और पढ़ें - बच्चे का देरी से बोलना)
     
  • एक साल का होने पर
    धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए शिशु साल भर का होने पर आसानी से घुटनों पर चलना सीख जाता है। साथ ही उसमें आत्मविश्वास भी आ जाता है। इस समय शिशु कुछ मुश्किलों का सामना करना जैसे- सीढ़ियों पर चढ़ने की कोशिश करना भी सीखना शुरू कर देता है।

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सामान्यतः अधिकतर शिशु बिना किसी सहायता के अपने आप ही घुटनों के बल चलना सीख जाते हैं, जबकि कुछ शिशुओं को घुटनों पर चलने के लिए किसी की मदद की जरूरत पड़ती है। ऐसे में आपको नीचे कुछ उपाय बताए जा रहें हैं, जिनकी मदद से आप अपने शिशु की मांसपेशियों को मजबूती देते हुए, उन्हें घुटनों पर चलना सिखा सकते हैं।

  1. पेट के बल पर लेटाना –
    कुछ समय के लिए शिशु को पेट के बल पर लेटा देने से, वह अपने शरीर को ऊपर उठाने और घूमाने की क्षमता का विकास करता है। (और पढ़ें - शिशु की गैस का इलाज)
     
  2. हाथों को हिलाने के लिए प्रेरित करें –
    जो शिशु हाथों को नहीं हिलाते हैं, उनको हाथ हिलाने के लिए प्रेरित करना चाहिए, इससे उनकी हाथों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। (और पढ़ें - बच्चे की मालिश का तेल)
     
  3. घूमने के लिए प्रोत्साहित करें –
    शिशु को घुटनों के बल पर चलने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए आप खिलौनों का सहारा ले सकते हैं। इसके लिए आप शिशु के पंसदीदा खिलौनों को सोफे पर या शिशु से दूर रख दें और उन्हें वापस लाने के लिए कहें। इससे शिशु में आत्मविश्वास और फुर्ति आती है।   

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घुटनों पर चलने के बाद शिशु धीरे-धीरे खड़े होकर चलना सीखता है। एक बार शिशु फर्नीचर या किसी अन्य चीज की सहायता से खड़ा होने लगें, तो आप समझ जाए कि वह जल्दी ही चलने के लिए तैयार है। किसी चीज के सहारे से संतुलन बनाकर खड़ा होना सीखने के बाद शिशु सहारे की मदद से ही आगे बढ़ने लगता है। इसके बाद से ही शिशु अन्य आवश्यक चीजें जैसे- दौड़ना, कूदना और छलांग लगाना सीखता है।

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शिशु का घुटनों के बल पर चलना एक महत्वपूर्ण चरण होता है। हर शिशु को घुटनों पर चलना सीखने के लिए अलग-अलग समय लग सकता है, यह पूर्ण रूप से उनके सीखने की क्षमता पर निर्भर करता है। अधिकतर शिशु 9 से 10 माह में चलना सीखते हैं। शिशु के घुटनों पर चलना शुरू करने के संकेत दिखते ही माता-पिता को उसकी मदद करनी चाहिए और उसको प्रोत्साहित करना चाहिए। साथ ही इस दौरान माता-पिता को शिशु की सुरक्षा पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए।

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