इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी) को हिंदी में विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा कहा जाता है। इसको शॉक थेरेपी के नाम से भी जाना जाता है। ईसीटी एक मेडिकल उपचार है जिसका उपयोग सामान्य तौर पर गंभीर अवसाद या बाइपोलर डिसऑर्डर के रोगियों में तब किया जाता है जब किसी अन्य उपचार से कोई मदद न मिलें।

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विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा यानी ईसीटी में रोगी को एनेस्थीसिया देने के बाद उसके सिर के दोनों तरफ इलेक्ट्रिक रोड रख कर दिमाग में हल्का विद्युत प्रवाह किया जाता है। यह उपचार आमतौर पर प्रशिक्षित मेडिकल पेशेवरों की टीम के द्वारा किया जाता है जिसमें एक मनोचिकित्सक, एक एनेस्थेसिओलॉजिस्ट और एक नर्स या सहायक फिजिशियन शामिल होता है।

इस लेख में विस्तार से बताया गया है कि इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी) क्या है, यह कैसे की जाती है और साथ ही इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी यानी विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा के क्या प्रकार होते है तथा इसके क्या फायदे या लाभ और नुकसान हो सकते हैं।

  1. शॉक थेरेपी क्या है - Shock therapy kya hai in hindi
  2. ईसीटी कैसे होती है - ECT procedure in hindi
  3. विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा के लाभ - Electroconvulsive therapy benefits in hindi
  4. ईसीटी के नुकसान - ECT side effects in hindi

विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा यानी ईसीटी अवसाद के लिए उपलब्ध उपचार में सबसे प्रभावी और सुरक्षित है। ईसीटी करने के लिए इलेक्ट्रोड्स रोगी के सिर पर रखी जाती और रोगी को एनेस्थीसिया देकर नियंत्रित इलेक्ट्रिक करंट का शॉक दिया जाता है। इस करंट से रोगी के दिमाग में हल्के जटके लगते हैं। ईसीटी गंभीर अवसाद या ऐसे रोगी जिनमें आत्महत्या करने का भाव प्रबल हो उनके उपचार का सबसे जल्दी परिणाम देने वाला तरीका है। ईसीटी उन्माद और अन्य मानसिक रोग से ग्रस्त रोगियों के लिए सबसे अधिक प्रभावी उपचार है।

ईसीटी का उपयोग तब किया जाता है जब अन्य किसी भी उपचार से गंभीर अवसाद का इलाज सफल नहीं हो पता है। या यह तब भी उपयोग की जा सकती है जब रोगी की हालत ऐसी हो कि वो खुद या दूसरों के लिए एक गंभीर खतरा बन जाए और अन्य उपचार के लिए इंतजार का समय न हो।

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हालाँकि, ईसीटी का उपयोग 1940 और 1950 के दशकों से किया जा रहा है किंतु आम लोगों के मन में अभी भी इसके प्रति ग़लतफहमी रहती है। इस उपचार प्रक्रिया के कई जोखिम और नुकसान इलाज के साधनों के गलत उपयोग, गलत तरीके से उपचार या उपचार करने वाली टीम सही से प्रशिक्षित न होने से होते हैं।

यह भी एक ग़लतफहमी है कि ईसीटी हॉस्पिटल में भर्ती करने या लंबी चिकित्सा प्रक्रियाओं से अलग एक तुरंत ठीक करने वाला उपचार है। न ही इसमें कोई सच्चाई है की रोगी को दर्द दिया जाता है या यह एक दर्दनाक उपचार है। प्रतिकूल समाचारों और मिडिया के कवरेज ने इस उपचार से जुड़ी बहस में काफी योगदान दिया है।

ईसीटी के दो मुख्य प्रकार होते हैं जिनके उपयोग से इलाज किया जाता है - युनीलेटरल और बाईलेटरल।

बाईलेटरल ईसीटी में इलेक्ट्रोड्स सिर के दोनों तरफ रखी जाती है। इस तरीके से उपचार रोगी के पूरे दिमाग को प्रभावित करता है।

युनीलेटरल ईसीटी में एक इलेक्ट्रोड रोगी के सिर के ऊपर रखी जाती है और दूसरी रोगी के सिर की दाहिनी ओर रखी जाती है। इस तरीके से इलाज करने पर आपके दिमाग का दाहिना भाग ही प्रभावित होता है।

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ईसीटी जिसे शॉक थेरेपी भी कहा जाता है को शुरू करने से पहले रोगी को मांसपेशियों को शिथिल करने वाली दवा दी जाती है और जनरल एनेस्थीसिया देकर उसे सुला दिया जाता है। इलेक्ट्रोड्स को रोगी के सिर पर रखा जाता है और उनमें नियंत्रित करंट छोड़ा जाता है। जिससे दिमाग में हल्के झटके लगते है।

क्योंकि मांसपेशियाँ शिथिल होती हैं इसलिए जब झटके लगते है तो केवल हाथ और पाँव ही हिलते हुए दीखते हैं। उपचार के दौरान रोगी पर ध्यान से निगरानी रखी जाती है। कुछ मिनट के बाद रोगी जाग जाता है, किंतु उपचार के बारे में और उसके आस-पास क्या चल रहा है समझ नहीं पाता है। यह भ्रम आमतौर पर कुछ समय के बाद दूर हो जाता है।

यह शॉक थेरेपी सामान्य रूप से दो से चार हफ़्तों तक हफ्ते में तीन बार दी जाती है।

अमेरिकी मनोरोग एसोसिएशन के अनुसार ईसीटी निम्नलिखित स्थितियों के इलाज के लिए सुरक्षित और उपयोगी विकल्प है -

  • जब जल्दी परिणाम देने वाले उपचार की जरुरत हो जैसे, गर्भावस्था
  • जब रोगी खाना खाने से बिलकुल मना कर दे और इसके कारण उसे पोषक तत्वों की कमी होने लगे
  • जब रोगी की अवसाद की परेशानी एंटी डिप्रेसेंट थेरेपी से ठीक न हो
  • जब किसी अन्य बीमारी के कारण एंटी डिप्रेसेंट दवाईयाँ न ली जा सके
  • जब रोगी कैटेटोनिक मूर्छा (यह कैटाटोनिया नामक सिंड्रोम से संबंधित है जो स्किज़ोफ्रेनिया का ही एक प्रकार माना जाता है) में हो
  • जब अवसाद के साथ कोई मानसिक विकृति भी जुड़ी हुई हो
  • जब बाइपोलर डिसऑर्डर का इलाज किया जाना हो
  • जब उन्माद का इलाज करना हो
  • जब ऐसे रोगी का इलाज करना हो जिसके आत्महत्या करने का जोखिम हो
  • ऐसे रोगी का इलाज करना हो जिसको पहले भी इस उपचार से फायदा हुआ हो
  • जब साइकोटिक अवसाद या साइकोटिक उन्माद से ग्रस्त रोगी का उपचार करना हो (और पढ़ें - सायकोसिस क्या है)
  • जब मेजर डिप्रेशन (अवसाद का एक प्रकार) से ग्रस्त रोगी का इलाज करना हो
  • जब स्किज़ोफ्रेनिया के रोगी का इलाज करना हो

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इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी या ईसीटी से उपचार करवाने वाले कई लोगों को लगभग 6 सत्र के बाद सुधार लगने लग जाता है। पूरी तरह सुधार में समय लग सकता है, हालाँकि ईसीटी से हर व्यक्ति को फायदा नहीं मिलता है।

पक्के तौर पर यह कोई नहीं जानता कि ईसीटी किस तरह से गंभीर अवसाद और अन्य मानसिक रोगों में मदद करती है। लेकिन यह पता है कि झटके लगाने के दौरान और बाद में दिमाग की कई रासायनिक गतिविधियों में बदलाव हो जाता है। यही रासायनिक परिवर्तन किसी तरह से गंभीर अवसाद और अन्य मानसिक रोगों के लक्षणों को कम करते हैं। इसीलिए ईसीटी उन रोगियों में अधिक प्रभावी होती है जो अपना इलाज पूरा करते हैं।

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जब रोगी के लक्षण में सुधार दिखने लगे तब भी अवसाद को फिर से आने से रोकने के लिए अवसाद के लिए चलने वाले इलाज को पूरा करना चाहिए। यह इलाज कम तीव्रता की इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी हो सकती है, किंतु अक्सर इसमें एंटी डिप्रेसेंट या दूसरी दवाईयाँ या मनोचिकित्सा शामिल होती हैं।

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इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी के तात्कालिक प्रभाव में निम्नलिखित साइड इफ़ेक्ट हो सकते हैं -

सामान्यतः ये प्रभाव कुछ घंटों में ख़त्म हो जाते हैं, हालाँकि हो सकता है कि कुछ यादें वापस न आए।

कुछ लोग जिन्होंने उपचार करवाया है उनकी सलाह है कि रोगी अपने पासवर्ड, पिन, फ़ोन नंबर और विशेष डेट्स कहीं लिख ले और उन्हें सुरक्षित जगह रख ले क्योंकि वह इलाज के बाद ये सब भूल भी सकता है।

आज के समय में ईसीटी एक सुरक्षित और प्रभावी इलाज है। यह किसी अन्य दवा या थेरेपी के मुकाबले अधिक प्रभावी रूप से रोगी के लक्षणों को ठीक कर सकती है, लेकिन क्योंकि यह आपके दिमाग में हस्तक्षेप करने वाली प्रक्रिया है और कुछ यादों के खो जाने का कारण हो सकती है इसलिए इसका उपयोग तभी किया जाना चाहिए जब यह बहुत आवश्यक हो।

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नोट - ये लेख केवल जानकारी के लिए है। myUpchar किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है। आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।

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