खंजता (क्लौडिकेशन) - Claudication in Hindi

Dr. Nadheer K M (AIIMS)MBBS

August 09, 2019

December 20, 2023

खंजता
खंजता

खंजता को अंग्रेजी भाषा में क्लौडिकेशन कहा जाता है और सामान्य रूप से इसका मतलब होता है लंगड़ापन होना। लेकिन मेडिकल भाषा में क्लौडिकेशन का मतलब होता है टांग, जांघ कूल्हे में गंभीर दर्द होना जो व्यक्ति को अक्षम बना देता है। यह आमतौर पर प्रभावित क्षेत्र में पर्याप्त खून ना पहुंच पाने के कारण होता है। इतना ही नहीं खंजता बांह में भी हो सकता है, हालांकि यह काफी दुर्लभ मामलों में देखा जाता है।

क्लौडिकेशन को पेरिफेरल आर्टरी डिजीज (PAD) का एक मुख्य लक्षण माना जाता है, क्योंकि पीएडी ग्रस्त लगभग 20 प्रतिशत लोगों को यह समस्या होती है। पीएडी रोग वाहिकाओं के रोगों से संबंधित तीसरा सबसे बड़ा रोग है, जिससे लगभग 200 मिलियन लोग प्रभावित हैं।

किसी व्यक्ति के चलने या कोई एक्सरसाइज करने के दौरान उसे बार-बार क्लौडिकेशन की समस्या हो सकती है। जब व्यक्ति शारीरिक क्रिया करना बंद कर देता है और उसकी टांगों को आराम मिलता है, तो खंजता के लक्षण भी कम होने लग जाते हैं। हालांकि जैसे ही क्लौडिकेशन के लक्षण बढ़ते हैं, मरीज को पेरिफेरल धमनियों में आराम करने के दौरान भी दर्द व ऐंठन महसूस होने लग जाती है। समय के साथ-साथ दर्द काफी गंभीर हो जाता है, जिसके कारण मरीज थोड़ी सी दूर भी नहीं चल पाता है।

जब पेरिफेरल रक्त वाहिकाओं में किसी प्रकार की रुकावट आ जाती है, तो इसके कारण क्लौडिकेशन हो जाता है। ऐसी स्थिति में मरीज की टांग में खून की सप्लाई कम हो जाती है और पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। मांसपेशियों को एक्सरसाइज करने के दौरान लगभग 30 गुना ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता है। पर्याप्त ऑक्सीजन ना मिल पाने पर रुकी हुई नस से अगले भाग में सूजन व जलन पैदा करने वाले पदार्थ जमा होने लग जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप मरीज को टांग में दर्द, कमजोरी, थकान व ऐंठन होने लग जाती है और साथ ही मरीज चल पाने में भी सक्षम नहीं रह पाता है, इसी स्थिति को क्लौडिकेशन कहा जाता है।

(और पढ़ें - पिंडली में दर्द का इलाज)

क्लौडिकेशन के लक्षण - Claudication Symptoms in Hindi

खंजता के क्या लक्षण हैं?

खंजता कोई विशिष्ट रोग नहीं बल्कि खुद एक लक्षण होता है। हालांकि क्लौडिकेशन में रक्त वाहिकाएं रुक जाने के कारण मरीजों को कई अन्य लक्षण भी महसूस हो सकते हैं। जिसमें निम्न शामिल हैं:

  • चलने के दौरान टांगों में थकान महसूस होना
  • चलते समय टांगों में जलन महसूस होना
  • चलने के दौरान टांगों में लगातार दर्द रहना
  • पैर ठंडे हो जाना
  • थोड़ी दूर तक ही चलने में सक्षम रहना
  • शरीर का संतुलन खराब होना
  • आराम करने के दौरान दर्द से काफी राहत महसूस होना

क्लौडिकेशन की शुरुआत और इस से जुड़े लक्षणों के आधार पर, इसे तीन श्रेणियों वर्गीकृत किया जाता है:

  • माइल्ड क्लौडिकेशन: इस स्थिति में व्यक्ति बिना रुके 300 मीटर की दूरी तक चल सकता है।
  • मॉडरेट क्लौडिकेशन: इस स्थिति में व्यक्ति बीच में रुके बिना 180 मीटर तक चल लेता है।
  • सीवियर क्लौडिकेशन: यह खंजता की गंभीर स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति केवल 90 मीटर ही चल पाता है। उसके बाद अधिक दर्द के कारण वे चल नहीं पाता है।

खंजता के कारण - Claudication Causes in Hindi

क्लौडिकेशन क्यों होता है?

कोई भी रोग या स्वास्थ्य संबंधी समस्या जो संभावित रूप से शरीर के निचले हिस्सों (जैसे टांग) में खून के बहाव को प्रभावित करती है, वह खंजता का कारण बन सकती है। क्लौडिकेशन आमतौर पर निम्न स्थितियों के संकेत के रूप में विकसित होता है:

  • परिधीय धमनी रोग (पीएडी):
    यह रक्त संचार संबंधी विकार होता है, जो धमनियों में खून के बहाव को प्रभावित करता है।
     
  • एथेरोस्क्लेरोसिस:
    इस स्थिति में धमनी की परतों में सख्त फैटी पदार्थ जमा हो जाते हैं, जिससे उनमें खून का बहाव रुक जाता है।
     
  • थ्रोम्बो-एम्बोलिक ऑब्सट्रक्शन:
    इस स्थिति में रक्तवाहिकाओं के अंदर खून के थक्के बनने लग जाते हैं।
     
  • थ्रोम्बोएंगिआइटिस ऑब्लेटेरॉन्स:
    इसे बर्गर-ग्रुटज़ सिंड्रोम भी कहा जाता है, यह लंबे समय तक रहने वाली सूजन व जलन से संबंधित समस्या होती है।
     
  • पॉलिआर्टेराइटिस नोडोसा:
    इसमें छोटे व मध्यम आकार की रक्त वाहिकाओं में सूजन व लालिमा आ जाती है, जिससे संबंधित मांसपेशी व अंग में खून का बहाव रुक जाता है।

किसी व्यक्ति को क्लौडिकेशन से होने वाली गंभीरता इसका कारण बनने वाली स्थिति की बजाए इस बात पर निर्भर करती है कि शरीर का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ है और धमनी में कितनी ब्लॉकेज हुई है।

क्लौडिकेशन के कारणों के अलावा कुछ जोखिम कारक भी हैं, जो खंजता को विकसित करने और उसकी गंभीरता बढ़ाने का काम करते हैं। 

इनमें से निम्न जोखिम कारक मुख्य हैं:

  • धूम्रपान करना
  • डायबिटीज
  • मोटापा
  • कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ना
  • हाई ब्लड प्रेशर
  • गतिहीन जीवनशैली (दिन में ज्यादातर समय बैठे या लेटे रहना)
  • परिवार में पहले किसी को क्लौडिकेशन या एथेरोस्क्लेरोसिस होना
  • अधिक उम्र (पुरुषों में 55 साल के बाद और महिलाओं में 60 साल के बाद खंजता होने का खतरा बढ़ जाता है)

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खंजता की रोकथाम - Management of Claudication in Hindi

क्लौडिकेशन के दर्द की रोकथाम कैसे करें?

आमतौर पर यदि धमनी में धीरे-धीरे ब्लॉकेज विकसित हो रही है, तो ऐसे में शरीर टांग तक खून पहुंचाने के लिए माइक्रोचैनल बना लेता है। हालांकि, अगर यह स्थिति एकदम से विकसित हुई है या फिर एक साथ कई रक्तवाहिकाएं ब्लॉक हो गई हैं, तो ऐसे में क्लौडिकेशन विकसित हो जाता है, जो काफी दर्दनाक स्थिति है।

रीढ़ की हड्डी के पास (परावर्टेब्रल एरिया) के क्षेत्र में मौजूद नसों के समूह (गैन्गलिया) में फीनोल, अल्कोहल या प्रोकेन का इंजेक्शन लगाकर उसे सुन्न कर दिया जाता है, जिसकी मदद से क्लौडिकेशन का दर्द कम हो जाता है। नाड़ी ग्रंथि (Lumbar ganglions) से प्रभावित मांसपेशी तक जाने वाली नस को निकाल देने से भी, क्लौडिकेशन के दर्द की संवेदना (दर्द महसूस होना) को कम किया जा सकता है। हालांकि, सिर्फ गंभीर मामलों में ही दर्द को कम करने के लिए इस तकनीक का उपयोग किया जाता है और यह धमनी के ब्लॉकेज के अंदरुनी कारण का पता नहीं लगा पाती है।

खंजता (क्लौडिकेशन) का परीक्षण - Diagnosis of Claudication in Hindi

क्लौडिकेशन का परीक्षण कैसे किया जाता है?

इस स्थिति का परीक्षण करने के लिए मरीज के स्वास्थ्य संबंधी पिछली स्थिति का पता लगाना सबसे जरूरी होता है। परीक्षण के दौरान डॉक्टर, मरीज से कुछ सवाल पूछ सकते हैं, जैसे यह समस्या कब से है, किस जगह पर हुई है और कितनी गंभीर हैं। इसके अलावा डॉक्टर परीक्षण के दौरान यह जरूर पूछते कि क्या एक्सरसाइज करने से दर्द बढ़ता है और कितनी देर आराम करने से दर्द कम होता है।

स्थिति का सटीक रूप से परीक्षण करने के लिए डॉक्टर कुछ विशेष टेस्ट करवाने की सलाह भी दे सकते हैं, जैसे:

  • ओसीलोमीटर (Oscillometer): इस टेस्ट की मदद से नाड़ी की स्थिति का पता लगाया जाता है।
     
  • आर्टरियोग्राफी (Arteriography): इसकी मदद से धमनियों में खून के बहाव की जांच की जाती है।

खंजता (क्लौडिकेशन) का इलाज - Claudication Treatment in Hindi

क्लौडिकेशन का इलाज कैसे किया जाता है?

खंजता का इलाज स्थिति की गंभीरता व उसके फैलाव पर निर्भर करता है। जो मामले गंभीर नहीं होते, उनमें एक्सरसाइज करने से स्थिति के लक्षणों में काफी सुधार हो जाता है। बार-बार होने वाली खंजता की समस्या के लिए वॉकिंग थेरेपी सबसे बेहतर प्रकार की एक्सरसाइज है। इस थेरेपी को पूरा होने में तीन महीने का समय लगता है और इसे विशेषज्ञों की मदद से किया जाता है। इसमें एक निश्चित सीमा में चलना व आराम करना शामिल है। धीरे-धीरे मरीज के चलने की गति व समय को बढ़ा दिया जाता है। इस एक्सरसाइज प्रोग्राम की मदद से काफी हद तक खंजता से ग्रस्त व्यक्ति के कार्य करने की क्षमता में सुधार किया जा सकता है। कुछ अन्य तरीके भी हैं, जो टांग में क्लौडिकेशन के लक्षणों को कम कर सकते हैं, इनमें एर्गोमेट्री, पॉलीस्ट्राइडिंग और रेसिसटेंस ट्रेनिंग शामिल हैं।

कुछ प्रकार की दवाएं व सप्लीमेंट्स भी हैं, जो खंजता के लक्षणों को कम कर सकते हैं, जैसे कैल्शियम, विटामिन ई टेबलेट, थियोब्रोमाइन, साइटोक्रोम सी, डेप्रोपेनेक्स और इंट्रावेनस हाइपरटॉनिक सेलाइन सोलूशन आदि।

कुछ मैकेनिकल उपकरण (मशीनी यंत्र) भी हैं, जो प्रभावित क्षेत्र में मौजूद रक्त वाहिकाओं के खून की सप्लाई को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। मैकेनिकल कम्प्रेशन डिवाइस (Mechanical compression device) इनमें से एक है। यह उपकरण पिंडली की मांसपेशियों में बार-बार नोन-न्यूमेटिक (हवा या गैस रहित) दबाव डालता रहता है, जिससे प्रभावित हिस्से में रक्त का बहाव गतिशील रहता है।

कुछ गंभीर मामलों में इस स्थिति का इलाज करने के लिए कुछ सर्जिकल प्रक्रियाओं की आवश्यकता भी पड़ सकती है। जिसमें पहले फेमोरल वेन लिगेशन (Femoral vein ligation) की जाती है, जिसकी मदद से नसों को बांधा जाता है और फिर उसके बाद एनास्टोमोसिस (Anastomosis) प्रक्रिया की मदद से धमनी के साथ जोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया की मदद से धमनी को बाइपास करके रुकावट को अलग कर दिया जाता है और खून के बहाव (ब्लड सर्कुलेशन) को फिर से चालू कर दिया जाता है। आजकल ग्राफ्टिंग प्रक्रिया की मदद से रुकी हुई नस को बदलना भी क्लौडिकेशन के लिए एक बेहतरीन उपचार प्रक्रिया मानी जाती है।

रुकावट की जगह वाली त्वचा पर चीरा लगाकर इलाज करना भी काफी सहायक सर्जरी है। यह प्रक्रिया आमतौर पर पेरिआर्टरियल स्ट्रिपिंग के रूप में की जाती है। इस दौरान माइक्रोस्कोप की मदद से धमनी की अंदरुनी परत को हटा दिया जाता है। 

एंजियोप्लास्टी की मदद से भी टांग और बांह में मौजूद रुकी हुई रक्त वाहिकाओं में फिर से खून के प्रवाह को शुरु किया जा सकता है। यह एक प्रीक्युटेनस (त्वचा में छेद करने की) प्रक्रिया है, जिसमें डॉक्टर त्वचा में कैथीटर डालने के लिए चीरा लगाते हैं और फिर एक गुब्बारे जैसे उपकरण को रक्त वाहिका में डाला जाता है। रक्त वाहिका की ब्लॉकेज में डालकर इस गुब्बारे को फुलाया जाता है, जिससे उनमें जमा हुआ प्लाक या कोलेस्ट्रॉल हट जाता है। ऐसा होने पर रक्त वाहिका खुल जाती है और रक्त का बहाव फिर से शुरु हो जाता है। आवश्यकता पड़ने पर कार्डियोलॉजिस्ट दोबारा ब्लॉकेज होने से रोकने से लिए प्रभावित रक्त वाहिका में स्टेंट डाल सकते हैं। इस प्रक्रिया में थोड़ा बहुत चीरा लगाया जाता है, जिसमें मरीज स्टेंट प्रक्रिया या एंजियोप्लास्टी के दो दिन बाद चलना शुरू कर देता है और एक या दो हफ्तों के बाद रोजाना के सामान्य कार्य करने लग जाता है।



संदर्भ

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