गर्भावस्था में होने वाले हाई बीपी को अंग्रेजी में स्टेशनल हाइपरटेंशन (Gestational hypertension) या प्रेगनेंसी इंडयूस्ड हाइपरटेंशन (Pregnancy induced hypertension (PIH)) भी कहा जाता है।

प्रेगनेंसी में हाई बीपी की समस्या गंभीर होने से प्री-एक्लेमप्सिया (Preeclampsia) नामक स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसे टॉक्सीमिया (Toxemia) भी कहा जाता है। गर्भावस्था के दौरान हाई बीपी, 6-8% गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है। हाई बीपी का एक अन्य प्रकार क्रोनिक हाइपरटेंशन (Chronic hypertension) है। यह वह स्थिति है जिसमें गर्भावस्था के शुरू होने से पहले से बीपी हाई होता है।

(और पढ़ें - गर्भ ठहरने के उपाय)

जेस्टेशनल हाइपरटेंशन बाद में प्री-एक्लेमप्सिया का रूप ले सकता है। यह स्थिति अक्सर पहली बार गर्भधारण के दौरान युवा महिलाओं में होती है। यह जुड़वां बच्चों वाले गर्भधारण, 35 वर्ष से अधिक आयु वाली महिलाओं, क्रोनिक हाइपरटेंशन से ग्रस्त महिलाओं और शुगर से पीड़ित महिलाओं में अधिक प्रमुख है।

प्रेगनेंसी में हाई बीपी का निदान तब किया जाता है जब 20वें सप्ताह से पहले सामान्य बीपी अंकित करने वाली महिला का बीपी अचानक 140/90 मिमी एचजी से अधिक आये, और उसे प्रोटीन्यूरिया (Proteinuria; मूत्र में अत्यधिक प्रोटीन) न हो। 

वैज्ञानिकों को जेस्टेशनल हाइपरटेंशन होने के कारण सटीक रूप से पता नहीं हैं, लेकिन इसके इलाज के कई तरीके उपलब्ध हैं। 

(और पढ़ें - प्रेगनेंसी में होने वाली समस्याएं)

  1. जेस्टेशनल हाइपरटेंशन के चरण - Stages of gestational hypertension in Hindi
  2. प्रेगनेंसी में बीपी हाई होने के कारण - Gestational hypertension causes in Hindi
  3. गर्भावस्था में हाई बीपी के लक्षण - Gestational hypertension symptoms in Hindi
  4. जेस्टेशनल हाइपरटेंशन का निदान - Gestational hypertension diagnosis in Hindi
  5. प्रेगनेंसी में हाई बीपी का इलाज - Gestational hypertension treatment in Hindi
  6. जेस्टेशनल हाइपरटेंशन की जटिलताएं - Gestational hypertension complications in Hindi

गर्भावस्था में हाई बीपी के निम्न चरण होते हैं:

प्रेगनेंसी में उच्च रक्तचाप (जेस्टेशनल हाइपरटेंशन)
जेस्टेशनल हाइपरटेंशन में आमतौर पर कम से कम दो बार के 6 घंटे के अंतराल पर किये गए परीक्षण में ब्लड प्रेशर 140/90 से अधिक अत है और मूत्र में प्रोटीन उपस्थित नहीं होता है। इसका निदान अधिकतर गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद किया जाता है।

प्री-एक्लेमप्सिया
प्री-एक्लेमप्सिया, जेस्टेशनल हाइपरटेंशन के साथ प्रोटीन्यूरिया (24 घंटों के मूत्र नमूने में 300 मिलीग्राम से कम प्रोटीन मौजूद) का भी होना है। गंभीर प्री-एक्लेमप्सिया में अन्य लक्षणों के साथ बीपी 160/110 से अधिक होता है। हेल्लप सिंड्रोम,प्री-एक्लेमप्सिया का ही एक प्रकार है। इसमें तीन चिकित्सा स्थितियां मिश्रित होती हैं: हीमोलिटिक एनीमिया (Hemolytic anemia), एलिवेटेड लिवर एंजाइम (Elevated liver enzymes) और प्लेटलेट की संख्या में कमी।

एक्लेमप्सिया
जब हाई बीपी और प्रोटीन्यूरिया से ग्रस्त गर्भवती महिला में सीज़र्स की स्थिति उत्पन्न होती है तो उस अवस्था को एक्लेमप्सिया कहते हैं।

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प्रेगनेंसी में हाई बीपी के कारण अज्ञात है। कुछ परिस्थितियों के कारण इसके विकसित होने का खतरा बढ़ता है, जिसमें से कुछ इस प्रकार हैं :

  • पहले से हाई बीपी से ग्रस्त होना।
  • किडनी रोग
  • डायबिटीज
  • पिछली गर्भावस्था में हाई बीपी से ग्रस्त होना।
  • यदि मां की उम्र 20 वर्ष से कम या 40 से अधिक है।
  • एक से अधिक भ्रूण (जुड़वा या तीन) विकसित होना।

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निम्न लक्षण गर्भावस्था में बीपी हाई होने के आम लक्षण हैं। हालांकि, प्रत्येक महिला को अलग-अलग लक्षणों का अनुभव होता है। इसके कुछ लक्षण इस प्रकार हैं :

  • बीपी में वृद्धि
  • मूत्र में प्रोटीन का होना या न होना (जेस्टेशनल हाइपरटेंशन या प्री-एक्लेमप्सिया)
  • एडीमा (सूजन)
  • अचानक वजन बढ़ना
  • दृश्यता परिवर्तन (Visual changes) जैसे धुंधला या एक बार में दो प्रतिबिम्ब दिखना
  • मतली और उल्टी
  • पेट के चारों ओर दायीं तरफ ऊपरी पेट में दर्द या पेटदर्द
  • कम मात्रा में पेशाब होना
  • लिवर या किडनी के कार्यों में परिवर्तन
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इसका निदान अक्सर ब्लड प्रेशर के स्तर में वृद्धि पर आधारित होता है। लेकिन अन्य लक्षणों की पहचान करके इसका निदान किया जा सकता है। (और पढ़ें - प्रेगनेंसी टेस्ट)

जेस्टेशनल हाइपरटेंशन का परीक्षण निम्न प्रकार किया जा सकता है :

  1. ब्लड प्रेशर मापकर।
  2. प्री-एक्लेमप्सिया की स्थिति से बाहर निकलने के लिए मूत्र, लिवर और किडनी परीक्षण द्वारा।
  3. एडीमा का मूल्यांकन करके।
  4. लगातार वजन मापकर।
  5. प्री-एक्लेमप्सिया की स्थिति से बाहर निकलने के लिए रक्त में बनने वाले थक्कों के परीक्षण द्वारा।

प्रेगनेंसी में हाई बीपी के लिए विशिष्ट उपचार डॉक्टर निम्न स्थितियों के आधार पर निर्धारित करते हैं -

  1. गर्भावस्था, स्वास्थ्य, और पूर्व चिकित्सा उपचार। (और पढ़ें - गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण)
  2. रोग की गंभीरता।
  3. दवाइयों, प्रक्रियाओं और थेरेपी के प्रति आपकी सहनशीलता।
  4. रोग के ठीक होने की सम्भावना।

उपचार का लक्ष्य, स्थिति अधिक खराब होने से और अन्य जटिलताओं का कारण बनने से रोकना होता है। जेस्टेशनल हाइपरटेंशन के इलाज निम्न प्रकार से कर सकते हैं -

  1. घर पर या अस्पताल में पूरी तरह से बिस्तर पर आराम करने (Bedrest) की सलाह दी जाती है।
  2. अस्पताल में भर्ती होकर।
  3. मैग्नीशियम सल्फेट द्वारा।
  4. भ्रूण के स्वास्थ्य की जांच (Fetal monitoring) करके।
  5. भ्रूण की गतिविधियों की गिनती करके। जैसे भ्रूण द्वारा मारी जाने वाली किक (kicks) आदि की संख्या में बदलाव का मतलब यह हो सकता है कि भ्रूण तनाव में है।
  6. नॉनस्ट्रेस टेस्ट द्वारा: इसमें भ्रूण की गतिविधियों के आधार पर भ्रूण के हृदय की दर में होने वाले परिवर्तनों को माप कर।
  7. बायोफिजिकल प्रोफाइल: यह एक परीक्षण है जिसमें नॉनस्ट्रेस टेस्ट के साथ अल्ट्रासाउंड परीक्षण भी किया जाता है।
  8. डॉपलर प्रवाह अध्ययन (Doppler flow studies) भी एक प्रकार का अल्ट्रासाउंड ही है। इसमें रक्त वाहिकाओं में रक्त प्रवाह को मापने के लिए ध्वनि तरंगों (Sound waves) का उपयोग किया जाता है।
  9. प्रयोगशाला में मूत्र और खून का नियमित परीक्षण।
  10. कोर्टिकोस्टेरोइड नामक दवाओं का सेवन, जो भ्रूण के फेफड़ों को परिपक्व (Mature) करने में मदद करती हैं। फेफड़े की अपरिपक्वता समय से पूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं में एक बड़ी समस्या है।
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उच्च रक्तचाप, मां और बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे होने वाले प्रभावों से कोई समस्या हो भी सकती है और नहीं भी। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  1. आपकी किडनी और अन्य अंगों को नुकसान।
  2. प्लेसेंटा में रक्त का प्रवाह कम हो सकता है, जिसका अर्थ है कि बच्चे को कम ऑक्सीजन और कम पोषक तत्व प्राप्त हो रहे हैं।
  3. बच्चा बहुत छोटा या बहुत जल्दी जन्म लेगा।
  4. बुढ़ापे में हृदय रोग या हाई बीपी की समस्यायें होने का खतरा। (और पढ़ें - हृदय को स्वस्थ रखने के लिए आहार)

गंभीर मामलों में, जेस्टेशनल हाइपरटेंशन, प्री-एक्लेमप्सिया का रूप ले लेता है। यह प्लेसेंटा और साथ ही आपके मस्तिष्क, लिवर और गुर्दों (kidneys) को भी नुकसान पहुंचा सकता है। प्री-एक्लेमप्सिया, एक्लेमप्सिया का रूप ले सकता है जो बहुत ही खतरनाक और जानलेवा स्थिति होती है।

(स्वस्थ गर्भावस्था के बाद अपने बच्चों का कूल नाम रखने के लिए पढ़ें - बच्चों के कूल नाम)

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