एसिडिटी या सीने में जलन एक आम समस्‍या है जो पेट में अधिक एसिड बनने और आमाशय की परत या इस एसिड की वजह से भोजन नली में जलन के कारण होती है। इसमें लेटने पर, खाने के बाद, अधिक खाने के बाद, शराब पीने या तनाव लेने पर सीने और पेट में जलन महसूस होती है।

ये जलन कुछ मिनट से लेकर कुछ घंटों तक रहती है। स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं जैसे कि हाइटल हर्निया (पेट में मौजूद सामग्री का रिसाव भोजन नलिका में होने के कारण जलन), गेस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्‍स रोग (जीईआरडी) और पेट में अल्‍सर के कारण भी एसिडिटी हो सकती है।

(और पढ़ें - हर्निया का इलाज)

आयुर्वेद में एसिडिटी को अम्‍लपित्त कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार अम्‍लपित्त अन्‍नवाह स्‍तोत्र (खाने को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने, पचाने और सोखने वाले चैनल्‍स) का रोग है। आयुर्वेदिक चिकित्‍सक एसिडिटी के इलाज में शोधन (शुद्धिकरण) प्रक्रिया जैसे कि विरेचन (सफाई की विधि), वमन (उल्‍टी) और शमन (नष्‍ट करना) का प्रयोग किया जाता है। शमन में लंघन (व्रत) और पाचन (जड़ी-बूटियों से पाचन में सुधार) शामिल है। 

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां जैसे कि शुंथि (सूखी अदरक), यष्टिमधु (मुलेठी) और आमलकी (आंवला) एसिडिटी कम करने में मदद करती हैं। एसिडिटी को नियंत्रित करने के लिए प्रवाल पंचामृत रस, सूतशेखर रस और अविपत्तिकर चूर्ण के आयुर्वेदिक सूत्रण (निश्चित विधि से तैयार हुई औषधि) को खाने से पहले और खाने के बाद ले सकते हैं। इसके अलावा गोधूम (गेहूं), मुद्ग युश (मूंग दाल का सूप) का सेवन और मसालेदार खाने एवंं शराब से दूर रहकर एसिडिटी को नियंत्रित किया जा सकता है। 

(और पढ़ें – मूंग की दाल का सूप कैसे बनाते हैं)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से एसिडिटी - Ayurveda ke anusar Acidity
  2. एसिडिटी का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Acidity ka ayurvedic upchar
  3. एसिडिटी की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Acidity ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार एसिडिटी होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Acidity me kya kare kya na kare
  5. एसिडिटी में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Acidity ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. एसिडिटी की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Acidity ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. एसिडिटी की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Acidity ki ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
एसिडिटी की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

अम्‍लपित्त के प्रमुख लक्षण तिक्‍त अम्‍ल उद्गार (खट्टी डकार), उरोदाह (सीने में जलन) और अविपक (अपच) हैं। इनकी वजह से आगे चलकर त्‍वचा रोग जैसे कि खुजली और चकत्ते (रैशेज) की समस्‍या भी हो सकती है। जिस दोष के असंतुलित होने के कारण एसिडिटी हुई है उसके आधार पर अम्‍लपित्त को तीन प्रकार में विभाजित किया गया है:

  • वात कफज (वात और कफ के कारण)
  • कफज (कफ के कारण)
  • वतज (वात के कारण)

(और पढ़ें – वात, पित्त और कफ क्‍या है)

शरीर के हिस्‍से के आधार पर अम्‍लपित्त को इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है:

अम्‍लपित्त के अन्‍य लक्षणों में जलन, खराब पाचन, प्‍यास लगना, पसीना आना, जी मिचलाना, खट्टी डकारें आना, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण बुखार और भारीपन शामिल हैं। छर्दि (उल्‍टी), पित्तज गुल्‍म (पित्त के खराब होने के कारण पेट में सख्‍त ढेर का जमना), पित्तशामरी (पित्त के खराब होने के कारण पथरी बनना) और अन्‍नद्रवशूल (पेट में सूजनपेट में अल्‍सर) जैसे कुछ सामान्‍य लक्षण एसिडिटी में नजर आते हैं।

एसिडिटी के प्रमुख इलाज के तौर पर आयुर्वेद में निदान परिवर्जन की सलाह दी जाती है। आयुर्वेदिक औषधियों और जड़ी-‍बूटियों का इस्‍तेमाल कर वमन और विरेचन द्वारा एसिडिटी से राहत पाई जा सकती है। आहार और जीवनशैली में सकारात्‍मक बदलाव कर एसिडिटी से बचा जा सकता है। इसके अलावा अपथ्‍य (शरीर को नुकसान देने वाला आहार) जैसे कि भारी, खमीरयुक्‍त, सूखा और मसालेदार भोजन न खाएं। शराब का सेवन सीमित मात्रा में करें और एसिडिटी को नियंत्रित करने के लिए धूम्रपान से दूर रहें।

(और पढ़ें – शराब छुड़ाने के उपाय)

Digestive Tablets
₹314  ₹349  9% छूट
खरीदें

निदान परिवर्जन

  • निदान परिवर्जन की इस चिकित्‍सा का लक्ष्‍य बीमारी के कारण को दूर करना है। कई रोगों में प्रमुख इलाज के तौर पर इस चिकित्‍सा की सलाह दी जाती है। निदान परिवर्जन बीमारी को बढ़ने से रोकने और उसे दोबारा न होने में मदद करता है।
  • रूक्ष अन्‍न-पान (सूखे खाद्य पदार्थ खाना), लंघन (व्रत) और वाटिका अन्‍नपान (शरीर में वात को बढ़ाने वाले आहार का सेवन) जैसे एसिडिटी पैदा करने वाले कुछ कारणों से बचना चाहिए।
  • गलत खानपान की आदतें, अत्‍यधिक सेक्‍स करना, अधिक मानसिक और शारीरिक कार्य, शराबयुक्‍त पेय और अत्‍यधिक मात्रा में चावल और बींस खाने के कारण एसिडिटी बनती है और निदान के अंतर्गत इन्‍हीं आदतों से बचना चाहिए।
  • एसिडिटी रोकने के लिए अध्‍यासन (भोजन के बाद जल्‍दी खाना) से बचना चाहिए। (और पढ़ें – भोजन का सही समय)

शोधन 
आयुर्वेद में एसिडिटी के इलाज के लिए निम्‍नलिखित शोधन चिकित्‍सा का प्रयोग किया जाता है:

  • वमन:
    • वमन एक सफाई करने की विधि है जो उल्‍टी के द्वारा शरीर से अमा (विषाक्‍त पदार्थ) और बलगम को दूर करने में मदद करती है।
    • आयुर्वेद में वमन चिकित्‍सा के लिए जड़ी-बूटियों एवं इनके सूत्रण से पाचन में सुधार और शरीर में कफ को कम किया जाता है। इस तरह एसिडिटी को नियंत्रित किया जाता है। ये मोटापे, एलर्जी, साइनस, एनोरेक्‍सिया (खाने की इच्‍छा ना होना), बवासीर, मिर्गी और गले में खराश के इलाज में इस्‍तेमाल की जाती है।
    • वच (मीठे पौधे की सुगंधित जड़ों से तैयार), पटोला (परवल), नीब कल्‍क (नीम की पत्तियों का रस या पेस्‍ट), मदनफल (मैना पेड़ का फल), सैंधव लवण जल (पानी में सेंधा नमक) और यष्टिमधु फंट् का इस्‍तेमाल एसिडिटी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में वमन चिकित्‍सा के लिए किया जाता है।
  • विरेचन:
    • विरेचन चिकित्‍सा में अमा को खून से बाहर निकालकर और मल निष्‍कासन के द्वारा अमा से छुटकारा दिलाकर बीमारी का इलाज करने में मदद करती है।
    • विरेचन चिकित्‍सा के लिए जड़ी-बूटियों का इस्‍तेमाल कर छोटी आंत, लिवर और पित्ताशय से अतिरिक्‍त पित्त को खत्‍म किया जाता है। ये उल्‍टी और जी मिचलाने की समस्‍या को भी कम करता है।
    • विरेचन दस्‍त, किडनी स्‍टोन, विषाक्‍त भोजन (फूड प्‍वॉइजनिंग) और अल्‍सर के इलाज में भी मदद करता है।
    • एसिडिटी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में ददिमती घृत (घी), सादा गाय का घृत और विदर्यादि घृत से स्‍नेह पान ( घी या तेल का सेवन) करवाने के बाद विरेचन चिकित्‍सा में त्रिवृत लेह, एरंड भृष्‍ट हरीतकी और पंचसकार चूर्ण का इस्‍तेमाल किया जाता है।

शमन
एसिडिटी के इलाज में निम्‍नलिखित शमन चिकित्‍साओं का प्रयोग किया जाता है:

  • लंघन:
    • लंघन चिकित्‍सा से दोष और धातुओं के बीच संतुलन लाकर शरीर में हल्‍कापन लाया जाता है।
    • पेट से संबंधित बीमारियां और रस धातु के खराब होने के कारण हुए रोगों में सबसे पहले लंघन चिकित्‍सा की सलाह दी जाती है। लंघन चिकित्‍सा में व्रत के दो प्रकार होते हैं जिनमें निराहार (भोजन से परहेज) और फलाहार (केवल फलों का सेवन) शामिल हैं। (और पढ़ें – फल खाने का सही समय)
    • लंघन चिकित्‍सा से छर्दि, अतिसार (दस्‍त) और अरोचक (अपच) से राहत मिलती है, इसलिए एसिडिटी के इलाज में लंघन चिकित्‍सा लाभकारी होती है। ये पाचन अग्नि में सुधार कर शरीर को पोषण प्रदान करती है।
    • लंघन कब्‍ज को कम करता है और ये त्‍वचा एवं पेशाब संबंधित विकारों, जांघों में अकड़न और फोड़ों के इलाज में भी लाभकारी है।
  • पाचन:
    • आयुर्वेद के अनुसार पाचन औषधियों से शरीर को हल्‍का किया जाता है।
    • पचन का उपयोग उदर, अलासक (पेट में मल को रोकना और गैस का दर्द ), गौरव (भारीपन), अपच, अम्लता और हृदय रोग। इसका उपयोग मुख्य रूप से पित्त और कफ को ठीक करने के लिए किया जाता है।
  • दीपन (भूख बढ़ाना)
    • कई जड़ी-बूटियों और इनके सूत्रण का इस्‍तेमाल दीपन चिकित्‍सा में अग्‍नि (पाचन अग्‍नि) को बढ़ाने के लिए किया जाता है। ये अतिसार, ग्रहनी (इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम), एसिडिटी और बुखार से राहत दिलाने में उपयोगी है।
    • दीपन चिकित्‍सा शरीर में अमा को कम कर अग्‍नि को ठीक करने में मदद करती है और इससे धातवाग्नि (धातुओं की चयापयचय अग्‍नि) भी बढ़ती है। 

(और पढ़ें – एसिडिटी का घरेलू उपचार)

एसिडिटी के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • शुंथि
    • शुंथि में कामोत्तेजक (लिबिडो बढ़ाने वाला) और दर्द निवारक गुण मौजूद हैं। प्राकृतिक उत्तेजक और पाचक होने के कारण एसिडिटी कम करने के लिए ये जड़ी-बूटी उत्तम मानी जाती है। इसके अलावा ये उल्‍टी और कब्‍ज से भी राहत दिलाती है।
    • शुंथि शरीर में कफ को कम और पाचन अग्‍नि को बेहतर करती है। ये दमा, असंयमिता, रूमेटिक दर्द (जोड़ों और उससे संबंधित ऊत्तकों में दर्द) और नेत्र रोगों के इलाज में भी ये मदद करती है। (और पढ़ें - रूमेटाइड अर्थराइटिस का इलाज)
    • घी के साथ शुंथि लेने पर अपच और पेट दर्द दूर होता है।
    • शुंथि पेस्‍ट, अर्क, ताजा रस, गोली और काढ़े के रूप में उपलब्‍ध है। आप गर्म पानी के साथ शुंथि चूर्ण या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं। (और पढ़ें – काढ़ा बनाने की रेसिपी)
  • आमलकी
    • आमलकी यानि आंवला विटामिन सी का उत्तम स्रोत माना जाता है। ये शरीर में ओजस को बढ़ाता है और टॉनिक की तरह काम करता है एवं शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। (और पढ़ें –ऊर्जा बढ़ाने के तरीके)
    • ये पित्त के असंतुलन के कारण हुए रोगों जैसे कि बवासीर, डायबिटीज, एनीमिया, ऑस्टियोपोरोसिस, वर्टिगो (सिर घूमना या चक्‍कर आना) और मानसिक विकारों के इलाज में उपयोगी है।
    • आमलकी मुंह और आंतों की सफाई करती है। ये आंत और पेट में जलन को कम कर एसिडिटी का उपचार करती है। (और पढ़ें – पेट में जलन होने पर क्या खाएं)
    • आमलकी काढ़े, मिठाई और पाउडर के रूप में उपलब्‍ध है। आप गर्म पानी के साथ आमलकी चूर्ण या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

      डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए myUpchar Ayurveda Madhurodh डायबिटीज टैबलेट आपके लिए सही चयन हैं। इन टैबलेट्स से रक्त शर्करा को संतुलित रखें और स्वस्थ जीवन का आनंद लें। ऑर्डर करें!
       
  • यष्टिमधु
    • यष्टिमधु तंत्रिका, पाचन, उत्‍सर्जन और श्‍वसन प्रणाली पर असर करती है। एसिडिटी के मरीज़ों को गर्म पानी के साथ इसे लेने पर फायदा होता है।
    • यष्टिमधु शरीर में मांसपेशियों में अकड़न, अल्‍सर, खांसी और बलगम को कम करती है। प्राकृतिक रूप से औषधीय गुणों से युक्‍त होने के कारण ये अल्‍सर के इलाज में उपयोगी होती है।
    • ये फेफड़ों को साफ कर फ्लू और जुकाम से राहत दिलाती है। यष्टिमधु आंखों की रोशनी तेज और रंगत को निखारने का भी काम करती है। (और पढ़ें – रंगत को निखारने के बेहतरीन उपाय)
    • यष्टिमधु दूध के काढ़े, पाउडर और काढ़े के रूप में उपलब्‍ध है। आप गर्म पानी के साथ यष्टिमधु चूर्ण या चिकित्‍सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

एसिडिटी के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • प्रवाल भस्‍म
    • प्रवाल भस्‍म एक आयुर्वेदिक सूत्रण है जिसमें संसाधित (साफ किया हुआ) लाल मूंगा भी मौजूद है।
    • कई रोगों जैसे कि डिस्‍यूरिया (पेशाब करने के दौरान दर्द या जलन), जलोदर (ड्रॉप्‍सी: पेट में दूषित पानी भरना), ओस्टियोमाइलाइटिस (संक्रामक हड्डी रोग) और एसिडिटी के इलाज में इस्‍तेमाल की जाती है।
    • इसके अलावा तेज धड़कन (सीने का फड़फड़ाना) और टैकीकार्डिया (दिल की धड़कन तेज होना) जैसे रोगों के उपचार में भी प्रवाल भस्‍म का उपयोग किया जाता है।
    • प्रवाल भस्‍म का चिकित्‍सकीय प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस रूप में इसका प्रयोग कर रहे हैं।
    • आप घी, चावल के पानी, गर्म पानी या शहद के साथ प्रवाल भस्‍म ले सकते हैं।
  • कपर्दिका भस्‍म
    • कपर्दिका भस्‍म को मूल्यवान आयुर्वेदिक सूत्रण के रूप में जाना जाता है। इसे कपर्दिका (एक पौधे की जड़ जो मसाले और रंगाई के काम आती है) पाउडर से बनाया जाता है।
    • कपर्दिका भस्‍म में अम्‍लतत्‍वनाशक (एंटासिड) गुण होते हैं जो इसे एसिडिटी से ग्रस्‍त लोगों के लिए उपयोगी बनाते हैं।
    • इसमें रसायनिक घटकों के रूप में ऑक्‍सीजन, कार्बन और कैल्‍शियम होता है।
    • कपर्दिका भस्‍म को छाछ या गर्म पानी के साथ ले सकते हैं।
  • पटोलादि क्‍वाथ
    • इसमें त्रिफला, पटोला (परवल), पुनर्नवा, कनक बीज, वासा (अडूसा) और भरंगी प्रमुख सामग्री के रूप में मौजूद हैं।
    • ये एसिडिटी दूर करने में असरकारी होता है और कफ एवं पित्त के कारण हुए बुखार के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ह्रदय रोगों, शूल (दर्द), कामला (पीलिया), सन्निपात रोग (तीनों दोषों के कारण होने वाले रोग), एनीमिया, मोटापा और पेचिश के इलाज में भी इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।
  • प्रवाल पंचामृत रस
    • प्रवाल पंचामृत रस के सूत्रण में पांच सामग्रियां हैं जिनमें प्रवाल भस्‍म, मुक्‍ता भस्‍म (मोती को हवा और ऑक्‍सीजन में उच्‍च तापमान पर गर्म करके तैयार हुई), शौक्‍तिक भस्‍म (मोती की सीप को हवा और ऑक्‍सीजन में उच्‍च तापमान पर गर्म करके तैयार हुई) और शंख भस्‍म (शंख को हवा और ऑक्‍सीजन में उच्‍च तापमान पर गर्म करके तैयार हुई) और कपर्दिका भस्‍म शामिल हैं।
    • ये पित्त के कारण हुई एसिडिटी, जलोदर (पेट में पानी भरना) और दर्द में लाभकारी है। 
    • आप प्रवाल पंचामृत रस वटी (गोली) को गर्म पानी या चिकित्‍सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
  • सूतशेखर रस
    • सूतशेखर रस में एंटासिड और एंटीकोलिनेर्जिक (एक ऐसा पदार्थ तो केंद्रीय और पेरिफेरल तंत्रिका तंत्र में न्‍यूरोट्रांसमीटर एसिटिलकोलाइन को रोकता है) प्रभाव होता है। आयुर्वेद में एसिडिटी के इलाज के लिए सामान्‍य तौर पर इनका इस्‍तेमाल किया जाता है।  
    • इसे शुंथि, एला (इलायची), दालचीनी, पिप्‍पली, गंधक, टंकण (सुहागा), करचुरा (सफेद हल्‍दी) और अन्‍य सामग्रियों से तैयार किया जाता है।
    • ये मुख्‍य तौर पर पित्त दोष पर काम करती है। ये पेट दर्द, जी मिचलाने, उल्‍टी, एपीगैस्ट्रिक दर्द (पेट के ऊपरी हिस्‍से में पसलियों के ठीक नीचे दर्द या असहजता), सीने में जलन, बुखार, सिरदर्द और सांस लेने में दिक्‍कत जैसे लक्षणों से राहत दिलाती है।
    • सूत शेखर रस वटी को गर्म पानी के साथ या चिकित्‍सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
  • अविपत्तिकर चूर्ण
    • अविपत्तिकर चूर्ण एक आयुर्वेदिक सूत्रण है जिसमें मुस्‍ता (नट ग्रास), विडंग (औषधयीय पादप), एला, लवंग (लौंग), त्रिकटु (तीन कसैली चीजों – पिप्‍पली, शुंथि और मारीच का मिश्रण) और अन्‍य सामग्रियां मौजूद हैं।
    • आयुर्वेद में इसे प्रमुख तौर पर एसिडिटी के उपचार में इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • आप शहद, गर्म पानी या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार अविपत्तिकर चूर्ण ले सकते हैं।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

Probiotics Capsules
₹599  ₹770  22% छूट
खरीदें

क्‍या करें

क्‍या ना करें

 (और पढ़ें – एसिडिटी के लिए योग)

एक अध्‍ययन के दौरान उपचार के तौर पर एसिडिटी से ग्रस्‍त 40 लोगों को यष्टिमधु दी गई थी। नियमित एक विशेष खुराक देने पर यष्टिमधु से खट्टा और कसैला स्‍वाद आना, गले और सीने में जलन और जी मिचलाने जैसे एसिडिटी के लक्षणों में कमी पाई गई।

एक अन्‍य अध्‍ययन में आमलकी चूर्ण के प्रभाव की जांच के लिए एसिडिटी से ग्रस्‍त 30 लोगों पर स्‍टडी की गई थी। अध्‍ययन के परिणाम में आमलकी से सभी प्रतिभागियों में बीमारी के लक्षणों में सुधार पाया गया। ये उल्‍टी, भारीपन से राहत दिलाती है और शरीर में वात और पित्त को कम करती है।

 (और पढ़ें – प्रेग्नेंसी में एसिडिटी क्यों होती है)

अधिकतर आयुर्वेदिक औषधियां और उपचार सुरक्षित और हानिकारक प्रभावों से रहित होते हैं। चूंकि, इलाज या औषधि व्‍यक्‍ति की प्रकृति और दोष पर निर्भर करती है इसलिए किसी विशेष इलाज या औषधि की सही खुराक और उसे किस रूप में लेना है, इस बारे में आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से सलाह लेनी चाहिए।

उदाहरणार्थ:

  • विरेचन से पाचन अग्‍नि कमजोर हो सकती है। इसलिए शरीर में अत्‍यधिक वात से ग्रस्‍त लोगों को इसकी सलाह नहीं दी जाती है।
  • वात दोष वाले लोगों को लंघन चिकित्‍सा नहीं दी जाती है।
  • शुंथि से शरीर में पित्त का स्‍तर बढ़ सकता है और सूजन, अल्‍सर एवं रक्‍तस्राव (ब्‍लीडिंग) हो सकती है।
  • गर्भावस्‍था के दौरान यष्टिमधु का प्रयोग ना करें।

अम्‍लता (एसिडिटी) एक ऐसी सामान्‍य समस्‍या है जो किसी भी उम्र या लिंग के व्‍यक्‍ति को हो सकती है। हालांकि, वृद्धों और किसी दवा का सेवन कर रहे व्‍यक्‍ति में एसिडिटी की समस्‍या अधिक देखी जाती है। अगर समय पर इसका इलाज ना किया जाए तो ये पाचन प्रणाली में गड़बड़ी कर सकती है और इस वजह से जी मितली, उल्‍टी, असहजता और अन्‍य लक्षण सामने आ सकते हैं।

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और सूत्रण एसिडिटी और इससे संबंधित लक्षणों को कम करने का काम करते हैं। दीपन, पाचन, वमन और विरेचन जैसी कई चिकित्‍सा प्रकियाओं से पाचन प्रणाली और संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार किया जाता है।

Dr Bhawna

Dr Bhawna

आयुर्वेद
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Padam Dixit

Dr. Padam Dixit

आयुर्वेद
10 वर्षों का अनुभव

Dr Mir Suhail Bashir

Dr Mir Suhail Bashir

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr. Saumya Gupta

Dr. Saumya Gupta

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. American Academy of Family Physicians. Heartburn. Leawood, Kansas, United States [Internet].
  2. Ministry of AYUSH, Govt. of India. Ayurvedic Standard Treatment Guidelines . [Internet]
  3. Deepthi Viswaroopan. Undernutrition In Children: An Updated Review. International Journal of Research IN, 8 (Suppl 2), 2017.
  4. S.P. Gandhi, R.H.Singh. A Critical Study Of The Concept Of Amlapitta And Parinamasula. Vol No. XIII Nos. 1 & 2, July-October 1993.
  5. Dr. Praveenkumar H Bagali Dr. A.S.Prashanth. Clinical Application Of Langhana. Paryeshana International Journal of Ayurvedic Research. Volume-II/Issue –V/May-June-2018.
  6. Oushadhi. Bhasma Sindooram. Govt of Kerala. [Internet]
  7. V. Nageswar Rao And S.K Dixit. Standardisation Of Pravala Bhasma. Vol. No 17(3), January 1998.
  8. Sonali Dhamal, M.P.Wadekar, B.A.Kulkarni, V.V.Dhapte. Chemical Investigations of Some Commercial Samples of Calcium Based Ayurvedic Drug of Marine Origin: Kapardika Bhasma. Journal of Pharmacy and Biological Sciences, Volume 6, Issue 4 (May. – Jun. 2013).
  9. Rajiv Gandhi Government Post Graduate Ayurvedic College. Kayachikitsa. Paprola, Himachal Pradesh. [Internet].
  10. Ajay Kumar, Tina Singhal. Scientific Explanation Of Mode Of Action Of Sutshekhar Ras In Amlapitta With Special Reference To Acid Peptic Disorders: A Review. International Journal of Research IN, 9(5), 2018.
  11. Prof. G.S. Lavekar. Classical Ayurvedic Prescriptions for Common Diseases . Central Council for Research in Ayurveda and Siddha. Department of AYUSH, Ministry of Health & Family Welfare, Government of India.
  12. National Institute of Indian Medical Heritage (NIIMH). Amlapitta. Central Council for Research in Ayurvedic Sciences (CCRAS); Ministry of AYUSH, Government of India.
  13. Shashikant M Prajapati, Bhupesh R Patel. A comparative clinical study of Jethimala (Taverniera nummularia Baker.) and Yashtimadhu (Glycyrrhiza glabra Linn.) in the management of Amlapitta. An International Quarterly Journal of Research in Ayurveda, Volume : 3, 6 Issue : 2, 2015.
ऐप पर पढ़ें