बलगम चिकना, पतला, ठंडा और मुलायम पदार्थ होता है जो शरीर की रक्षा एवं मुख्य गुहाओं के आंतरिक अंग को चिकनाई देने के लिए शरीर द्वारा ही उत्‍पन्‍न किया जाता है। गाढ़े और ज्‍यादा चिकने कफ को बलगम कहा जाता है। एलर्जी, संक्रमण, धूम्रपान और फेफड़ों से संबंधित रोग जैसे विभिन्‍न कारणों की वजह से बलगम बनता है। पेट में भोजन के जमने और जीईआरडी (पेट में मौजूद तत्‍वों का भोजन नली में वापिस आना) की वजह से भी अधिक कफ या बलगम बन सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार शरीर में कफ दोष के खराब होने पर बलगम की समस्‍या होती है। आयुर्वेद में शरीर से बलगम निकालने के लिए पंचकर्म थेरेपी द्वारा वच, खदिरा और वासा जैसी जड़ी बूटियों से वमन (औषधियों से उल्‍टी करवाने की विधि) कर्म की सलाह दी जाती है। बलगम को कम करने में पिपल्यादि क्‍वाथ और शत्‍यादि लेह के आयुर्वेदिक मिश्रण उपयोगी हैं।

हल्‍के भोजन का सेवन एवं ठंडे तथा बासी भोजन से दूर रहकर बलगम की समस्‍या को कम किया जा सकता है। धूम्रपान के कारण सांस से संबंधित समस्‍याओं का खतरा रहता है जिनमें बलगम ज्यादा बनता है इसलिए धूम्रपान को छोड़कर अपनी जीवनशैली में अच्‍छी आदतों को अपनाना चाहिए। 

(और पढ़ें – धूम्रपान छोड़ने के घरेलू उपाय)

  1. बलगम की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Balgam ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  2. आयुर्वेद के अनुसार बलगम होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Phlegm me kya kare kya na kare
  3. बलगम के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Balgam ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  4. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से बलगम - Ayurveda ke anusar Balgam
  5. बलगम का आयुर्वेदिक इलाज - Balgam ka ayurvedic ilaj
  6. बलगम की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Phlegm ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. बलगम की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Balgam ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
कफ की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

बलगम की आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • हरिद्रा (हल्‍दी)
    • हरिद्रा में शक्‍तिवर्द्धक, सुगंधक और उत्तेजित करने वाले गुण होते हैं। ये कई तरह के स्‍वास्‍थ्‍य विकारों जैसे कि एडिमा, डायबिटीज, खांसी, पीलिया, त्‍ववा विकारों और मूत्र संबंधी रोगों के इलाज में मदद करती है। (और पढ़ें – पीलिया का आयुर्वेदिक इलाज)
    • जीवाणुरोधी जड़ी बूटी होने के कारण हरिद्रा बैक्‍टीरियल संक्रमण जैसे कि टीबी के इलाज में उपयोगी है। टीबी की बीमारी में बलगम ज्‍यादा बनने लगता है।
    • हरिद्रा कफ को बाहर निकालती है जिससे खांसी और छाती में बलगम जमने की समस्‍या से राहत मिलती है।
    • आप हरिद्रा को काढ़े, अर्क, पेस्‍ट, दूध के काढ़े या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

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  • वच
    • वच एक तीखी जड़ी बूटी है जिसमें ऊर्जादायक और उत्तेजक गुण होते हैं।
    • ये सर्दी-खांसी की प्राकृतिक दवा एवं कफ निस्‍सारक है जोकि बलगम को कम, छाती में कफ को साफ और दिमाग को शांति प्रदान करती है।
    • वच तंत्रिका, श्‍वसन, परिसंचरण और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये जड़ी बू‍टी विभिन्‍न रोगों जैसे कि आ‍र्थराइटिस, बहरेपन, इनसोमनिया, न्‍यूरेल्गिया (नसों में दर्द), सिरदर्द और साइनस को नियंत्रित करने में असरकारी है। (और पढ़ें – सिरदर्द का आयुर्वेदिक उपचार)
    • वच को पाउडर, काढ़े, पेस्‍ट, दूध से बने काढ़े या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • वासा
    • वासा श्‍वसन, तंत्रिका, उत्‍सर्जन और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट, प्रतिरक्षा तंत्र के कार्य में सुधार और सूजनरोधी गुण हैं।
    • इसका इस्‍तेमाल मिर्गी, उन्‍माद, हिस्टीरिया (बार-बार बेहोश होना या दम घुटना), मसूडों से खून आना, सूजन, त्‍वचा रोगों और नसों में दर्द के इलाज में किया जाता है। (और पढ़ें – नसों में दर्द के घरेलू उपाय)
    • पारंपरिक रूप से वासा का प्रयोग खांसी को रोकने के लिए किया जाता है। ये ब्रोंकाइटिस, अस्‍थमा, खांसी, टीबी और ब्रोंकाइल अस्‍थमा के इलाज में असरकारी है। (और पढ़ें – दमा के लिए योग)
    • वासा को रस, अर्क, पुल्टिस, काढ़े के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • खदिरा
    • खदिरा तिक्‍त (तीखा) और कषाय (संकुचक) गुणों से युक्‍त है।
    • ये कृमिघ्‍न (कीड़ों को नष्‍ट करने वाली) और कुष्‍ठघ्‍न (त्‍वचा रोगों को खत्‍म करने वाली) वाली जड़ी बूटी है जो कफ और पित्त दोष को कम करने में मदद करती है।
    • खदिरा रक्‍त धातु को भी साफ करती है और वसा को घटाती है।
    • प्रमुख तौर पर इसका इस्‍तेमाल ब्रोंकाइटिस, सामान्‍य जुकाम और खांसी के इलाज में किया जाता है। इन सभी बीमारियों का प्रमुख लक्षण अतिरिक्‍त बलगम का बनना ही है।
    • गरारे या माउथवॉश के रूप में लेने पर खदिरा गले में सूजन (फेरिंजाइटिस), गले में संक्रमण और गले में दर्द (लेरिंजाइटिस) का इलाज कर सकती है।
       
  • अदरक
    • अदरक सुगंधक, कफ निस्‍सारक (बलगम निकालने वाली), उत्तेजक, पाचक और दर्द निवारक गुणों से युक्‍त होती है।
    • अदरक का रस सूखी खांसी या बलगम वाली खांसी से राहत दिलाता है। (और पढ़ें – सूखी खांसी दूर करने के उपाय)
    • अदरक गले में खराश, लेरिंजाइटिस, दस्‍त, उन्‍माद (बेहोशी में बोलना), जी मतली और उल्‍टी से राहत दिलाती है।
    • ये गले और जीभ को साफ करती है जिससे इन हिस्‍सों में जमे बलगम को बाहर निकालने में मदद मिलती है।
    • कफ बढ़ने के कारण पैदा हुए बलगम को सूखी अदरक से कम करने में मदद मिलती है।
    • आप अदरक को अर्क, पेस्‍ट, काढ़े, ताजा रस, गोली, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • पिप्‍पली
    • पिप्‍पली में दर्द निवारक और कफ निस्‍सारक गुण होते हैं। ये श्‍वसन, पाचन तंत्र और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • इससे पाचन अग्‍नि बढ़ती है और ये गठिया, साइटिका, लकवा, मिर्गी, लेरिंजाइटिस, रुमेटिक दर्द और पेट फूलने के इलाज में उपयोगी है।
    • पिप्‍पली कफ दोष को भी कम करती है जिससे अस्‍थमा, टीबी और ब्रोंकाइटिस में बनने वाले बलगम को साफ करने में मदद मिलती है।
    • आप पिप्‍पली को तेल, अर्क, पाउडर के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • यष्टिमधु (मुलेठी)
    • यष्टिमधु खट्टी-मीठी जड़ी बूटी है जिसमें कफ निस्‍सारक, शक्‍तिवर्द्धक एवं ऊर्जादायक गुण होते हैं। ये उत्‍सर्जन और श्‍वसन तंत्र पर कार्य करती है।
    • इस जड़ी बूटी का इस्‍तेमाल गले में खराश, पेट दर्द, अल्‍सर, सूजन और सामान्‍य दुर्बलता के इलाज में किया जाता है। (और पढ़ें – सूजन कम करने के घरेलू उपाय)
    • इसे अदरक के साथ लेने पर फ्लू, जुकाम और लेरिंजाइटिस से राहत मिलती है।
    • मुलेठी पेट और फेफड़ों से अतिरिक्‍त कफ को बाहर निकालती है एवं बलगम को साफ करती है। इस तरह मुलेठी शरीर से बलगम को बाहर निकालने में लाभकारी होती है।
    • आप मुलेठी को पाउडर (घी के साथ), काढ़े, दूध के काढ़े के रूप में या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।

बलगम की आयुर्वेदिक औषधियां

  • पिपल्यादि क्वाथ
    • इसे शुंथि (सोंठ), निर्गुण्डी, चित्रक, मारीच (काली‍ मिर्च), भरंगी, पिप्‍पली, वासा और अन्‍य जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है।
    • लंबे समय से हो रही ब्रोंकाइटिस की समस्‍या, कफज कास (कफ के कारण हुई खांसी) के इलाज में प्रमुख तौर पर इस मिश्रण का इस्‍तेमाल किया जाता है। इन समस्‍याओं में अतिरिक्‍त बलगम को बाहर निकालने में पिपल्‍यादि क्‍वाथ मदद करता है।
       
  • शत्‍यादि लेह
    • इस आयुर्वेदिक मिश्रण को शुंथि, मुस्‍ता, अतिविष,  कपूर कचरी, हरीतकी, हिंगु (हींग) और विभिन्‍न जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है।
    • आप इस औषधि को तक्र (छाछ) के साथ या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
    • प्रमुख तौर पर इसका इस्‍तेमाल जीर्ण ब्रोंकाइटिस में अतिरिक्‍त बलगम को साफ करने के लिए किया जाता है।
       
  • धनवंतरम गुटीका
    • धनवंतरम गुटीका को 17 जड़ी बूटियों से बनाया गया है जिसमें इलायची, कपूर, हरीतकी, जीरा, गुलाब जल और शुंथि शामिल है।
    • इस औषधि का इस्‍तेमाल उल्‍टी और हिचकियां रोकने के लिए किया जाता है। ये शरीर से बलगम को भी कम करती है और इस वजह से सांस फूलने, रुमेटिक समस्‍याओं, खांसी और टीबी के इलाज में इस औषधि की सलाह दी जाती है।
    • आप धनवंतरम गुटीका के साथ जीरे का काढ़ा या डॉक्‍टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • दशमूल क्‍वाथ
    • दशमूल क्‍वाथ एक काढ़ा है जिसे गोक्षुर, बेल, अग्निमंथ और विभिन्‍न जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है।
    • ये औषधि हिक्‍क (हिचकी), वातव्‍याधि (वात बढ़ने के कारण हुए रोगों), अर्दित (चेहरे पर लकवा) और लकवे के इलाज में उपयोगी है।
    • दशमूल क्‍वाथ, अस्‍थमा की बीमारी में अतिरिक्‍त बलगम को साफ करने में भी मदद करता है।

व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।

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क्‍या करें

क्‍या न करें

  • कंद वाली सब्जियां जैसे कि आलू और शकरकंद न खाएं।
  • दही, मक्‍का, बेसन और सरसों की पत्तियां खाने से बचें।
  • मछली और सूखे खाद्य पदार्थों से दूर रहें।
  • ठंडा पानी न पीएं।
  • धूम्रपान न करें।
  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि भूख, प्‍यास, पेशाब, मल त्‍याग की क्रिया और भावनाओं को दबाए नहीं।
  • भैंस का दूध और काले चने न लें।
  • दिन के समय न सोएं एवं जमीन पर सोने से बचें। (और पढ़ें – दिन में सोने के नुकसान)
  • ज्‍यादा ठंडे वातावरण से दूर रहने की कोशिश करें। 

एक चिकित्‍सीय अध्‍ययन में लंबे समय से ब्रोंकाइटिस से ग्रस्‍त 50 मरीज़ों को 48 दिनों तक पिपल्‍यादि क्‍वाथ के साथ शत्‍यादि लेह और वासा स्‍वरस (रस) दिया गया। अध्‍ययन के 15वें, 30वें और 48वें दिन मरीज़ों की परिस्थिति की जांच की गई। इन 48 दिनों में 22 मरीज़ों की हालत में काफी सुधार देखा गया जबकि 26 मरीज़ों को सामान्‍य राहत मिली। 

(और पढ़ें – कफ निकालने के उपाय)

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आयुर्वेद के अनुसार ठंड में निकलने, प्राकृतिक इच्‍छाओं को दबाने, दिन के समय में पेशाब रोकने और कुछ विशिष्‍ट खाद्य पदार्थ जैसे कि दही के कारण कफ दोष खराब हो सकता है जिससे शरीर में बलगम बनने लगता है। लंबे समय से हो रही ब्रोंकाइटिस की समस्‍या या ओब्‍स‍ट्रक्टिव पल्‍मोनरी विकार (फेफड़ों के रोगों का एक समूह जो वायुप्रवाह को अवरुद्ध करता है और सांस लेने में दिक्‍कत होती है), श्वास नलियों के फैलाव, बलगम वाली खांसी, एलर्जी, रजयक्षम (टीबी) तमक श्‍वास (अस्‍थमा), धूम्रपान, पोस्‍ट नेजल ड्रिप (गले के पीछे बलगम का नीचे की ओर जाना), साइनस और माइक्रोबियल संक्रमण जैसे कुछ अन्‍य कारणों की वजह से अधिक मात्रा में बलगम बनने लगता है।

अत्‍यधिक बलगम बनने के साथ-साथ कई लोगों को सिरदर्द, थकान और शरीर में भारीपन भी महसूस होता है। खांसी, छींक और मुंह में गाढ़ा कफ आना भी बलगम की समस्‍या से जुड़े कुछ अन्‍य लक्षण हैं।

निदान परिवार्जन में रोग के कारण को दूर किया जाता है। ये खांसी और अस्‍थमा के कारण बन रहे बलगम का प्रमुख इलाज है। 

(और पढ़ें – ज्यादा खांसी आने पर क्या करें)

  • नास्‍य कर्म
    • नास्‍य कर्म में जड़ी बूटियों और औषधीय मिश्रणों को नाक में डाला जाता है।
    • इससे गले, गर्दन और सिर की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है और उनकी सफाई होती है।
    • इस चिकित्‍सा से सिर की जकड़न, गर्दन से संबंधित विकारों, माइग्रेन, गंडमाला, बोलने में दिक्‍कत और पलकों से संबंधित विकारों से राहत मिलती है।
    • बला, विडंग और मुस्‍ता जैसी कुछ जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल नास्‍य कर्म में किया जाता है।
    • कफज शिरोरोग (साइनस) में शरीर से खराब कफ को बाहर निकालने के लिए नास्‍य कर्म किया जाता है। ये चेहरे और सिर में स्थित साइनस को साफ करता है। ये चिकित्‍सा तमक श्‍वास में भी लाभकारी है। (और पढ़ें – साइनस का आयुर्वेदिक इलाज)
       
  • वमन
    • वमन चिकित्‍सा से शरीर से अत्‍यधिक पित्त और कफ को उल्‍टी के ज़रिए बाहर निकाला जाता है।
    • इस चिकित्‍सा का प्रमुख तौर पर इस्‍तेमाल साइनस, श्‍वसन विकारों, राइनाइटिस और ह्रदय संबंधित रोगों में किया जाता है।
    • वमन से पहले स्‍नेहन और स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि) के ज़रिए शरीर की नाडियों में मौजूद बलगम को ढीला कर पाचन मार्ग में लाया जाता है। अंदरूनी रूप से स्‍नेहन के लिए व्‍यक्‍ति को वसायुक्त और चिकने खाद्य पदार्थों को घी (क्‍लैरिफाइड मक्‍खन) में मिलाकर दिया जाता है।
    • ये बलगम को बाहर निकालने में मदद करता है। कफ प्रधान रोगों जैसे कि ब्रोंकाइल अस्‍थमा और ब्रोंकाइटिस का वमन बेहतरीन इलाज है।
       
  • विरेचन
    • विरेचन में अतिरिक्‍त पित्त और विषाक्‍त पदार्थों को गुदा मार्ग के ज़रिए शरीर से बाहर निकाला जाता है।
    • ये चिकित्‍सा कई तरह की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं जैसे कि जठरांत्र में दिक्‍कत, पीलिया, त्‍वचा रोग, शरीर के ऊपरी हिस्‍सों में ब्‍लीडिंग, जीर्ण (पुराना) पीलिया, मिर्गी और उन्‍माद के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें – ब्लीडिंग रोकने का तरीका)
    • विरेचन कर्म से श्‍वसन रोगों जैसे कि अस्‍थमा और साइनस से भी राहत मिलती है जिनमें अधिक बलगम बनता है।
    • विरेचन चिकित्‍सा से पहले अंदरूनी स्‍नेहन की जरूरत पड़ सकती है।
    • विरेचन (दस्‍त) के बाद भूख में सुधार और शरीर में हल्‍कापन महसूस होता है।(और पढ़ें –  भूख बढ़ाने का उपाय)
  • खून की उल्‍टी, कमजोर और ह्रदय रोगों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को वमन कर्म नहीं देना चाहिए। बच्‍चों और वृद्ध व्‍यक्‍ति को भी ये चिकित्‍सा नहीं देनी चाहिए।
  • विरेचन कर्म के दौरान बहुत ज्‍यादा दस्‍त की वजह से कमजोरी, बेहोशी, पेट में दर्द, मल में खून आना और सुस्‍ती की समस्‍या हो सकती है।
  • नास्‍य कर्म का अत्‍यधिक इस्‍तेमाल करने के कारण ज्‍यादा राल बनने, सिरदर्द और उलझन में रहने की समस्‍या हो सकती है। (और पढ़ें – सिर दर्द में क्या खाएं)
  • हेपेटाइटिस, पीलिया और शरीर में अतिरिक्‍त पित्त की स्थिति में हरिद्रा नहीं लेनी चाहिए।
  • पिप्‍पली के कारण शरीर में अत्‍यधिक पित्त बन सकता है।
  • वच का ज्‍यादा इस्‍तेमाल करने के कारण चकत्ते, जी मितली और उल्‍टी की समस्‍या हो सकती है।(और पढ़ें – त्वचा पर चकत्तों के घरेलू उपाय)
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शरीर में बलगम का उत्‍पादन श्‍वसन रोग, धूम्रपान, दोष के खराब होने, एलर्जी और संक्रमण जैसे कई कारणों से होता है। बलगम के आयुर्वेदिक इलाज में जड़ी बूटियों और औषधियों के साथ विभिन्‍न चिकित्‍साएं दी जाती हैं जो शरीर से कफ को बाहर निकालती हैं और रोग का इलाज करती हैं।

(और पढ़ें – बलगम की जांच कैसे होती है)

धूम्रपान से दूर रहकर, गुनगुने पानी, संतुलित आहार और सांस संबंधित रोगों से बचने के लिए आवश्‍यक सावधानियां बरत कर अतिरिक्‍त बलगम बनने से रोका जा सकता है। अंग्रेजी उपचार के विपरीत आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों के कम या नाम मात्र हानिकारक प्रभाव होते हैं। आयुर्वेदिक उपचार से निश्‍चित ही सभी रोगों के इलाज के साथ-साथ संपूर्ण सेहत में भी सुधार आता है। 

(और पढ़ें – बलगम में खून क्यों आता है)

Dr Bhawna

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आयुर्वेद
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Padam Dixit

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आयुर्वेद
10 वर्षों का अनुभव

Dr Mir Suhail Bashir

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2 वर्षों का अनुभव

Dr. Saumya Gupta

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आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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