समय से पहले प्रसव को प्रीटर्म लेबर (Preterm labour) या प्रीमैच्योर लेबर (Premature labour) कहते हैं। इस स्थिति में गर्भावस्था के निश्चित सप्ताह पूरे होने से पहले ही बच्चे का जन्म हो सकता है। अगर समय से पहले बच्चे का जन्म हो जाए तो उसे प्रीटर्म बर्थ (Preterm birth) या प्रीमैच्योर डिलीवरी कहा जाता है। 

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इस तरह समय से पहले पैदा होना, बच्चों में कई तरह की समस्याओं का कारण हो सकता है। भारत में इस तरह के मामले दुनिया में सबसे अधिक देखने को मिलते हैं। 

गर्भावस्था के दौरान होने वाली इस तरह की स्थिति के बारे में महिलाओं को पूरी जानकारी मिलें, इस उद्देश्य से आपको समय से पहले डिलीवरी और बच्चे के जन्म के बारे में बताया जा रहा है। साथ ही साथ आपको प्रीटर्म बर्थ क्यों होता है, समय से पहले प्रसव के लक्षण, प्रीटर्म लेबर शुरू हो तो क्या करें, प्रीमैच्योर लेबर के जोखिम का पता लगाने के लिए टेस्ट, क्या समय से पहले पैदा हुए शिशु को कोई खतरा होता है, और क्या दोबारा प्रेग्नेंसी में भी प्रीटर्म बर्थ होने का खतरा होता है, आदि बातों के बारे में भी विस्तार से बताया जा रहा है।

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  1. समय से पहले प्रसव और डिलीवरी क्या है? - Samay se pahle prasav aur delivery kya hai?
  2. समय से पहले बच्चे का जन्म होना भारत में आम है क्या? - Samay se pahle bacche ke janm hona bharat me aam hai kya?
  3. समय से पहले बच्चा क्यों होता है? - Samay se pahle bachha kyu hota hai
  4. समय से पहले प्रसव शुरू होने के लक्षण - Samay se pahle prasav shuru hone ke lakshan
  5. समय से पहले प्रसव शुरू हो तो क्या करें? - Samay se pahle prasav ho to kya kare?
  6. प्रीमैच्योर लेबर के जोखिम का पता लगाने के लिए टेस्ट - Premature labour ke jokhim ka pata lagane ke liye test
  7. क्या किसी स्थिति में डॉक्टर समय से पहले डिलीवरी करवाने को कहते हैं? - Kya kisi sthiti me doctor preterm delivery karvane ko kehte hain?
  8. क्या अगली प्रेग्नेंसी में भी प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा हो सकता है? - Kya agli pregnancy me bhi preterm birth ka khatra ho sakta hai?
समय से पहले प्रसव, डिलीवरी और बच्चे का जन्म के डॉक्टर

अगर गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले ही गर्भाशय में दबाव के कारण गर्भाशय का खुलना शुरू हो जाता है, तो इस स्थिति को समय से पहले प्रसव या "प्रीटर्म लेबर" कहा जाता है।

ऐसे की मामलों में, 37 सप्ताह पूरे होने से पहले ही मान बच्चे को जन्म दे देती है। इसको बच्चा का समय से पहला पैदा होना कहा जाता है। चिकित्सीय भाषा में इसे "प्रीटर्म बर्थ" कहते हैं।

गर्भवती महिला को समय से पहले प्रसव पीड़ा होने का हर बार यह मतलब नहीं होता कि वह समय से पहले बच्चे को जन्म देंगी। निर्धारित समय से पहले प्रसव पीड़ा का अनुभव करने वाली करीब 50 प्रतिशत महिलाएं 37 सप्ताह या अपना गर्भकाल पूरा करने के बाद ही बच्चे को जन्म देती हैं।

गर्भवती महिला या गर्भ में पल रहे बच्चे को कोई समस्या हो तो उस स्थिति में डॉक्टर के द्वारा बच्चे का जन्म समय से पहले कर दिया जाता है। प्रीटर्म बर्थ के लगभग एक-चौथाई मामले ऐसे होते हैं। गर्भवती महिला या उसके बच्चे को कोई परेशानी होने की स्थिति में डॉक्टर गर्भकाल के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले ही सिजेरियन डिलीवरी करने का विकल्प चुन सकते हैं। समय से पहले डिलीवरी का यह विकल्प गंभीर चिकित्सीय स्थिति, प्री-एक्लेमप्सिया या गर्भ में बच्चे के विकास रुक जाने के मामलों में चुना जाता है। 

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समय से पहले बच्चे के जन्म के मामले अन्य देशों के मुकाबले भारत में अधिक देखने को मिलते हैं। दुनियाभर में समय से पहले डिलीवरी के जितने मामले सामने आते हैं, मात्र भारत में ही उसके एक चौथाई मामले दर्ज होते हैं। विश्व स्वास्थ संगठन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में सालाना करीब 35,19,100 बच्चे समय से पहले पैदा होते हैं।

प्रीटर्म डिलीवरी के 60 प्रतिशत से अधिक मामले अफ्रिका और साउथ एशिया में होते हैं। हालांकि दुनिया के अन्य देशों में भी प्रीटर्म बर्थ एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। कम आय वाले देशों में करीब 12 प्रतिशत बच्चों का जन्म समय से पहले होता है, जबकि अधिक आय वाले देशों में यह आंकड़ा करीब 9 प्रतिशत है।

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वैज्ञानिक अभी तक समय से पहले बच्चे का जन्म होने के कारण खोज नहीं पाए हैं। हालांकि, कुछ ऐसे कारक का पता चला है जिनकी वजह से प्रीटर्म बर्थ होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इनके बारे में यहाँ बताया जा रहा है -

1. संक्रमण के कारण बच्चा का समय से पहले होना

यौन अंगों के संक्रमण के कारण समय से पहले बच्चे का जन्म हो सकता है। गर्भ में बच्चा "एम्नियोटिक थैली" (Amniotic sac; गर्भाशय में बच्चे को सुरक्षित रखने वाले द्रव से भरी थैली) में होता है। यौन अंगों के मार्ग में बैक्टीरिया कुछ ऐसे पदार्थ पैदा कर सकते हैं जिससे ये थैली कमजोर पड़ जाती है। कई बार ये इतनी कमजोर हो जाती है कि समय से पहले ही फट जाती है।

कई मामलों में एम्नियोटिक थैली फटती नहीं है लेकिन गर्भाशय में संक्रमण हो जाता है। इस संक्रमण के कारण समय से पहले बच्चे के जन्म की संभावना बढ़ा जाती है।

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  • प्रेग्नेंसी से पूर्व या शुरू होते ही आपको क्लैमाइडिया (Chlamydia/ यौन संचारित रोग) और गोनोरिया (Gonorrhea/ सूजाक/ यौन संचारित संक्रमण) का परीक्षण करवाना चाहिए। यदि आप इनमें से किसी से भी ग्रसित हों, तो आपको और आपके पति को इसका तुरंत इलाज करवाना चाहिए। इसके ठीक होने के बाद आपको दोबारा अपनी संतुष्टी के लिए इनका परीक्षण करवाना चाहिए। इसके बाद गर्भावस्था के दौरान सेक्स करने के लिए कंडोम का इस्तेमाल जरूर करें।
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  • इसके आलवा यदि इससे पहले आपके किसी बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ हो तो आपको बैक्टीरियल वेजिनोसिस (Bacterial vaginosis/ एक प्रकार का योनि संक्रमण) की जांच करवानी चाहिए। हालांकि कई अध्ययन बताते हैं कि गर्भावस्था की दूसरी और तीसरी तिमाही में बैक्टीरियल वेजिनोसिस का उपचार किया जाए तो दोबारा प्रीटर्म लेबर होने का जोखिम कम हो जाता है।
  • बैक्टीरियल वेजिनोसिस के अलावा ट्राइकोमोनिएसिस (Trichomoniasis; एक तरह का यौन संचारित संक्रमण) का परीक्षण भी किया जा सकता है। लेकिन ऐसा आम तौर पर ट्राइकोमोनिएसिस के लक्षण दिखने पर ही किया जाता है। 
  • एसिम्पटोमॅटिक बक्टेरियूरिया (Asymptomatic bacteriuria; एक तरह का यूरिन इन्फेक्शन जिसमें मूत्र  में सामान्य से ज्यादा बैक्टीरिया पाए जाते हैं, लेकिन फिर भी कोई लक्षण देखने को नहीं मिलता) भी प्रीटर्म बर्थ का कारण हो सकता है।
  • उपरकिखित योनि के रोग के आलावा गुर्दे का संक्रमण, निमोनिया और अपेंडिसाइटिस जैसे संक्रमण भी प्रीटर्म बर्थ के जोखिम को बढ़ा देते हैं।

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2. संक्रमण के अलावा प्रीटर्म बर्थ के अन्य कारण

  • गर्भनाल (Placenta) में समस्या होना, जैसें- प्लेसेंटा प्रिविआ (Placenta Previa), प्लेसेंटा एक्रिटा (Placenta accreta) और प्लेसेंटा पृथक्करण (Placenta Abruption) आदि।
  • गर्भाशय का बड़ा होना, जब आपके गर्भ में जुड़वा बच्चे होते हैं या एम्नियोटिक द्रव अधिक होता है।  (और पढ़ें - प्रेगनेंसी में क्या करें)
  • गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय की बनावट में गड़बड़ी होना।
  • गर्भावस्था के दौरान पेट के निचले हिस्से की सर्जरी होना, जैसे कि एपेंडिक्स, पित्ताशय की थैली या अंडाशय में गांठ निकालने के लिए। (और पढ़ें - अंडाशय में गांठ के घरेलू उपाय)

समय से पहले बच्चा होने (प्रीटर्म बर्थ) के जोखिम कारक

ऐसे कई कारक हैं जिनकी वजह से बच्चे के समय से पहले जन्म लेने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन ध्यान रहे कि ऐसा ज़रूरी नहीं है कि अगर इनमें से कोई भी कारक आप पर लागू हो तो आपका बच्चा समय से पहले जन्म लेगा ही। दूसरी ओर, प्रीटर्म बर्थ के 50 प्रतिशत मामलों में प्रेगनेंसी के दौरान इनमें से कोई भी कारक मौजूद नहीं होता है। 

जैसे कि पहले बताया गया है कि प्रीटर्म बर्थ होने के कारण आज तक ज्ञात नहीं हैं, लेकिन इसके होने कि सम्भावना इन स्थितियों में बढ़ जाती है अगर -

  • आपकी पहले प्रीटर्म डिलीवरी हो चुकी है।
  • आप एक या उससे ज्यादा बच्चों से प्रेग्नेंट हैं।
  • आपकी उम्र 17 से कम या 35 से ज्यादा है।
  • गर्भवती होने से पहले आपका वजन बहुत कम था या गर्भावस्था के दौरान वजन नहीं बढ़ा। (और पढ़ें - प्रेगनेंसी में वजन बढ़ना)
  • गर्भावस्था के पहली या तीसरी तिमाही में योनि से खून बहने की समस्या रही हो। (और पढ़ें - गर्भावस्था में खून आना)
  • प्रेगनेंसी में एनीमिया की समस्या रही हो।
  • गर्भावस्था के दौरान सिगरेट या शराब पीती हों।
  • पिछले और इस बच्चे के बीच में ज्यादा समय ना रखा हो तो, खास तौर से अगर पिछला बच्चा होने के 6 महीने से कम आप दोबारा गर्भवती हो गयी हों।
  • गर्भावस्था से पहले की देखभाल (Prenatal care) न करना। (और पढ़ें - गर्भवती महिला के लिए भोजन)
  • प्रेग्नेंसी के लिए आईवीएफ जैसे किसी उपचार के बाद गर्भधारण होना।
  • कम आय वर्ग के लोगों में ये समस्या ज्यादा देखि जाती है।
  • गर्भावस्था में तनाव से ग्रस्त होना। गर्भावस्था में अधिक तनाव होने कुछ हार्मोन बनते हैं जो गर्भाशय संकुचन शुरू होने का कारण बनते हैं।
  • घरेलू हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं में समय से पहले डिलीवरी की संभावनाएं बढ़ जाती है। (और पढ़ें - गर्भावस्था में तनाव का इलाज)
  • रात को काम करने वाली महिलाएं और अधिक शारीरिक कार्य करने वाली महिलाओं में प्रीमैच्योर लेबर का खतरा अधिक होता है।
  • अनुवांशिक कारण भी प्रीटर्म बर्थ की बड़ी वजह होते हैं।

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गर्भावस्था का निश्चित समय पूरा होने से पहले आप में निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं -

कई बार ये स्पष्ट नहीं होता कि यह लक्षण क्यों हो रहे हैं, क्योंकि गर्भावस्था में पेल्विक दर्द या पीठ के निचले हिस्से में दर्द जैसे लक्षण गर्भावस्था में आम होते हैं। लेकिन किसी बड़ी परेशानी से बचने के लिए इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर आपको अपने डॉक्टर से तुरंत सलाह लेनी चाहिए।

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अगर गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले ही पेट में दबाव शुरू हो जाए या योनि से पानी आना शुरू हो जाए, तो इस स्थिति में आपको तुरंत डॉक्टर या अस्पताल से संपर्क करना चाहिए। ऐसी स्तिथि रात में उत्पन्न हो तो आपको सुबह तक का इंतजार नहीं करना चाहिए, बल्कि जल्द से जल्द किसी नजदीकी अस्पताल पहुंच जाना चाहिए। महिला यदि घर में अकेली हो तो उसको किसी की मदद ले लेनी चाहिए या एंबुलेंस को फोन कर घर बुलवा लेना चाहिए।

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दो तरह के टेस्ट से महिलाओं में प्रीमैच्योर लेबर के जोखिम का पता लगाया जा सकता है। जिन महिलाओं को प्रीमैच्योर लेबर के लक्षण महसूस हों, वह इन टेस्ट के द्वारा इस समस्या की पुष्टि कर सकती हैं। इन टेस्ट को कराना आपके लिए लाभकारी होता है, क्योंकि अगर इनसे पता चले कि आपको प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा नहीं है तो इससे प्रीमैच्योर लेबर को लेकर आपके दिमाग में चल रही सारी चिंताएं समाप्त हो जाती हैं और आप अनावश्यक उपचार से भी बच जाती हैं।

कई स्वास्थ्य संस्थाएं सभी गर्भवती महिलाओं के द्वारा इस तरह के टेस्ट को करवाना उचित नहीं मानती हैं। अध्ययन से इस बात का पता चला है कि जिन महिलाओं को प्रीमैच्योर लेबर का ज्यादा जोखिम न हो या लक्षण महसूस न हों, उनमें यह टेस्ट ज्यादा कुछ नहीं बता पाते हैं। आगे इन टेस्ट के बारे में जानें -

  1. अल्ट्रासाउंड के द्वारा गर्भाशय ग्रीवा की लंबाई की जांच करना
    गर्भधारण के बाद पहले चेकअप में आपके डॉक्टर गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) की जांच करते हैं। अगर उनको किसी समस्या की अशंका हो तो वह इसकी पुष्टि के लिए अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह देते हैं। अल्ट्रासाउंड में यदि गर्भाशय ग्रीवा पतली और खुलती हुई दिखाई दे, तो इस स्थिति में महिला के गर्भवती होने पर प्रीटर्म डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है। (और पढ़ें - प्रेग्नेंसी में अल्ट्रासाउंड कब कराएं)

    इसके अलावा आपके डॉक्टर को गर्भाशय ग्रीवा असामान्य या छोटी लगे, तब भी वह आपको अल्ट्रासाउंड कराने को कह सकते हैं। पेल्विक दर्द, ऐंठन, पीठ में दर्द, योनि से अधिक मात्रा में चिपचिपा तरल का निकलना और रक्त के थक्के आना, यह सभी गर्भाशय ग्रीवा में बदलाव के लक्षण माने जाते हैं।

    अल्ट्रासाउंड में गर्भाशय ग्रीवा में किसी तरह के बदलाव दिखाई देने पर डॉक्टर आपको शारीरिक कार्य और गतिविधियां कम करने की सलाह देते हैं। इसके अलावा आपको सेक्स और धूम्रपान न करने को कहते हैं। आपकी और बच्चे की स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार आपके डॉक्टर कुछ सप्ताह बाद आपको दोबारा से अल्ट्रासाउंड कराने को कह सकते हैं। (और पढ़ें - प्रेगनेंसी में सेक्स)

    यदि गर्भावस्था के 24 सप्ताह से पहले ही आपको गर्भाशय ग्रीवा में संकुचन (contraction) के बिना ही बदलाव महसूस हो, तो डॉक्टर "सरक्लेज" (Cerclage/ गर्भाशय ग्रीवा को बंद करने की विधि) करवाने के लिए कह सकते हैं। इस विधि में धागे की मदद से टांके लगाकर गर्भाशय ग्रीवा को बंद किया जाता है। इस प्रक्रिया में जोखिम जरूर होने के साथ ही, इसके फायदे-नुकसान पर भी कई तरह के मतभेद हैं। (और पढ़ें - अल्ट्रासाउंड टेस्ट)

    अगर आपको को पहले गर्भाशय ग्रीवा के बढ़ने (चिकित्सीय भाषा में "सर्विकल इंसाफिशिएंसी") की समस्या रही हो, तो आपके लिए सरक्लेज से फायदा हो सकता है। सरक्लेज पहली तिमाही समाप्त होते ही की जाती है। यदि पहले आपका एक बच्चा 34 सप्ताह से पहले पैदा हुआ था तो डॉक्टर इस बार की प्रेग्नेंसी में आपकी नियमित जांच करते रहेंगे और 23 सप्ताह की प्रेग्नेंसी से पहले आवश्यकता होने पर सरक्लेज कर सकते हैं। इस बारे में डॉक्टर से परामर्श करें।

    गर्भाशय ग्रीवा के संकुचन वाली महिलाओं में योनि प्रोजेस्टेरोन इस्तेमाल करने से प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा कम किया जा सकता है। (और पढ़ें - गर्भावस्था में एक्सरसाइज)
     
  2. भ्रूण फाइब्रोनेक्टिन जांच या एफएफएन (Fetal Fibronectin Screening or FFN)
    यह टेस्ट सामान्यतः उन महिलाओं के लिए किया जाता है जिन्हे प्रीटर्म लेबर के लक्षण महसूस हो रहे हों। "फीटल फाइब्रोनेक्टिन" (Fetal fibranectin) भ्रूण झिल्ली द्वारा उत्पादित एक प्रोटीन होता है। यदि 24 से 34 सप्ताह के बीच आपके गर्भाशय ग्रीवा और योनि स्राव के नमूनों में भ्रूण फाइब्रोनेक्टिन अधिक पाया जाता है, तो आपको प्रीटर्म डिलीवरी का जोखिम अधिक होता है।

    एफएफएन के सकारात्मक परिणाम की स्थिति में आपके डॉक्टर प्रसव रोकने के साथ ही बच्चे के फेफड़ों के पूर्ण विकार के लिए आपको "कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स" (Corticosteroids/ एक प्रकार की दवा) दे सकते हैं। 

    अगर इस टेस्ट का नकारात्मक परिणाम आता है तो इसका मतलब है कि आगे वाले दो सप्ताह में आपकी डिलीवरी होने की संभावना बहुत ही कम है। इस टेस्ट के नकारात्मक परिणाम से आपकी सभी शंकाएं दूर हो जाती है और आप अस्पताल के अनावश्यक इलाज से बच जाती हैं।

(और पढ़ें - गर्भावस्था में ध्यान रखने वाली बातें)

कई बार गर्भावस्था में इस तरह की स्थितियां बन जाती हैं कि डॉक्टर आपको बच्चे का जन्म समय से पहले करवाने की सलाह देते हैं। डॉक्टर आपके और आपके बच्चे के बेहतर स्वास्थ के लिए प्रीटर्म बर्थ का सुझाव दे सकते हैं और ऐसा करने से आप या आपका बच्चा कई तरह के जोखिम से बच जाते हैं।

निम्न तरह की स्थिति में डॉक्टर बच्चे का जन्म समय से पहले करने का सुझाव दे सकते हैं -

  • गर्भ में बच्चे का विकास सही तरह से न हो पाना।
  • गर्भ के अंदर बच्चे में विकृति आना। 
  • गर्भवती महिला में उत्पन्न कोई ऐसी चिकित्सीय स्थिति जिसके कारण बच्चे का तुरंत जन्म होना ही उसके लिए ज्यादा सुरक्षित होता है। (और पढ़ें - प्रेगनेंसी में क्या करें)
  • गर्भवती महिला में दीर्घकालिक रोगों का होना, जैसे तनाव, डायबिटीज, एनीमिया और नेफ्रैटिस (nephritis/ गुर्दे की सूजन) आदि। (और पढ़ें - डायबिटीज में परहेज)
  • गर्भवती महिला के पेट के निचले हिस्से में चोट लगना।
  • गर्भावस्था में प्री-एक्लेमप्सिया (Pre-eclampsia/ गर्भावस्था में हाई बीपी के कारण होने वाला रोग) होना।

(और पढ़ें - बीपी कम करने के उपाय)

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एक बार प्रीटर्म डिलीवरी होने के बाद दोबारा इस समस्या के होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। वर्तमान में इससे बचाव का कोई तरीका उपलब्ध नहीं है। आपकी दूसरी प्रेग्नेंसी में डॉक्टर आपकी स्थितियों की गहनता से जांच करते रहेंगे और इस विहाय को लेकर आपकी चिंता को कम करने का प्रयास करेंगे। आवश्यकता महसूस होने पर डॉक्टर बचाव के तौर पर गर्भाशय में टांका लगा सकते हैं।

(और पढ़ें - गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर से चेकअप)

अगर आप धूम्रपान और अन्य मादक दवाओं का सेवन करना बंद कर देती हैं, तो आप इस समस्या के जोखिम को कम कर सकती हैं।

(और पढ़ें - प्रेगनेंसी डाइट चार्ट)

 

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