आयुर्वेद में पेट में सूजन (गेस्ट्राइटिस) को अम्‍लपित्त की समस्‍या के एक प्रकार के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पेट में सूजन की समस्‍या में पेट की परत पर सूजन और जलन महसूस होती है। किसी विषाक्‍त पदार्थ, नकसीर या संक्रमण के कारण गेस्‍ट्राइटिस की शिकायत हो सकती है।

(और पढ़ें - पेट के रोग का उपचार)

आयुर्वेद में पेट की सूजन के इलाज के लिए अभ्‍यंग (तेल मालिश) वमन (औषधियों से उल्‍टी) और विरेचन (मल द्वारा शुद्धिकरण) कर्म का उल्‍लेख किया गया है। गेस्ट्राइटिस के इलाज में जड़ी बूटियों और औषधियों जैसे कि आमलकी (आंवला), बिल्‍व (बेल), शतावरी, यष्टिमधु (मुलेठी), भृंगराज, लघु सूतशेखर, सूतशेखर, कामदुधा रस, नारिकेल लवण क्षार और कपर्दिका भस्‍म का इस्‍तेमाल किया जाता है।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से गेस्ट्राइटिस - Ayurveda ke anusar Pet me Sujan
  2. पेट में सूजन का आयुर्वेदिक इलाज - Pet ki Sujan ka ayurvedic ilaj
  3. पेट में सूजन की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Pet me Sujan ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार पेट में सूजन आने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Gastritis karne ke liye kya kare kya na kare
  5. गेस्ट्राइटिस की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Pet me Sujan ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. पेट में सूजन की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Gastritis ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. गेस्ट्राइटिस की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Pet ki Sujan ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
पेट में सूजन की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेद में अम्‍लपित्त का व्‍यापक वर्णन किया गया है। इसमें जीईआरडी (पेट में मौजूद तत्‍वों का भोजन नली में वापिस आना), पेट में सूजन, हाइपरएसिडिटी और पेट में छाले जैसे जठरांत्र से संबंधित कई विकारों को शामिल किया गया है। गेस्ट्राइटिस बासी भोजन या विरूद्ध अन्‍न (जैसे दूध के साथ मछली) के कारण दोष में असंतुलन के कारण होने वाली सामान्‍य समस्‍याओं में से एक है।  

(और पढ़ें - वात, पित्त और कफ में असंतुलन के लक्षण)

पेट के ठीक नीचे छोटी आंत के पहले भाग को ग्रहणी (ड्यूडेनम) कहा जाता है जिसमें त्रिदोष (वात,पित्त और कफ) पाए जाते हैं। ग्रहणी अग्नि (पाचन अग्नि) के लिए आधार का काम करती है। पाचन अग्नि को भोजन को पचाकर शरीर को पोषण प्रदान करने के लिए जान जाता है। त्रिदोष में असंतुलन इस अग्नि को प्रभावित करता है जिसके कारण अम्‍लपित्त की समस्‍या उत्‍पन्‍न होती है। अमा (विषाक्‍त पदार्थों) का जमना भी अम्‍लपित्त का कारण है। इन दोनों कारणों के एक साथ होने पर पेट की परत में सूजन और जलन महसूस होती है।

आयुर्वेदिक ग्रंथों में अवस्‍थ (भोजन/व्‍यक्‍ति की अवस्‍था), क्रम (भोजन के क्रम अनुसार), दोष, पाक (खाना पकाने की विधि), समयोग (भोजन की मात्रा) और उपचार के आधार पर विरुद्ध अन्‍न के विभिन्‍न प्रकारों का उल्‍लेख किया गया है। अनुचित खाद्य पदार्थ के कारण पित्त दोष बढ़ सकता है जिसकी वजह से खट्टी डकारें आ सकती हैं जो कि अम्‍लपित्त के सबसे सामान्‍य लक्षणों में से एक है। 

(और पढ़ें - खाना खाने का सही समय)

Digestive Tablets
₹314  ₹349  9% छूट
खरीदें
  • अभ्‍यंग
    • अभ्‍यंग में जड़ी बूटियों या औषधीय मिश्रणों को विभिन्‍न रूप में पूरे शरीर या प्रभावित हिस्‍से पर लगाया जाता है। जड़ी बूटियों या औषधीय मिश्रणों का चयन व्‍यक्‍ति की प्रकृति पर निर्भर करता है।
    • ये जड़ी बूटियां प्रतिरक्षा तंत्र को उत्तेजित करती हैं और संक्रमण के कारण हुई पेट में सूजन को रोकता है।
    • हाइपरएसिडिटी के कारण हुए गेस्ट्राइटिस के इलाज में पूरे शरीर की मालिश के लिए चंदन तेल और लाक्षादि तेल के इस्‍तेमाल की सलाह दी जाती है।
       
  • वमन
    • पंचकर्म थेरेपी में से एक है वमन कर्म जिसमें एक जड़ी बूटी या हर्बल मिश्रणों के इस्‍तेमाल से उल्‍टी लाई जाती है।
    • इस प्रक्रिया में पेट की सफाई और शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। ये शरीर से अतिरिक्‍त कफ को भी बाहर निकालता है। (और पढ़ें - पेट के कीड़े मारने के उपाय)
    • वमन कर्म से अपच, विष और पेट एवं आंतों की सूजन का इलाज किया जाता है।
    • वमन के लिए दो विभिन्‍न प्रकार की जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है जैसे कि:
      • वामक जड़ी बूटियां: उल्‍टी लाने वाली जड़ी बूटियां। 
      • वमनोपेग जड़ी बूटियां: उल्‍टी लाने वाली जड़ी बूटियों के प्रभाव को बढ़ाने वाली जड़ी बूटियां।
    • अम्‍लपित्त की स्थिति में उल्‍टी लाने के लिए आमतौर पर नीम का प्रयोग किया जाता है।
       
  • विरेचन
    • विरेचन में जड़ी बू‍टियों और इनसे बने मिश्रण के आधार पर रेचन किया जाता है एवं मल त्‍याग द्वारा शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। इससे शरीर की सफाई होती है। (और पढ़ें - शरीर की सफाई कैसे करे)
    • वमन का प्रयोग प्रमुख तौर पर खराब हुए पित्त दोष को निकालने के लिए किया जाता है। इस प्रकार ये अ‍म्‍लपित्त से संबंधित सभी समस्‍याओं को नियंत्रित करने में असरकारी है।
    • अतिरिक्‍त कफ के कारण हुई समस्‍याओं को भी नियंत्रित करने में भी इस प्रक्रिया का इस्‍तेमाल किया जाता है क्‍योंकि अतिरिक्‍त कफ के कारण ज्‍यादा बलगम और पित्त का स्राव होने लगता है
    • वमन के लिए जड़ी बूटी के प्रकार और खुराक का निर्धारण व्‍यक्‍ति एवं रेचन की प्रकृति के आधार पर किया जाता है।

(और पढ़ें - एसिडिटी क्या है)

गेस्ट्राइटिस के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • बिल्‍व
    • बिल्‍व पाचन, परिसंचरण, तंत्रिका और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें पोषक, संकुचक (शरीर के ऊतकों को संकुचित करने वाले), ब्‍लीडिंग रोकने वाले, शक्‍तिवर्द्धक, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाले, परजीवीरोधी और बुखार कम करने वाले गुण होते हैं। ये सभी गुण मिलकर इस जड़ी बूटी को गेस्ट्राइटिस के इलाज में उपयोगी बनाते हैं। (और पढ़ें - ब्लीडिंग (खून बहना) कैसे रोकें)
    • ये प्रमुख पाचन जड़ी बूटियों में से एक है जो कि कफ विकारों को नियंत्रित करने में असरकारी है। इसके अलावा ये कुछ प्रकार की अपच और श्लेष्मा झिल्ली के रोगों के इलाज में भी प्रभावकारी होती है।
    • ये खराब हुए वात और कफ को संतुलित करती है एवं कई रोगों का कारण बने अमा को शरीर से बाहर निकालती है।
       
  • यष्टिमधु
    • यष्टिमधु एवं मुलेठी पाचन तंत्र, उत्‍सर्जन, श्‍वसन, तंत्रिका और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें कफ निस्‍सारक (बलगम साफ करने वाले), ऊर्जादायक और शक्‍तिवर्द्धक गुण होते हैं। (और पढ़ें - बलगम निकालने का नुस्खा)
    • ये श्लेष्मा झिल्ली पर एक सुरक्षात्‍मक परत बनाकर उसे राहत देती है।
    • यष्टिमधु में हल्‍के रेचक प्रभाव भी होते हैं जो कि पेट की श्लैष्मिक परत को ठंडक देकर गेस्‍ट्राइटिस के सामान्‍य लक्षणों जैसे कि ऐंठन एवं पेट दर्द से राहत दिलाते हैं।
    • ये पेट से खराब हुए कफ और खून को साफ करती है। (और पढ़ें - खून को साफ करने वाले आहार)
    • मुलेठी का इस्‍तेमाल काढ़े, दूध के काढ़े, घी (क्‍लैरिफाइड मक्‍खन) के साथ या पाउडर के रूप में कर सकते हैं।
    • ऑस्टियोपोरोसिस और हाइपरटेंशन से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को सिर्फ दूध के साथ मुलेठी का सेवन करना चाहिए।
       
  • शतावरी
    • शतावरी पाचन, परिसंचरण और प्रजनन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें पोषक, शक्‍तिवर्द्धक, ऐंठन दूर करने वाले, दस्‍त एवं पेचिश रोकने वाले और भूख बढ़ाने वाले गुण मौजूद हैं। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने के लिए क्या करें)
    • ये श्‍लेष्‍मा झिल्‍ली की सुरक्षा और खून को साफ करती है।
    • प्रतिरक्षा तंत्र को उत्तेजित करने वाली शतावरी संक्रमण के कारण हुई गेस्ट्राइटिस से बचाने में मदद करती है।
    • गेस्ट्राइटिस के अलावा शतावरी हाइपरएसिडिटी, अल्‍सर, पानी की कमी (डिहाइड्रेशन), दस्‍त, पेचिश और लंबे समय से हो रहे बुखार को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • शतावरी को घी, काढ़े, पाउडर या तेल के रूप में ले सकते हैं।
       
  • आमलकी
    • आमलकी परिसंचरण, पाचन और उत्‍सर्जन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें शीतल, ऊर्जादायक, रेचक, संकुचक, पोषक, ब्‍लीडिंग रोकने वाले, शक्‍तिवर्द्धक और भूख बढ़ाने वाले गुण मौजूद हैं।
    • ये आंतों और पेट में सूजन के कारण हुई गेस्‍ट्राइटिस की समस्‍या से राहत दिलाने में उपयोगी है। (और पढ़ें - पेट में सूजन होने पर क्या करें)
    • आमलकी आंतों को भी साफ करती है और अल्‍सर एवं जठरांत्र संबंधित विकारों के इलाज में मदद करती है।
    • काढ़े या पाउडर के रूप में आमलकी ले सकते हैं।
       
  • भृंगराज
    • भृंगराज पाचक, परिसंचरण और तंत्रिका तंत्र पर कार्य करती है। ये बुखार को कम, घाव भरने, रेचक, नसों को आराम देने वाले और ऊर्जादायक गुणों से युक्‍त है। (और पढ़ें - नसों में दर्द के लक्षण)
    • ये विष को शरीर से बाहर निकालकर सूजन को कम करती है। किसी बाहरी विषाक्‍त पदार्थ के कारण हुई पेट में सूजन के इलाज में ये असरकारी जड़ी बूटी है।
    • भृंगराज का इस्‍तेमाल काढ़े, अर्क, पाउडर, घी या तेल के रूप में कर सकते हैं।

गेस्‍ट्राइटिस के लिए आयुर्वेदिक औषधियां 

  • लघु सूतशेखर रस
    • लघु सूतशेखर को शुंथि (सोंठ) और स्वर्ण गैरिक को नागवल्ली पत्र रस (पान के पत्ते का रस) में मिलाकर तैयार किया गया है। खराब पित्त के कारण हुई अम्‍लपित्त और अन्‍य रोगों के इलाज के लिए इस औषधि को जाना जाता है।
    • ये हृदय रोग, गैस्ट्रिक अल्‍सर और हाइपरएसिडिटी को नियंत्रित करने में उपयोगी है। हाइपरएसिडिटी पेट में सूजन के सामान्‍य कारणों में से एक है। हाइपरएसिडिटी के उचित इलाज से गेस्‍ट्राइटिस के इलाज एवं इससे सुरक्षा मिल सकती है।
    • ये औषधि गेस्‍ट्राइटिस की स्थिति में गैस्ट्रिक श्‍लेष्‍मा पर छाले होने से रोकती है।
       
  • सूतशेखर रस
    • सूतशेखर रस में शुंथि, दालचीनी, गंधक और तांबे, लोहे (आयरन) एवं शंख की भस्‍म (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) आदि मौजूद है।
    • ये प्रमुख तौर पर बढ़े हुए दोष को साफ करता है और परिसंचरण नाडियों एवं हृदय पर पड़ रहे दबाव को कम करता है।
    • ये बुखार के साथ होने वाली बेहोशी और खराब पित्त के कारण हुए तेज बुखार के इलाज में उपयोगी है। (और पढ़ें - बेहोश होने पर प्राथमिक उपचार)
       
  • शतपत्र्यादि चूर्ण
    • इस मिश्रण में शतपत्री (गुलाब), गुडूची, द्राक्ष (अंगूर) और मुलेठी आदि मौजूद है। (और पढ़ें - गुलाब जल के फायदे)
    • गेस्ट्राइटिस और पेट से संबंधित अन्‍य समस्‍याओं को नियंत्रित करने में ये औषधि उपयोगी है। इसमें शीतल प्रभाव होते हैं जो‍ कि पेट की परत को राहत देते हैं।
    • ये वात और पित्त दोष को साफ करती है।
    • ये औषधि घाव को भरने वाले गुणों के लिए जानी जाती है। ये पेट और ड्यूडेनल अल्‍सर का इलाज कर सकती है।
       
  • कामदुधा रस
    • ये एक हर्बोमिनरल (जड़ी बूटियों और खनिज पदार्थ से बनी) औषधि है जो गुडूची एवं शुद्ध स्वर्ण गैरिक को आमलकी के साथ संसाधित कर तैयार की गई है।
    • गेस्ट्राइटिस और अनेक ब्‍लीडिंग संबंधित विकारों के इलाज में लाभकारी है।
       
  • नारिकेल लवण क्षार
    • ये आयुर्वेद के उत्‍कृष्‍ट मिश्रणों में से एक है जिसमें नारिकेल (नारियल) और सैंधव लवण (काला नमक) मौजूद है। इन दोनों चीज़ों में पित्त को साफ करने वाने गुण मौजूद हैं। गेस्ट्राइटिस को खराब पित्त दोष द्वारा वर्णित किया गया है और नारिकेल लवण क्षार इस समस्‍या को नियंत्रित करने की उत्तम औषधि है।
    • इस मिश्रण में क्षार गुण होते हैं जो कि इसे हाइपरएसिडिटी और पेट में अल्‍सर के इलाज में उपयोगी बनाते हैं। (और पढ़ें - पेट में अल्सर के घरेलू उपाय)
       
  • कपर्दक भस्म
    • कपर्दक भस्म को शुद्ध कपर्दिका (शुद्ध समुद्री शंख), नींबू स्‍वरस (नींबू का जूस) और कुमारी स्‍वरस (एलोवेरा जूस) से तैयार किया गया है।
    • इस आयुर्वेदिक औषधि को शक्तिशाली एंटासिड गुणों के लिए जाना जाता है और ये गेस्‍ट्राइटिस एवं अन्‍य गेस्‍ट्राइटिस विकारों के इलाज में मदद कर सकती है।

व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।

Probiotics Capsules
₹599  ₹770  22% छूट
खरीदें

क्‍या करें

क्‍या न करें

  • अनुचित खाद्य पदार्थ जैसे दूध के साथ मछली, दूध के साथ दही और चाय के साथ लहसुन न खाएं।
  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि भूख, प्‍यास, पेशाब, मल त्‍याग की क्रिया और भावनाओं को दबाए नहीं।
  • मसालेदार खाद्य पदार्थ और चाय, कॉफी एवं शराब का सेवन न करें। (और पढ़ें - शराब पीने के नुकसान)
  • दिन के समय सोने से बचें। (और पढ़ें - दिन में सोने से क्या होता है)

पेट में सूजन के इलाज में आयुर्वेदिक उपचारों के उपयोग को लेकर 41 प्रतिभागियों पर एक तुल्‍नात्‍मक चिकित्‍सीय अध्‍ययन किया गया। इस अध्‍ययन में सभी प्रतिभागियों को दो समूह में बांट दिया गया और एक समूह को 30 दिनों तक दिन में दो बार शतपत्र्यादि चूर्ण की गोली (500 मि.ग्रा की खुराक) दी गई जबकि दूसरे समूह के सभी प्रतिभागियों को पटोलादि योग गोली (500 मि.ग्रा की खुराक) दी गई।

दोनों ही समूह के प्रतिभागियों ने पेट एवं सीने में जलन और खट्टी डकार की समस्‍या से राहत मिलने की बात कही। हालांकि, शतपत्र्यादि चूर्ण की गोली से नींद की गुणवत्ता में सुधार पाया गया और पटोलादि योग गोली से शतपत्र्यादि चूर्ण की गोली को ज्‍यादा असरकारी पाया गया। 

(और पढ़ें - अच्छी गहरी नींद आने के घरेलू उपाय)

आयुर्वेदिक चिकित्‍सक की देखरेख में आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, व्‍यक्‍ति की प्रकृति और रोग के आध्‍धार पर कुछ आयुर्वेदिक औषधियों या जड़ी बूटियों के दुष्‍प्रभाव हो सकते हैं। जैसे कि:

  • गर्भवती महिलाओं, हृदय रोगों और हाइपरटेंशन से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में वमन कर्म का प्रयोग नहीं करना चाहिए। (और पढ़ें - हाई ब्लड प्रेशर में क्या खाएं)
  • कमजोर और वृद्ध व्‍यक्‍ति को विरेचन कर्म से नुकसान हो सकता है। गर्भावस्‍था और माहवारी के दौरान भी विरेचन चिकित्‍सा नहीं लेनी चाहिए। गुदा या मलाशय में चोट लगने, रेक्टल प्रोलेप्स (मलाशय का गुदा से बाहर निकलना), दस्‍त, जठरांत्र मार्ग के निचले हिस्‍से से रक्‍तस्राव (ब्‍लीडिंग) और बस्‍ती कर्म (एनिमा चिकित्‍सा) ले चुके व्‍यक्‍ति को विरेचन की सलाह नहीं दी जाती है। (और पढ़ें - एनिमा लगाने की विधि)
  • भृंगराज का इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए क्‍योंकि इसकी वजह से बहुत ज्‍यादा ठंड लग सकती है। (और पढ़ें - ठण्ड लगने पर उपाय)

गेस्‍ट्राइटिस में पेट की परत पर सूजन होने लगती है। ऐसा किसी संक्रमण या बाहरी पदार्थ के संपर्क में आने के कारण हो सकता है। अगर शुरुआती चरण पर ही इस समस्‍या को नियंत्रित कर लिया जाए तो इसे बढ़कर अल्‍सर का रूप लेने से रोका जा सकता है।

पेट में सूजन के इलाज के लिए आयुर्वेद में ऐसी विभिन्‍न जड़ी बूटियों, औषधियों और पंचकर्म थेरेपी का वर्णन है जो पेट पर शीतल प्रभाव डालते हैं। आयुर्वेदिक इलाज से कई रोगों का कारण बनने वाले असंतुलित दोष को संतुलित करने और शरीर से अमा को बाहर निकालने में मदद मिलती है।

हालांकि, रोग या समस्‍या से जल्‍दी छुटकारा पाने एवं स्‍वस्‍थ होने के लिए उपरोक्‍त उपचार लेने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से सलाह जरूर लेनी चाहिए। 

(और पढ़ें - एसिडिटी का आयुर्वेदिक इलाज)

Dr Bhawna

Dr Bhawna

आयुर्वेद
5 वर्षों का अनुभव

Dr. Padam Dixit

Dr. Padam Dixit

आयुर्वेद
10 वर्षों का अनुभव

Dr Mir Suhail Bashir

Dr Mir Suhail Bashir

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr. Saumya Gupta

Dr. Saumya Gupta

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Central Council for Research in Ayurvedic Sciences. [Internet]. National Institute of Indian Medical Heritage. Handbook of Domestic Medicine and Common Ayurvedic Medicine.
  2. Lakshmi C. Mishra. Scientific basis for ayurvedic medicines. C.R.C Press.
  3. Singh Vijeyta. et al. Efficacy of Virechana Karma and Khanda Pippali Avaleha in the Management of Amlapitta: A Review. Int. J. Res. Ayurveda Pharm. 7(4), July-Aug 2016.
  4. Nilofer Sayed, Vandana Barve. Evaluation of Antiulcer Activity of Laghusoothshekhar (an Ayurvedic Formula) in Pyloric Ligature Induced Gastric Ulcers in Albino Rats . American Journal of Undergraduate Research . Volume 13. Issue 2.
  5. Mukund Sabnis. Viruddha Ahara: A critical view. Ayu. 2012 Jul-Sep; 33(3): 332–336. PMID: 23723637.
  6. Swami Sadashiva Tirtha. The Ayurveda encyclopedia. Sat Yuga Press, 2007. 657 pages.
  7. Nishant Singh. Panchakarma: Cleaning and Rejuvenation Therapy for Curing the Diseases . Journal of Pharmacognosy and Phytochemistry. ISSN 2278- 4136. ZDB-Number: 2668735-5. IC Journal No: 8192.
  8. Subhash Ranade. kayachikitsa. Chaukhamba Sanskrit Pratishthan, 2001.
  9. Gangadhar Gopal Gune. Aushadhi Gun-Dharmashastra. National Library of Ayurved Medicine.
  10. Jitendra Kumar. et al. A comparative clinical study of Shatapatrayadi churna tablet and Patoladi yoga in the management of Amlapitta. Ayu. 2011 Jul-Sep; 32(3): 361–364. PMID: 22529651.
  11. Pranjali Langade. et al. Pharmaceutico Analytical Study of Kamdudha Rasa - An Ayurveda Formulation. Journal of Research in Traditional Medicine. J. res. tradit. med. Volume 3. Issue 3.
  12. Yadav S, Sharma K and Kaur N: Characterisation of Narikela lavana. Int J Pharm Sci Res 2017; 8(5): 2200-04.doi: 10.13040/IJPSR.0975-8232.8(5).2200-04.
  13. Roshi Mahajan. et al. Role of Narikela Lavana in the Management of Amlapitta. International Journal of Research in Ayurveda and Pharmacy 7(3):50-52. DOI: 10.7897/2277-4343.073111.
  14. Sonali Dhamal. et al. Chemical Investigations of Some Commercial Samples of Calcium Based Ayurvedic Drug of Marine Origin: Kapardika Bhasma. Journal of Pharmacy and Biological Sciences (IOSR-JPBS). e-ISSN: 2278-3008, p-ISSN:2319-7676. Volume 6, Issue 4. (May. – Jun. 2013), PP 05-12.
  15. Acharya Vipul Rao. Ayurvedic treatment for common diseases. Publisher Diamond Pocket Books. 152 pages.
ऐप पर पढ़ें