काइल इन यूरिन टेस्ट काइलूरिया की जांच करने के लिए किया जाता है। काइलूरिया एक ऐसा रोग है, जिसमें पेशाब का रंग सफेद (दूध जैसा) हो जाता है। इस रोग को गैलक्टोरिया के नाम से भी जाना जाता है। पेशाब का रंग सफेद यानि दूधिया तब होता है, जब किडनी में लसिका ग्रंथि द्रव का स्राव होने लग जाता है। इस द्रव को काइल (Chyle) कहते हैं।

काइल मुख्य रूप से छोटी आंत में पाचन प्रक्रिया के दौरान बनता है, उसके बाद इन्हें लिम्फेटिक सिस्टम द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इसमें प्रोटीन, वसा और संक्रमण से लड़ने वाली लाल रक्त कोशिकाएं होती है। यह पूरे शरीर में वसा व प्रोटीन को पहुंचाता है। काइल प्रतिरक्षा प्रणाली को ठीक तरह से कार्य करने में भी मदद करता है।

लिम्फेटिक कोशिकाएं पतली रक्त वाहिकाओं का एक समूह है जिनमें लिम्फ (एक रंगहीन द्रव जिसमें सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं) होता है। एक साथ मिलकर ये लिम्फेटिक सिस्टम बनाती है जो कि संचार प्रणाली के साथ कार्य करता है। आमतौर पर लिम्फ नलिकाएं नसों तक लसिका द्रव ले कर जाती हैं जहां ये रक्त में मिलती हैं। हालांकि अगर लिम्फेटिक के बहाव में कोई रुकावट आती है तो काइल किडनी में स्रावित होने लगता है और पेशाब में दिखाई देता है।

काइलूरिया आमतौर पर परजीवी संक्रमण से जुड़ी होती है जो वूचेरिया बैंक्रोफ्टी द्वारा फैलता है। हालांकि यह बिना किसी संक्रमण के कारण भी हो सकता है। काइलूरिया सामान्य तौर पर महिलाओं से ज्यादा पुरुषों में देखा जाता है।

काइल इन यूरिन टेस्ट पेशाब में वसा जैसे ट्राइग्लिसराइड और कोलेस्ट्रॉल के स्तरों का पता लगाता है जो काइलूरिया से संबंधित होते हैं।

  1. काइल इन यूरिन टेस्ट क्यों किया जाता है - Why Chyle in urine test is done in Hindi
  2. काइल इन यूरिन टेस्ट से पहले - Before Chyle in urine test in Hindi
  3. काइल इन यूरिन टेस्ट के दौरान - During Chyle in urine test in Hindi
  4. काइल इन यूरिन टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब है - What does Chyle in urine test result mean in Hindi

काइल इन यूरिन टेस्ट किसलिए किया जाता है?

यदि आपके शरीर में निम्न लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर इस टेस्ट को करने के लिए कह सकते हैं

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टेस्ट से पहले डॉक्टर आपको वसा युक्त आहार खाने के लिए कह सकते हैं। इससे काइल के स्तर बढ़ने में मदद मिलेगी और इससे इसकी पहचान करना आसान हो जाएगा। 

एस्कॉर्बिक एसिड (विटामिन सी) से आपके कोलेस्ट्रॉल व ट्राइग्लिसराइड के स्तर कम दिखाई दे सकते हैं इसीलिए टेस्ट से पहले विटामिन सी न लें।

यदि आप एसिटामिनोफेन, नेसेटिलसिस्टीन (एनएसी) और मेटामिजोल ले रहे हैं तो इनके बारे में डॉक्टर को बताएं। इन दवाओं की वजह से टेस्ट के रिजल्ट गलत दिख सकते हैं।

डॉक्टर आपको यूरिन सैंपल लेने के लिए एक कंटेनर देंगे। वे आपको टेस्ट की प्रक्रिया के बारे में समझा देंगे। योनि या पेनिस से किसी भी तरह सैंपल दूषित न हो, इसके लिए क्लीन-कैच मेथड से सैंपल लिया जाता है। यह निम्न प्रक्रिया द्वारा किया जाता है :

  • अपने हाथ पानी और साबुन से ठीक तरह से धोएं
  • कीटाणुरहित वाइप्स से, महिलाएं योनि के बाहरी भाग और पुरुष पेनिस के सिरे को साफ करें
  • टॉयलेट में पेशाब करना शुरु करें और बीच में रुक जाए
  • इसके बाद कंटेनर में पेशाब करें और कंटेनर को आधा भर लें
  • बाकी पेशाब को टॉयलेट बाउल में खत्म करें और अपने हाथों को अच्छे से धोएं
  • कंटेनर के ढक्कन को कस कर बंद करें
  • सैंपल पर लेबल लगाकर इसे लैब में टेस्टिंग के लिए भेज दें
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सामान्य परिणाम

आमतौर पर, ट्राइग्लिसराइड और कोलेस्ट्रॉल के स्तर यूरिन में <10 mg/dL (milligrams per decilitre) हो तो इसे सामान्य माना जाता है।

असामान्य परिणाम

ट्राइग्लिसराइड के अधिक स्तर का मतलब है कि आपको काइलूरिया है। काइलूरिया से निम्न स्थितियां पैदा हो सकती हैं :

  • परजीवी संक्रमण जैसे :

    • वुचेरिया बैंक्रोफ्टी (90%)
    • मलेरियल पैरासाइट
    • एंकिलोस्टोमायसिस
    • ट्राकिनायसिस
    • टीनिया एकिनोकॉकस
    • टीनिया नाना
  • नॉन-पैरासिटिक स्थितियां जैसे :

    • जन्मजात स्थिति
    • रेट्रोपेरीटोनियल लिम्फेनगेस्टासिया (किडनी के आसपास बने लिम्फेटिक सिस्टम खराब होना)
    • ट्यूमर (लिम्फेनिगोमा/लिम्फेंजिओमाटोसिस/ लिम्फेजिओलिओमायोटोसिस)
    • वक्ष नलिकाओं में अवरोध
    • यूरेथ्रल/वेसिक्ल और ट्रॉमेटिक लिम्फेनगिओयूरिनरी फिस्टुले (अंगों व वाहिकाओं में असामान्य मेल)
    • थोरेसिस डक्ट का संकरा होना
    • अन्य कारण (गर्भावस्था, मधुमेह, फोड़ा)
    • नेफ्रोटिक सिंड्रोम

संदर्भ

  1. Diamond E, Schapira HE. Chyluria--a review of the literature. Urology. 1985;26(5):427–431. PMID: 4060381.
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