कई माता-पिता अपने नन्हे शिशु की सेहत का ख्याल रखते हुए उन्हें बेबी फूड खिलाते हैं। आप भी अपने शिशु के सही विकास के लिए बेबी फूड पर ही भरोसा करते होंगें जबकि आपको बता दें कि बेबी फूड में शुगर का स्तर बहुत ज्यादा होता है, जो कि 36 माह से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है।

अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे बैन करने की इच्छा जाहिर की है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि बाजार में उपलब्ध बेबी फूड का सेवन छोटे बच्चों को कई तरह से प्रभावित कर सकता है जैसे कि इससे शिशु को दांत निकलने में दिक्क्त आ सकती है। इसके अलावा बच्चों को बड़े होकर मीठा ज्यादा खाने की आदत पड़ सकती है, जिस वजह से वह भविष्य में मोटापे और युवावस्था तक आते-आते मोटापे से संबंधित समस्याओं का शिकार हो सकते हैं।

यही नहीं 6 माह के शिशु के लिए तो बाजार के बेबी फूड और भी ज्यादा खतरानाक हैं। डब्ल्यूएचओ ने खासतौर पर मांओं को ये चेतावनी दी है कि छह माह तक शिशु को स्तनपान ही करवाना चाहिए।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन यूरोप के अनुसार बेबी फूड सभी निर्देशों को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं लेकिन इनमें शुगर की मात्रा बहुत ज्यादा होती है और इस मामले में कंपनियां निर्देशों का उल्लंघन कर रही हैं। इन्हें फ्री शुगर कहा जा सकता है जैसे कि फलों के जूस में शुगर होती है लेकिन यदि इसे लगातार खाया जाए तो इससे बच्चों के दांत टूट सकते हैं। इसका असर खाने को लेकर बच्चों की पसंद-नापसंद पर भी पड़ता है। 

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि सभी कमर्शियल बेबी फूड में हर तरह की शर्करा को बैन कर देना चाहिए। किसी भी फूड के कुल वजन के 5 फीसदी से ज्यादा उसमें शुगर की मात्रा नहीं होनी चाहिए, खासकर बच्चों को पसंद आने वाली चीजें जैसे बिस्किट आदि। इनमें शुगर से मिलने वाली कैलोरी 15 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

फलों के रस और जूस, गाय का मीठा दूध, अन्य दूध के विकल्प और मीठे स्नैक्स 36 माह के शिशु के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि बेबी फूड्स में शुगर लेबलिंग में भी सुधार किए जाने की जरूरत है। बाजार में मौजूद कई ऐसे उत्पाद हैं, जिनके नाम से उनकी गुणवत्ता का पता नहीं चल पाता है।

दरअसल, ये उत्पाद बनाने वाली कंपनियां अपने प्रोडक्ट का ऐसा नाम रखती हैं जो अभिभावकों को आकर्षक और बच्चों के लिए स्वास्थ्यवर्धक लगते हैं। लेकिन सच ये है कि नाम के इस खेल में प्रोडक्ट में मौजूद मुख्य इंग्रीडिएंट (सामग्री) का जिक्र ही नहीं किया जाता है। इनका जिक्र इसलिए भी नहीं किया जाता है क्योंकि ये तत्व बच्चों के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं होते हैं। यही वजह है कि डब्ल्यूएचओ ने कई प्रोडक्ट के नाम रखने को लेकर बदलाव लाने की बात कही है।

डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक का कहना है कि "वह बेबी फूड में भारी मात्रा में मौजूद शुगर और उनके लेबलिंग को लेकर काफी चिंतित हैं। उनका कहना है कि बेबी प्रोडक्ट में शुगर का स्तर काफी ज्यादा होता है। उन्होंने कहा कि कई उत्पादों से शुगर के स्तर को कम किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उनकी मार्केटिंग पर भी ध्यान देना चाहिए। कई कंपनियां तो अपने उत्पाद को 4 से 6 माह के शिशु के लिए भी अच्छा बताती हैं जबकि डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन से यह बिल्कुल उलट होते हैं।"

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हालांकि, शिशुओं को मां के दूध का मीठापन अच्छा लगता है लेकिन छह माह के बाद बच्चों में खाने के अलग-अलग स्वाद को विकसित करना जरूरी है। इसलिए यह जरूरी है कि मीठे के अलावा बच्चों के लिए और भी उत्पाद हों जिससे बच्चे अलग-अलग चीज़ों को खाने में भी रुचि लें।

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डब्ल्यूएचओ के मुताबिक वे शुगर से भरपूर बेबी फूड और इसकी लेबलिंग में सुधार को लेकर पहले से ही कदम उठा चुके हैं और उम्मीद करते हैं कि सभी देशों की सरकार भी उन्हें इस संबंध में मदद करेंगी। 2016 में ही नई गाइडलाइंस आने के बावजूद यूरोप के चार देश ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, हंगरी और इज़राइल बेबी फूड्स का गलत तरीके से प्रमोशन कर रहे हैं।

डब्ल्यूएचओ के निर्देश के विरुद्ध इन चारों देशों में 28 से 60 फीसदी तक बेबी फूड्स को 6 माह तक के बच्चों के लिए सही ठहराया गया है जबकि डब्ल्यूएचओ की ओर से छह माह तक के बच्चों को पूरी तरह से स्तनपान पर निर्भर रहने की सलाह दी जाती है।

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