जब आपके श्वसन तंत्र में संक्रमण या फेफड़ा संबंधी कोई विकार होता है, तो फेफड़े एक गाढ़ा द्रव बनाते हैं, जिसे बलगम या स्प्यूटम (Sputum) के नाम से जाना जाता है। बलगम सांस लेने में कठिनाई और खांसी पैदा करता है तथा जीवाणुओं को संरक्षण देता है। अगर आपमें ऐसे किसी प्रकार के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो आपको डॉक्टर बलगम की जांच करवाने का सुझाव दे सकते हैं।

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  1. बलगम की जांच क्या होता है? - What is Sputum Test in Hindi?
  2. बलगम की जांच क्यों किया जाता है - What is the purpose of Sputum Test in Hindi
  3. बलगम की जांच से पहले - Before Sputum Test in Hindi
  4. बलगम की जांच के दौरान - During Sputum Test in Hindi
  5. बलगम की जांच के बाद - After Sputum Test in Hindi
  6. बलगम की जांच के क्या जोखिम होते हैं - What are the risks of Sputum Test in Hindi
  7. बलगम की जांच के परिणाम का क्या मतलब होता है - What do the results of Sputum Test mean in Hindi
  8. बलगम की जांच कब करवानी चाहिए - When to get tested with Sputum Test in Hindi

बलगम की जांच या रुटीन स्प्यूटम कल्चर क्या होता है?

बलगम टेस्ट तेज और अन्य टेस्टों की अपेक्षाकृत दर्दरहित होता है, जो की बैक्टीरिया और फंगी पर अध्ययन करने में मदद करता है। इस टेस्ट की मदद से डॉक्टर बीमारी के कारण का पता लगा लेते हैं। अक्सर बलगम टेस्ट की प्रक्रिया का सबसे मुश्किल हिस्सा टेस्ट के लिए पर्याप्त मात्रा में बलगम निकालना होता है।

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बलगम के सेंपल को एक ऐसे पदार्थ में मिलाया जाता है, जो रोगाणुओं के विकास को बढ़ाता है। अगर कोई रोगाणु विकसित ना मिले तो टेस्ट को नेगेटिव माना जाता है, अगर संक्रमण पैदा करने वाले रोगाणु विकसित हो जाते हैं, तो टेस्ट को पॉजिटिव मान लिया जाता है। रोगाणुओं के प्रकार की पहचान माइक्रोस्कोप या केमिकल टेस्ट के द्वारा की जाती है। कई बार संक्रमण के लिए बेहतर उपचार या दवा का चयन करने के लिए कुछ अन्य टेस्ट भी किए जा सकते हैं, इन्हें संवेदनशील टेस्ट माना जाता है।

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बलगम की जांच किसलिए की जाती है?

निम्न के लिए बलगम की जांच की जा सकती है:

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उन बैक्टीरिया और फंगी का पता लगाने के लिए जो फेफड़ों या फेफड़ों तक जाने वाली नलिकाओं में संक्रमण पैदा कर रहे हैं, इसके उदाहरणों में निमोनियाटीबी आदि जैसे रोग शामिल हैं। फेफड़ों में संक्रमण के लक्षणों में, सांस लेने के दौरान दर्द, सांस लेने में कठिनाई या खांसी जिसमें खून या हरे-भूरे रंग का बलगम आता हो आदि शामिल है।

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इस संक्रमण का उपचार करने के लिए सबसे बेहतर एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना है। अगर एंटीबायोटिक दी गई है, तो उसके उपचार की प्रभावशीलता पर नजर रखने के लिए बलगम की जांच की जा सकती है।

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बलगम की जांच करने से पहले क्या किया जाता है?

टेस्ट होने से पहले वाली रात में खूब पानी व अन्य तरल पदार्थों का सेवन करने से सुबह बलगम निकालने में आसानी होती है। जब तक आप बलगम का सेंपल नहीं दे देते, तब तक किसी प्रकार के माउथवॉश का प्रयोग ना करें, क्योंकि कई प्रकार के माउथवॉश बैक्टीरिया को मार देते हैं, जिससे रिजल्ट पर असर पड़ता है।

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अगर सेंपल निकालने के लिए ब्रॉंकोस्कोपी का इस्तेमाल किया जाना है, तो डॉक्टर आपको बताएंगे की कितनी देर पहले से खाने व पीने से परहेज करना है। खाने-पीने के परहेज के बारे में डॉक्टरों द्वारा बताई गई बातों को ध्यान से सुनें और समझें तथा उनका पालन करें। क्योंकि डॉक्टर की सलाह का ठीक से पालन ना किए जाने पर सेंपल ब्रॉंकोस्कोपी प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है। अगर टेस्ट वाले दिन डॉक्टर आपको दवाएं आदि लेने को कहें, तो दवाएं लेने के दौरान कम से कम पानी पीने की कोशिश करें।

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अगर आपने हाल ही में किसी एंटीबायोटिक या अन्य किसी दवा का सेवन किया है, तो इस बारे में डॉक्टर को बता दें।

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बलगम की जांच के दौरान क्या किया जाता है?

टेस्ट के दौरान आपको खांसने की जरूरत पड़ती है। कई बार डॉक्टर छाती को धीरे-धीरे थपथपाते हैं, जिससे मोटा गाढ़ा बलगम थोड़ा ढीला हो जाता है। बलगम को निकालने के लिए आपको भाप में सांस लेने के लिए भी कहा जा सकता है। गहराई से बलगम निकालने के लिए खांसते समय आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है।

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ज्यादातर मामलों में, बलगम के सेंपल को सुबह-सुबह कुछ भी खाने या पीने से पहले ले लिया जाता है। कुछ मामलों में सुबह-सुबह या उससे ज्यादा बार सेंपल देना पड़ सकता है, यह अक्सर टीबी की स्थिति में किया जाता है।

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कुछ लोगों में से बलगम का सेंपल निकालने के लिए ब्रोंकोस्कोपी का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक पतली तथा लचीली ट्यूब होती है, जिसको मुंह या नाक के अंदर से होते हुए फेफड़ों तक पहुंचाया जाता है। दवाओं के द्वारा गले और नाक को सुन्न कर दिया जाता है, जिसके बाद ब्रोंकोस्कोप से होने वाला दर्द महसूस नहीं होता। कई बार सेडेटिव दवाएं भी दी जाती हैं, जिससे टेस्ट के दौरान आप सोते रहें।

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एक नरम व लचीली ट्यूब जिसको नासोट्रेचियल कैथेटर (Nasotracheal catheter) कहा जाता है, इसे नाक के माध्यम से गले के अंदर भेजा जाता है। उसके बाद 15 सेकेंड के लिए चूषण प्रक्रिया चलाई जाती है। इस विधि का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता है, जो बहुत अधिक बीमार या बेहोश हैं।

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बलगम की जांच के बाद क्या किया जाता है?

बलगम सेंपल निकालने के बाद उसे एक कंटेनर में डाला जाता है, उसके साथ उसमें ग्रोथ माध्यम (Growth medium) या कल्चर माध्यम (Culture medium) पदार्थ भी डाला जाता है। ये पदार्थ बैक्टीरिया या फंगी को विकसित होने में मदद करते हैं। बैक्टीरिया आम तौर पर विकसित होने में 2 या 3 दिन का समय लेते हैं जबकि फंगस को विकसित होने में 1 सप्ताह या उससे अधिक समय लगता है। संवेदनशील टेस्ट में अक्सर 1 से 2 या उससे अधिक दिन का समय लग जाता है। टीबी का कारण बनने वाले जीव विकसित होने में 6 सप्ताह या उससे अधिक समय लेते हैं। विकसित हुऐ बैक्टीरिया या फंगस का पता माइक्रोस्कॉप या केमिकल टेस्ट द्वारा लगाया जाता है।

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बलगम की जांच के क्या जोखिम हो सकते हैं?

सैम्पल देने के बाद आपको कुछ देर तक छाती में तकलीफ महसूस हो सकती है।

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अगर बलगम का सैम्पल ब्रोंकोस्कोपी या नासोट्रेचिल कैथेटर द्वारा निकाला गया है, तो आपके कुछ देर तक गले में दर्द हो सकता है।

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अगर आपको गंभीर अस्थमा या ब्रोंकाइटिस है, नासोट्रेचियल कैथेटर की मदद से सैम्पल लेते समय आपको सांस लेने में कठिनाई महसूस हो सकती है।

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बलगम टेस्ट के रिजल्ट का क्या मतलब होता है?

सामान्य बलगम सैम्पल में रोग का कारण बनने वाले रोगाणु नहीं होते।

टेस्ट का रिजल्ट आने में 1 दिन से कुछ सप्ताह तक का समय लग सकता है। आपका रिजल्ट आने में कितना समय लगता है, यह आपके संक्रमण के प्रकार पर निर्भर करता है। कुछ प्रकार के जीवाणु सामान्य कल्चर में विकसित नहीं होते, इन्हें विकसित होने के लिए एक विशेष प्रकार के ग्रोथ माध्यम की जरूरत पड़ती है, जिससे वे बलगम कल्चर में मिल पाते हैं।

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श्वसन में बैक्टीरियल संक्रमण होने पर बलगम गाढ़ा हो जाता है, जो धुंधले पीले, हरे, और कुछ दुर्लभ मामलों में खून मिला हुआ सा दिखाई देता है। जिसमें से एक अप्रिय गंध भी आ सकती है।

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अगर बलगम का सेम्पल असामान्य मिले तो रिजल्ट को पॉजीटिव कहा जाता है। वायरस, बैक्टीरिया, फंगस आदि की पहचान करने से निम्न समस्याओं के कारणों की जांच की जा सकती है।

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बलगम की जांच कब करवानी चाहिए?
जब डॉक्टरों को यह संदेह होता है कि मरीज के फेफड़ों या नलिकाओं में बैक्टीरियल संक्रमण है, जैसे बैक्टीरियल निमोनिया, इसके कारण छाती के एक्स-रे के दौरान फेफड़ों में बदलाव दिखाई देता है। इसके लक्षण निम्न हो सकते हैं:

कई बार बलगम कल्चर, संक्रमण के उपचार के बाद भी किया जाता है, जिससे उपचार की प्रभावशीलता को देखा जाता है।

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