आयुर्वेद में हर्पीस को विसर्प या परिसर्प कहा जाता है। ये न्‍यूक्‍लियर इंक्‍ल्‍यूशन टाइप ए (एनआईटीए) के कारण होता है जिसमें हर्पीस जोस्‍टर वायरस, हर्पीस सिंप्‍लेक्‍स वायरस-1 और हर्पीस सिंप्‍लेक्‍स वायरस-2 शामिल है।

इसमें त्‍वचा पर पानी भरे हुए छोटे-छोटे दाने हो जाते हैं जिनमें जलन, दर्द, खुजली, त्‍वचा का पिलपिलापन, त्‍वचा पर बालों का आना, ऊर्जा में कमी और कमजोरी की समस्‍या होती है। हर्पीस में दाने पर गहरे गुलाबी रंग के चकत्ते पड़ जाते हैं।

हालांकि, हर्पीस के फोड़े-फुंसी सामान्‍य ही लगते हैं लेकिन इनमें दर्द और जलन का अहसास बहुत ज्‍यादा होता है। हर्पीस की समस्‍या का तुरंत इलाज करने की जरूरत होती है।

हर्पीस सिंप्‍लेक्‍स एक अन्‍य प्रकार का हर्पीस संक्रमण है। ये हर्पीस सिंप्‍लेक्‍स वायरस (एचएसवी) के कारण होता है। एचएसवी-1 प्रमुख तौर पर मुंह (मुंह, दांत, मसूड़े, तालू, जीभ के नीचे और गाल) के संपर्क में आने से फैलता है लेकिन इसके कारण जेनाइटल संक्रमण भी हो सकता है। ओरल हर्पीस संक्रमण सीधा संपर्क में आने जैसे कि किसी अन्‍य व्‍यक्‍ति के दांतों का ब्रश इस्‍तेमाल करने और चुंबन की वजह से फैलता है। एचएसवी-2 जेनाइटल हर्पीस है जो कि यौन संबंध बनाने से फैलता है।

(और पढ़ें - ब्रश करने का तरीका)

आयुर्वेदिक ग्रंथों में असंतुलित हुए दोष के आधार पर विसर्प रोग को नियंत्रित करने के लिए विभिन्‍न उपचारों, जड़ी बूटियों और औषधियों का उल्‍लेख किया गया है। हर्पीस रोग से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति की संपूर्ण एवं गहन जांच के बाद आयुर्वेदिक चिकित्‍सक लंघन (व्रत), विरेचन (मल निष्‍कासन की विधि), रक्‍तमोक्षण (रक्‍त निकालने की विधि) और लेप (शरीर के प्रभावित हिस्‍से पर औषधि लगाना) की सलाह दे सकते हैं।

विसर्प के इलाज में यष्टिमधु (मुलेठी), अर्जुन, घृत (क्‍लैरिफाइड मक्‍खन – वसायुक्त मक्खन से दूध के ठोस पदार्थ और पानी को निकालने के लिए वसा को हटाकर बना मक्खन), हरीतकी (हरड़), अमृतादि क्‍वाथ और पंचतिक्‍त घृत गुग्‍गुल का इस्‍तेमाल किया जाता है।

(और पढ़ें - घी या मक्खन)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से हर्पीस - Ayurveda ke anusar Herpes
  2. हर्पीस का आयुर्वेदिक इलाज - Herpes ka ayurvedic ilaj
  3. हर्पीस की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Herpes ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार हर्पीस होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Herpes me kya kare kya na kare
  5. हर्पीस के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Herpes ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. हर्पीस की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Herpes ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. हर्पीस की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Herpes ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
हर्पीस की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

हर्पीस रोग के बढ़ने के लिए सात धातु और त्रिदोष जिम्मेदार होते हैं। असंतुलित हुए दोष के आधार पर विसर्प को इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है:

  • वातज:
    ये वात दोष के असुंतलन के कारण होता है और इसमें चक्कर, आंखों में जलन, प्‍यास, कंपकंपी, चुभने वाला दर्द, असहजता, खांसी, दर्द, भूख में कमी, अपच, आंखों में धुंधलापन एवं पानी आना शामिल है। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने के उपाय)
     
  • पित्तज:
    ये पित्त दोष के असंतु‍लन के कारण होता है और इसमें बुखार एवं लाल रंग के फोड़े-फुंसी तेजी से फैलने लगते हैं। (और पढ़ें - पित्त दोष के असंतु‍लन के कारण)
     
  • कफज:
    ये कफ दोष के असंतुलन के कारण होता है एवं इसके लक्षणों में बुखार, शरीर में अकड़न, सुन्‍नपन और भारीपन शामिल है।
     
  • त्रिदोषज:
    इस प्रकार का हर्पीस त्रिदोष के असंतुलित होने के कारण होता है। ये बहुत तेजी से फैलता है और इसे ठीक नहीं किया जा सकता है। हालांकि, उचित चिकित्सीय उपायों द्वारा इसे प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।
     
  • अग्‍नि विसर्प:
    वात और पित्त के एक साथ बढ़ने के कारण अग्नि विसर्प होता है। इसके लक्षणों में बुखार, सिर चकराना, उल्‍टी, बहुत प्‍यास लगना, पाचन शक्ति में कमी और भूख न लगना शामिल है। (और पढ़ें - पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं)
     
  • कर्दम विसर्प: 
    कर्दम विसर्प धीरे-धीरे फैलता है और ये पेट में जाकर अपनी जगह बना लेता है जिसके कारण प्रभावित हिस्‍सों में लाल, पीले या हल्‍के पीले रंग के फोड़े-फुंसी होने लगते हैं। 
     
  • ग्रंथि विसर्प: 
    ये वात और कफ के असंतुलन के कारण होता है एवं इसकी वजह से ग्रंथियों का आकार बढ़ने लगता है जिसमें पीप आने लगती है। इस स्थिति को ठीक करना काफी मुश्किल होता है।

(और पढ़ें - त्रिदोष किसे कहते है)

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  • लंघन
    • लंघन एक आयुर्वेदिक प्रक्रिया है जिसमें व्‍यक्‍ति को निम्‍न दो तरीकों से व्रत करवाया जाता है:
      • बिलकुल भोजन न करना।
      • दीपन (भूख बढ़ाने वाली) औषधियों के साथ कम या हल्‍का भोजन करना।
    • व्‍यक्‍ति की प्रकृति के आधार पर ही उचित लंघन प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। भूख लगने तक हर्पीस से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को व्रत करवाया जाता है। इसके बाद हल्‍का और आसानी से पचने वाला खाना एवं अदरक या पिप्‍पली का उबला पानी दिया जाता है।
    • इस प्रक्रिया द्वारा अधिकतर बीमारियों की जड़ अमा और असंतुलित हुए दोषों का इलाज किया जाता है। इसलिए लंघन चिकित्‍सा हर्पीस के कारण के साथ-साथ इसके लक्षण जैसे कि बुखार का इलाज भी करती है। ये शरीर में हल्‍कापन लाती है। ये रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी उत्तेजित करती है। (और पढ़ें - रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए क्या करें)
       
  • विरेचन
    • इसमें विभिन्‍न जड़ी बूटियों और इसके मिश्रण के इस्‍तेमाल से विरेचन (पेट साफ करना) किया जाता है। इसमें सामान्‍य तौर पर सेन्‍ना, एलोवेरा और रूबर्ब जैसी जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • विसर्प से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में विरेचन असंतुलित पित्त पर कार्य करता है और रक्‍त की गुणवत्ता में सुधार लाता है। इसके अलावा ये वात और कफ पर भी कार्य करता है एवं शरीर से अमा को बाहर निकालता है।
    • विसर्प की स्थिति में विरेचन के लिए आरग्‍वधादि कषाय का इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • रक्‍तमोक्षण
    • इस क्रिया में शरीर से विषाक्‍त रक्‍त को बाहर निकाला जाता है। इस वजह से रक्‍त के खराब होने के कारण हुए विसर्प रोग में ये चिकित्‍सा प्रभावी है।
    • त्‍वचा रोग जैसे कि हर्पीस प्रमुख तौर पर पित्त दोष के असंतुलन के कारण होता है। रक्‍तमोक्षण असंतुलित हुए पित्त को साफ करने में मदद करता है और शरीर में असंतुलित दोष को ठीक करता है। इस तरह रक्‍ततोक्षण चिकित्‍सा विसर्प और अन्‍य त्‍वचा रोगों के इलाज में मददगार है।
       
  • लेप
    • इस प्रक्रिया में जड़ी बूटियों और उनके मिश्रण से बने गाढ़े पेस्‍ट को प्रभावित हिस्‍से पर लगाया जाता है। जिस दोष के असंतुलन के कारण रोग हुआ है एवं व्‍यक्‍ति के प्रमुख दोष की प्रकृति के आधार पर लेप के लिए जड़ी बूटियां चुनी जाती हैं। इसके बाद पेस्‍ट को प्र‍भावित हिस्‍से पर बालों से विपरीत दिशा की ओर लगाया जाता है।
    • आयुर्वेद में विसर्प के निदान के लिए विभिन्‍न लेपों का उल्‍लेख किया गया है जैसे कि दशांग (दस प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से बना), महातिक्‍त घृत, शतधौत घृत, जंगली चैरी, लाल चंदन, खस, मंजिष्‍ठा और नीले कमल के फूल की पत्ती को पानी में मिलाकर तैयार मिश्रण, घृत में मिलाकर गेरू का लेप, कुश्ता और वंसा की जड़ का मिश्रण, शतपुष्‍प का फल और सहचर आदि।

(और पढ़ें - जननांग दाद के घरेलू उपचार)

हर्पीस के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • यष्टिमधु
    • इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट एवं प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करने वाले गुण मौजूद हैं।
    • इस जड़ी बूटी में रसायनिक घटक ग्लिकरिजिन मौजूद है। इसे वैज्ञानिक रूप से डीएनए और आरएनए वायरस जैसे कि एचजेडवी, एचएसवी-1 और एचएसवी-2 पर असरकारी पाया गया है।
    • 6 सप्‍ताह या इससे अधिक समय तक चिकित्‍सा के तौर पर सिर्फ यष्टिमधु लेने पर इसके हानिकारक प्रभाव के रूप में शरीर में सोडियम और पानी की मात्रा बढ़ने की समस्‍या हो सकती है। हालांकि, दूध के साथ यष्टिमधु लेने पर इस तरह के हानिकारक प्रभावों से बचा जा सकता है।
       
  • अर्जुन
    • अर्जुन पाचन तंत्र, प्रजनन और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है एवं इसमें ऊर्जादायक, संकुचक (ऊतकों को संकुचित करने वाले), ब्‍लीडिंग को रोकने वाले और हृदय-उत्तेजक गुण मौजूद हैं। हृदय संबंधित समस्‍याओं से राहत दिलाने में अर्जुन खाने वाली सर्वोत्तम जड़ी बूटियों में से एक है।
    • अर्जुन में मौजूद टैनिन घटक कैसुआरिनिन का हर्पीस पर वायरसरोधी प्रभाव सिद्ध हो चुका है। एक्‍ने और कई त्‍वचा विकारों को नियंत्रित करने के लिए अर्जुन को लगाया जाता है। एचएसवी-2 पर भी ये असरकारी है।
    • पाउडर या काढ़े के रूप में इसे ले सकते हैं।
       
  • घृत
    • घृत में त्‍वचा को मुलायम, ठंडक, ऊर्जा, अम्‍लरोधी और पोषक गुण मौजूद हैं। ये पाचन अग्नि को संतुलित करता है। इसे पित्त दोष को संतुलित करने की उत्तम जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। वात रोगों को नियंत्रित करने के लिए भी इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - त्वचा को मुलायम कैसे रखें)
    • घृत पाचन, बुद्धि, याददाश्‍त को बढ़ाने में भी मदद करता है एवं विभिन्‍न लेपों को तैयार करने के लिए घृत का इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - याददाश्त बढ़ाने के योग)
    • हर उम्र के व्‍यक्‍ति के लिए घृत का इस्‍तेमाल सुरक्षित है। हर्पीस जोस्‍टर, उन्‍माद (पागलपन) और बुखार के इलाज में घृत प्रभावी है।
       
  • हरीतकी
    • हरीतकी पाचन, श्‍वसन, तंत्रिका, उत्‍सर्जन और स्‍त्री प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें ऊर्जादायक, संकुचक, कफ निस्‍सारक (बलगम निकालने वाले), जीवाणुरोधी, कृमिनाशक और कार्डियो के लिए शक्‍तिवर्द्धक गुण मौजूद हैं।
    • हरीतकी में एंटीऑक्‍सीडेंट्स की श्रृंख्‍ला मौजूद है जोकि शरीर के ऊतकों का जीवनकाल बढ़ाते हैं। ये जड़ी बूटी एचएसवी के साथ-साथ एचआईवी वायरस पर भी असरकारी है। (और पढ़ें - एचआईवी एड्स का आयुर्वेदिक इलाज)
    • हरीतकी का इस्‍तेमाल पाउडर, पेस्‍ट, काढ़े और कुल्‍ले के रूप में कर सकते हैं।

हर्पीस की आयुर्वेदिक औषधियां

  • अमृतादि क्‍वाथ
    • इस मिश्रण में प्रमुख सामग्री अमृता (गिलोय) है। अमृता अग्निमांद्य (कमजोर पाचन अग्‍नि) के इलाज में मदद करती है। ये पाचन अग्‍नि के प्रवाह को बढ़ाती है जिससे पाचन में सुधार और भूख बढ़ती है।
    • इसके अलावा अमृतादि क्‍वाथ में मारीच (काली मिर्च), पिप्‍पली, शुंथि (सूखी अदरक), नागकेसर, नागरमोथा (मुस्‍ता) और कटुकी (कुटकी) मौजूद है।
    • अमृतादि क्‍वाथ विभिन्‍न वात रोगों जैसे कि पुराने रूमेटाइड आर्थराइटिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में उपयोगी है। ये कई त्‍वचा रोगों जैसे कि हर्पीस जोस्‍टर के इलाज में मदद करता है।
  • पंचतिक्‍त घृत गुग्‍गुल
    • इस मिश्रण को नीम की छाल, गुडुची,अडूसा, घृत, मोकोय, पिप्‍पली, शुंथि, हरीद्रा, कुश्ता, मारीच, मंजिष्‍ठा, जीरा और कई अन्‍य सामग्रियों से तैयार किया गया है।
    • ये रक्‍त को साफ और त्‍वचा की सूजन को कम करता है। इस तरह ये तीव्र और पुराने त्‍वचा विकारों जैसे कि विसर्प में उपयोगी है। इसके अलावा ये विसर्प के सामान्‍य लक्षण बुखार को नियंत्रित करने में भी प्रभावी है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

(और पढ़ें - त्वचा रोगों का उपचार)

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विसर्प से ग्रस्‍त 30 लोगों पर दो अलग-अलग मिश्रणों के साथ विरेचन कर्म के प्रभाव की जांच के लिए चिकित्‍सकीय अध्‍ययन किया गया था। प्रतिभागियों को दो समूह में बांटा गया।

पहले समूह में विरेचक के लिए त्रायमाण कषाय दिया गया जबकि दूसरे समूह के लोगों को आरग्‍वदाधि कषाय दिया गया। त्रायमाण कषाय और आरग्‍वदाधि कषाय दोनों ही रक्‍त धातु को साफ एवं विरेचन के द्वारा दोष को संतुलित करते हैं। हालांकि, विसर्प के इलाज में त्रायमाण कषाय के मुकाबले आरग्‍वदाधि कषाय को अधिक प्रभावी पाया गया।

हर्पीस सिम्पलेक्स वायरस से ग्रस्‍त 101 प्रतिभागियों पर विभिनन जड़ी बूटियों से युक्‍त आयुर्वेदिक मिश्रणों के प्रभाव की जांच के लिए एक अन्‍य चिकित्‍सकीय अध्‍ययन किया गया था। 101 में से 78 प्रतिभागियों को जेनाइटल एचएसवी, 9 ओरल एचएसवी और 13 प्रतिभागी दोनों तरह के एचएसवी से प्रभावित थे।

प्रतिभागियों को दिए गए आयुर्वेदिक मिश्रण में बसंत, अश्‍वगंधा की जड़, भूमि आमलकी, चिरबिल्‍व (चिरोल), खदीरा (काला कत्‍था), खस (सुगंधित घास), लवांग (लौंग), हरीतकी, नीम, यष्टिमधु, नीर ब्राह्मी और कालमेघ (हरी चिरायता) मौजूद थी।

अध्‍ययन में शामिल 76 प्रतिशत प्रतिभागियों को नियमित मिश्रण के सेवन से एचएसवी के अनेक लक्षणों से राहत मिली। इन जड़ी बूटियों को ओरल और जेनाइटल हर्पीस दोनों में ही असरकारी पाया गया। 

(और पढ़ें - एक्जिमा की आयुर्वेदिक दवा)

व्यक्ति की प्रकृति एवं प्रभावित दोष जैसे कारकों के आधार पर आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां, दवाएं और उपचार - एक संपूर्ण चिकित्सा के रूप में लोकप्रिय हैं लेकिन इनके कुछ हानिकारक प्रभाव भी हो सकते हैं। इसलिए इनके इस्‍तेमाल के दौरान सावधानी बरतनी जरूरी है। विसर्प में निम्‍न सावधानियां बरतनी चाहिए :

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विसर्प सूजन से संबंधित रोग है जोकि हर्पीस वायरस संक्रमण के कारण होता है। हर्पीस की बीमारी कितनी गंभीर है ये इसके कारक वायरस, असंतुलित हुए दोष और धातु पर निर्भर करती है।

आयुर्वेदिक उपचार जैसे कि लेप, विरेचन और रक्‍तमोक्षण के साथ विभिन्‍न जड़ी बूटियों और औषधियों से अमा को शरीर से बाहर निकालने एवं खराब हुए दोष को संतुलित करने में मदद मिलती है। इस तरह आयुर्वेदिक उपचार द्वारा बीमारी के लक्षणों से राहत एवं जीवन स्‍तर में सुधार लाया जाता है। 

(और पढ़ें - स्किन इन्फेक्शन के उपाय)

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संदर्भ

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