पिट्यूटरी ग्रंथि एंडोक्राइन ग्‍लैंड की एक छोटी-सी ग्रंथि है जो कि नाक के पीछे मस्तिष्‍क के बीच में स्थित होती है। ये शरीर में विकास और मेटाबोलिज्‍म को नियंत्रित करने के लिए हार्मोन बनाती है। कैंसर या ट्यूमर की स्थिति में इस ग्रंथि को निकालना काफी बड़ा कदम माना जाता है। अगर दवा या किसी अन्‍य उपचार से कैंसर या ट्यूमर ठीक न हो पाए तो इस स्थिति में पिट्यूटरी ग्रंथि को निकाला जाता है। ऐसा खासतौर पर क्रेनिओफेरिंजिओमा ट्यूमर की स्थिति में होता है। पिट्यूटरी ग्रंथि को निकालने की सर्जरी को हाइपोफिसेक्‍टोमी कहा जाता है। इसमें ट्यूमर को निकाल कर आंशिक रूप से ग्रंथि को बनाए रखना होता है।

पिट्यूटरी नेटवर्क एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार विश्‍व स्‍तर पर हर पांच में से एक व्‍यक्‍ति पिट्यूटरी ट्यूमर से ग्रस्‍त होता है। इससे पहले डॉ. आर.टी कोस्‍टेलो द्वारा सन् 1936 में किए गए अध्‍ययन में शामिल सभी प्रतिभागियों में से 22.4 फीसदी लोगों में पिट्यूटी ट्यूमर पाया गया था। तब से लेकर अब तक इसके आंकड़ों में कोई ज्‍यादा फर्क नहीं आया है।

पिट्यूटरी ट्यूमर का सामान्‍य उपचार सर्जरी ही है। जिन लोगों की हाइपोफिसेक्‍टोमी सर्जरी फेल हो जाती है या जो इस सर्जरी के लिए फिट नहीं होते हैं उन्‍हें रेडियोथेरेपी दी जाती है।

  1. पिट्यूटरी ग्रंथि निकालने की सर्जरी क्या है - Hypophysectomy kya hai
  2. हाइपोफिसेक्टोमी सर्जरी क्यों की जाती है - Hypophysectomy kab ki jati hai
  3. पिट्यूटरी ग्रंथि निकालने के ऑपरेशन से पहले की तैयारी - Hypophysectomy se pehle ki taiyari
  4. पिट्यूटरी ग्रंथि निकालने की सर्जरी कैसे होती है - Hypophysectomy kaise hoti hai
  5. हाइपोफिसेक्टोमी सर्जरी के बाद देखभाल और सावधानियां - Hypophysectomy hone ke baad dekhbhal aur savdhaniya
  6. पिट्यूटरी ग्रंथि निकालने के ऑपरेशन की जटिलताएं - Hypophysectomy me jatiltaye
पिट्यूटरी ग्रंथि निकालने की सर्जरी के डॉक्टर

पिट्यूटरी ग्रंथि को हाइपोफिसिस भी कहा जाता है। ये ग्रंथि शरीर की अन्‍य महत्‍वपूर्ण ग्रंथियों जैसे कि एड्रेनल और थायराइड ग्रंथियों में हार्मोनों के उत्‍पादन को कंट्रोल करती है। जब इस ग्रंथि में ट्यूमर फैल जाए और दवा या अन्‍य थेरेपी से भी ये ठीक न हो पाए तो इस स्थिति में हाइपोफिसेक्‍टोमी सर्जरी की जाती है।

हाइपोफिसेक्‍टोमी सर्जरी के निम्‍न प्रकार हैं:

  • ट्रांसफेनोइडल हाइपोफिसेक्‍टोमी:
    इसमें नाक की स्‍फेनोइड साइनस (नाक के पीछे और आंखों के बीच की गुहा) के जरिए पिट्यूटरी ग्रंथि को निकाला जाता है। ये सर्जरी माइक्रोस्‍कोप या एंडोस्‍कोपिक कैमरे से होती है।
     
  • ओपन क्रेनिएटोमी:
    इसमें खोपड़ी में एक छोटा सा कट लगाकर मस्तिष्‍क के अंदर से पिट्यूटरी ग्रंथि को हल्‍का–सा ऊपर उठाकर निकाल लिया जाता है।
     
  • स्टीरियोटैक्‍टिक रेडियोसर्जरी: छोटा-सा कट लगाकर खोपड़ी में सर्जिकल हैल्‍मेट पर उपकरणों की मदद से पिट्यूटरी ग्रंथि और आसपास के ट्यूमर या ऊतकों को खत्‍म किया जाता है। इसमें आसपास के स्‍वस्‍थ ऊतकों को बचाने के लिए रेडिएशन का इस्‍तेमाल किया जाता है जो केवल ट्यूमर वाले ऊतकों पर ही काम करती है। ये प्रक्रिया प्रमुख तौर पर छोटे ट्यूमर पर इस्‍तेमाल होती है।

हाइपोफिसेक्‍टोमी सर्जरी करने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि:

  • पिट्यूटरी ग्रंथि के आसपास ट्यूमर को निकालने के लिए
  • इस ग्रंथि के आसपास ऊतकों से बने ट्यूमर यानी क्रैनिओफैरिंजिओमा को हटाने के लिए
  • कुशिंग सिंड्रोम के इलाज (जब शरीर बहुत ज्‍यादा कोर्टिसोल नामक हार्मोन के संपर्क में आने लगे)
  • पिट्यूटरी ग्रंथि के आसपास के अतिरिक्‍त ऊतकों या मास को हटाकर आंखों की रोशनी में सुधार लाने के लिए
  • पूरी ग्रंथि निकलने की बजाय केवल ट्यूमर वाला हिस्सा हटाया जा सकता है
  • हाइपोफिसेक्‍टोमी सर्जरी करने से पहले मरीज को पूरी तरह से रिलैक्‍स होना चाहिए। उसे सर्जरी के बारे में पता होना चाहिए।
  • सर्जरी से पहले एमआरआई स्‍कैन करवाया जाता है और न्‍यूरोसर्जन मरीज को देखते हैं कि वो हाइपोफिसेक्‍टोमी सर्जरी के लिए ठीक है या नहीं।
  • आपरेशन से एक दिन पहले मरीज को अस्‍पताल में भर्ती किया जाता है और उसके ब्‍लड टेस्‍ट, चेस्‍ट एक्‍स–रे या इलेक्‍ट्रोकार्डियोग्राम किया जाता है जिससे पता चलता है कि मरीज एनेस्‍थीसिया के लिए फिट है या नहीं। माथे पर बटनों से चार से पांच स्टिक जोड़ी जाती हैं और एक विशेष एमआरआई स्‍कैन के लिए निशान बनाए जाते हैं। ये बटन और स्‍कैन से न्‍यूरोसर्जन को पिट्यूटरी ट्यूमर को ठीक तरह से निकालने में मदद मिलती है।
  • सर्जरी से एक रात पहले मरीज को कुछ भी न खाने और पीने के लिए कहा जाता है।
  • अगर नाक के जरिए हाइपोफिसेक्‍टोमी ऑपरेशन होना है तो मरीज को मुंह से सांस लेने की कोशिश करने के लिए कहा जाता है क्‍योंकि सर्जरी के बाद नाक को कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है।
  • ऑपरेशन थिएटर में ले जाने से पहले मरीज को बेहोश करने के लिए एनेस्‍थीसिया दिया जाता है
  • सर्जरी के लिए ले जाने से पहले मरीज को ढीले कपड़े पहनाए जाते हैं।
  • मरीज या उसके परिजनों को सर्जन से पूछना चाहिए कि उसके लिए किस प्रकार की हाइपोफिसेक्‍टोमी सर्जरी बेहतर रहेगी।

सबसे पहले सर्जन ये निर्णय लेंगें कि मरीज के लिए किस प्रकार की हाइपोफिसेक्‍टोमी सर्जरी ठीक रहेगी।

  • सबसे ज्‍यादा ट्रांस-स्‍फेनोइडल हाइपोफिसेक्‍टोमी सर्जरी की जाती है जिसमें मरीज को सेमी-रिक्‍लाइनिंग पोजीशन (हल्‍का-सा पीछे की तरफ झुककर बैठना) में लिटाकर सिर को स्थिर रखने के लिए सहारा दिया जाता है।
  • अब साइनस गुहा के सामने और होंठों के ऊपरी हिस्‍से के ऊपर कई छोटे कट लगाए जाते हैं।
  • अब नासिका गुहा को खुला रखने के लिए स्‍पैकुलम लगाया जाता है।
  • नासिक गुहा की तस्‍वीरों को स्‍क्रीन पर देखने के लिए एंडोस्‍कोप कैमरा डाला जाता है।
  • इसके बाद ट्यूमर और पिट्यूटरी ग्रंथि को पूरा या इसके कुछ हिस्‍सों को निकालने के लिए पिट्यूटरी रॉन्जर नामक कुछ विशेष उपकरण डाले जाते हैं।
  • जिस जगह से ट्यूमर और ग्रंथि को निकाला गया होता है, उस जगह को भरने के लिए वसा, हड्डी, कार्टिलेज और कुछ सर्जिकल चीजों का इस्‍तेमाल किया जाता है।
  • सर्जन ब्‍लीडिंग और संक्रमण को रोकने के लिए नाक में एंटीबैक्‍टीरियल दवा लगाते हैं।
  • साइनस गुहा में लगे कट पर टांके लगाकर उसे बंद कर दिया जाता है।

इस सर्जरी के बाद मरीज को कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ता है, जैसे कि:

  • इस सर्जरी में एक से दो घंटों का समय लगता है।
  • ब्‍लीडिंग को रोकने के लिए मरीज की नाक को लगभग चार दिन के लिए बंद रखा जाता है।
  • चीरे वाली जगह को रोज साफ करना और पट्टी बदलना बहुत जरूरी है।
  • हृदय और सांस लेने की गति को मॉनिटर करने के लिए हाथ और पैरों एवं अन्‍य लाइनों पर ड्रिप लगाई जाती है।
  • पेशाब ठीक आ रहा है या नहीं एवं इसकी मात्रा जांचने के लिए कैथेटर लगाया जाता है।
  • मरीज को ऑक्‍सीजन मास्‍क लगाया जाता है।
  • सामान्‍य वार्ड में आने के बाद मरीज को एनेस्‍थीसिया से बाहर आने के बाद खाना दिया जाता है। अगर मरीज सही मात्रा में तरल पदार्थ ले रहा है और पेशाब भी ठीक से आ रहा है तो ऑपरेशन की अगली सुबह ही ड्रिप और कैथेटर को निकाल लिया जाता है।
  • मरीज को अस्‍पताल से छुट्टी देने से पहले नाक में कुछ भी न डालने और नाक से फूंक मारने के लिए मना किया जाता है।
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सर्जरी की वजह से कुछ जटिलताएं आ सकती है, जैसे कि:

सेरिब्रोस्‍पाइनल फ्लूइड लीक होना: 
ये फ्लूइड मस्तिष्‍क और रीढ़ की हड्डी में होता है। सर्जरी के बाद ये फ्लूइड लीक होने लगता है। इसका लंबर पंक्‍चर से इलाज करना पड़ता है जिसमें अतिरिक्‍त फ्लूइड को निकालने के लिए रीढ़ की हड्डी में एक सुईं डाली जाती है।

हाइपोपिट्यूटरिज्‍म:
इसमें शरीर सही तरह से हार्मोन नहीं बना पाता है। हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी से इसका इलाज किया जा सकता है।

डायबिटीज इंसिपिडस:
शरीर ठीक तरह से पानी की मात्रा को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं रहता है।

अगर सर्जरी के बाद निम्‍न जटिलताएं दिख रही हैं तो तुरंत डॉक्‍टर से बात करें:

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