एक्लेमप्सिया (Eclampsia) एक ऐसी स्थिति है जो केवल गर्भावस्था के दौरान और आमतौर पर मस्तिष्क में अनियंत्रित विद्युत गतिविधियों (electrical activities) के कारण उत्पन्न होती है, जो गर्भावस्था के बाद के चरणों में ऐंठन आदि शारीरिक लक्षणों के रूप में अनुभव होती है। इस स्थिति को सीज़र्स (Seizures) कहते हैं। यह एक दुर्लभ स्थिति है और हर साल 2,000-3,000 गर्भधारण में 1 को प्रभावित कर रही है।

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जब गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर के साथ प्रोटीनयूरिआ (proteinuria; यानी मूत्र में 300 मि.ग. से अधिक प्रोटीन की मात्रा) हो जाता है तो उस अवस्था को प्री-एक्लेमप्सिया (Pre-eclampsia) कहते हैं। प्री-एक्लेमप्सिया में, मां में हाई बीपी भ्रूण में रक्त की आपूर्ति कम करता है। इसका मतलब यह होता है कि भ्रूण को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व और ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहे हैं।

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अधिकतर एक्लेमप्सिया या प्री-एक्लेमप्सिया के मामले पहली बार गर्भधारण में होते हैं। एक्लेमप्सिया का यदि उचित उपचार न किया जाये तो यह जानलेवा हो सकता है। हालांकि विकसित देशों में इसकी वजह से गर्भवती महिलाओं की मृत्यु होना बहुत दुर्लभ है। विश्व स्तर पर, एक्लेमप्सिया से लगभग 14 प्रतिशत मातृत्व मौतें हुई हैं। ज्यादातर मामलों में, प्री-एक्लेमप्सिया के लक्षण हल्के होते हैं और निरिक्षण और आहार परिवर्तन के अलावा किसी अन्य इलाज की आवश्यकता नहीं होती है।

  1. प्री - एक्लेमप्सिया और एक्लेमप्सिया में अंतर
  2. प्री - एक्लेमप्सिया के लक्षण
  3. प्री - एक्लेमप्सिया के कारण
  4. प्री - एक्लेमप्सिया का निदान
  5. प्री - एक्लेमप्सिया का इलाज
  6. प्री - एक्लेमप्सिया के जोखिम कारक
  7. प्री - एक्लेमप्सिया की जटिलतायें

एक्लेमप्सिया, प्री-एक्लेमप्सिया का अंतिम चरण है जिसमें तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता होती है। हालांकि इसके एक्लेमप्सिया में परिवर्तित होने से पहले ही अधिकांश मामलों में इसका पता लग जाता है।

वास्तव में प्री-एक्लेमप्सिया के लिए कोई इलाज नहीं है, लेकिन डॉक्टर अक्सर इस स्थिति से बचने के लिए बीपी और ऐंठन कम करने वाली दवाओं द्वारा इलाज करते हैं।

प्री-एक्लेमप्सिया और एक्लेमप्सिया दोनों का एकमात्र इलाज है - बच्चे का जन्म। सामान्यतः प्रसव के दौरान ब्लड प्रेशर को बढ़ने से रोकने के लिए सिजेरियन डिलीवरी (Cesarean delivery) आवश्यक होती है। 

(और पढ़ें - नार्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी में से क्या है अधिक बेहतर)

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गर्भावस्था के दौरान कभी भी एक्लेमप्सिया के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। इसमें बहुत कम लक्षण पता चलते हैं। और डॉक्टर के बिना एक्लेमप्सिया के लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है। 

(और पढ़ें - गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण)

प्री-एक्लेमप्सिया के सबसे आम लक्षणों में कुछ इस प्रकार हैं:

  1. गंभीर सिर दर्द
  2. गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक वजन ग्रहण कर लेना। प्रति सप्ताह एक किलो से अधिक। 
  3. मतली, उल्टी या पेट दर्द। (और पढ़ें - उल्टी रोकने के घरेलू उपाय)
  4. हाथ, पैर और चेहरे की सूजन।

जब प्री-एक्लेमप्सिया, एक्लेमप्सिया में परिवर्तित हो जाता है, तो इसमें निम्न लक्षण भी अनुभव हो सकते हैं:

  1. मांसपेशियों में दर्द
  2. सीज़र्स।

बच्चे के जन्म के अलावा प्री-एक्लेमप्सिया का और कोई इलाज नहीं है। यदि इसका निदान जल्दी हो जाता है तो अक्सर दवा और आराम के द्वारा बीपी को कम करके इसे नियंत्रित किया जा सकता है। दौरों को कम करने वाली दवाओं का इस्तेमाल करके भी प्री-एक्लेमप्सिया को एक्लेमप्सिया में बदलने से रोका जा सकता है।

एक्लेमप्सिया से संबंधित कुछ स्थितियां होती हैं जो या तो लक्षणों के साथ या उनके बिना उत्पन्न हो सकती हैं:

  1. एडीमा (Edema): ऊतकों में तरल पदार्थ के जमा हो जाने के कारण ऊतक में सूजन। यह आमतौर पर हाथ पैरों में होती है।
  2. पल्मोनरी एडिमा (Pulmonary edema): जब वही तरल पदार्थ फेफड़ों में जमा हो जाता है तो साँस लेने में कठिनाई होती है।
  3. सिरदर्द (Headache): यह शायद एक्लेमप्सिया की वजह से उच्च रक्तचाप के कारण होता है।
  4. गर्भकालीन मधुमेह (Gestational diabetes): गर्भावस्था में शुगर के लक्षण, जो भ्रूण का वज़न बढ़ने का कारण बन सकता है। (और पढ़ें - वजन घटाने के आसान तरीके)

एक्लेमप्सिया की प्रत्येक घटना अलग होती है। लोग इनमें से कोई भी लक्षण अनुभव कर सकते हैं या हो सकता है कोई भी महसूस न हो।

प्री-एक्लेमप्सिया के सटीक कारणों में कई कारक सम्मिलित होते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह गर्भनाल या प्लेसेंटा में शुरू होता है। प्लेसेंटा गर्भावस्था के दौरान भ्रूण को पोषण प्रदान करता है। प्रारंभिक गर्भावस्था में, नयी रक्त वाहिकाएं विकसित होती हैं और प्रभावी ढंग से प्लेसेंटा तक रक्त पहुंचाने का काम करती हैं।

प्री-एक्लेमप्सिया से ग्रस्त महिलाओं में, ये रक्त वाहिकाएं ठीक प्रकार से विकास और कार्य नहीं कर पाती हैं। ये सामान्य रक्त वाहिकाओं से पतली होती हैं और हार्मोनल सिग्नैलिंग (Hormonal signaling) के प्रति अलग तरह से प्रतिक्रिया करती हैं। हार्मोनल सिग्नैलिंग की प्रक्रिया उनके द्वारा प्रवाह होने वाले रक्त की मात्रा को निश्चित करती है।

इस असामान्य विकास के निम्न कारण हो सकते हैं:

  1. गर्भाशय में अपर्याप्त रक्त प्रवाह।
  2. रक्त वाहिकाओं में चोट।
  3. प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) में समस्या।
  4. कुछ जीन्स (Genes) के कारण।
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पहले के समय में, प्री-एक्लेमप्सिया का निदान सिर्फ मूत्र में प्रोटीन की मौजूदगी और उच्च रक्तचाप मापकर किया जाता था। हालांकि, अब विशेषज्ञों को यह ज्ञात हो गया है कि मूत्र में प्रोटीन प्री-एक्लेमप्सिया का हमेशा दिखने वाला लक्षण नहीं है - यानी, ऐसा हो सकता है कि आपको प्री-एक्लेमप्सिया हो लेकिन आपके मूत्र में प्रोटीन ना हो।

गर्भावस्था में 140/90 मिमी एचजी से अधिक बीपी होना असामान्य है। हालांकि, एक बार ही उच्च रक्तचाप आने का यह मतलब नहीं है कि आपको प्री-एक्लेमप्सिया है। यदि मापने से असामान्य बीपी आता है या आपके सामान्य रक्तचाप के मुकाबले काफी अधिक बीपी निकलता है तो डॉक्टर इसका निरीक्षण करेंगे।

एक बार परीक्षण करने के चार घंटे बाद दूसरे में भी अगर असामान्य रक्तचाप आता है तो डॉक्टर ही प्री-एक्लेमप्सिया के संदेह की पुष्टि करेंगे। डॉक्टर आपसे अतिरिक्त बीपी परीक्षण, रक्त या मूत्र परीक्षण कराने के लिए कह सकते हैं।

अन्य ज़रूरी जांचें -

यदि चिकित्सक के अनुसार आपको प्री-एक्लेमप्सिया होने का संदेह है, तो वो आपको कुछ अन्य परीक्षण कराने को कह सकते हैं जैसे:

रक्त परीक्षण (Blood Test)

डॉक्टर आपको लिवर फ़ंक्शन परीक्षण, किडनी फ़ंक्शन परीक्षण और आपके रक्त में प्लेटलेट्स (कोशिकाएं जो रक्त का थक्का ज़माने में मदद करती हैं) का परीक्षण कराने को कह सकते हैं।

मूत्र विश्लेषण (Urine Analysis)

डॉक्टर आपसे अपने मूत्र का नमूना लेने को कहेंगे ताकि वो मूत्र में मौजूद प्रोटीन की मात्रा जांच सकें।

भ्रूण अल्ट्रासाउंड (Fetal ultrasound)

डॉक्टर अल्ट्रासाउंड द्वारा बच्चे के विकास की जांच कराने के लिए भी कह सकते हैं। अल्ट्रासाउंड टेस्ट के दौरान आपके बच्चे के चित्र द्वारा डॉक्टर को भ्रूण का वजन और गर्भाशय में द्रव की मात्रा (एम्नियोटिक द्रव) का अनुमान लगाने में मदद मिलती है।

नॉन-स्ट्रेस टेस्ट या बायोफिजिकल प्रोफाइल (Nonstress test or biophysical profile)

नॉनस्ट्रेस टेस्ट एक सरल प्रक्रिया है जिसमें बच्चे के हिलने डुलने पर उसके हृदय की गति बताता है। बायोफिजिकल प्रोफाइल में बच्चे की सांस, मांसपेशियां, गतिविधियां और गर्भाशय में एम्नियोटिक द्रव की मात्रा को मापने के लिए अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है।

प्री-एक्लेमप्सिया का एकमात्र इलाज डिलीवरी है। जब तक आपके बीपी में कमी नहीं आ जाती आपको सीज़र्स, प्लेसेंटा के फटने, स्ट्रोक और संभवतः गंभीर रक्तस्राव होने का खतरा बढ़ जाता है। यदि ऐसा आपकी गर्भावस्था की शुरुआत में हो रहा है तो डिलीवरी सही विकल्प नहीं है।

(और पढ़ें - स्ट्रोक का इलाज)

यदि आपको प्री-एक्लेमप्सिया है तो डॉक्टर आपको बतायेंगे कि कितनी बार प्रिनेटल विज़िट (Prenatal visits) की ज़रूरत है। साथ ही आपको गर्भावस्था में होने वाली जटिलताओं को जांचने के लिए जल्दी जल्दी रक्त परीक्षण, अल्ट्रासाउंड और नॉनस्ट्रेस टेस्ट कराना आवश्यक होता है।

प्री-एक्लेमप्सिया के निम्नलिखित संभावित इलाज हो सकते हैं:

  1. बीपी को कम करने वाली दवाओं का सेवन।
  2. कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (Corticosteroids) दवाओं का सेवन। कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स आपके बच्चे के फेफड़ों को 48 घंटों में परिपक्व (Mature) बनाते हैं। जो बच्चे को समय से पहले गर्भ के बाहर लाने में सहायता करता है।
  3. ऐंठन कम करने वाली दवाओं का सेवन।
  4. यदि प्री-एक्लेमप्सिया अधिक गंभीर है तो डॉक्टर इसे रोकने के लिए मैग्नीशियम सल्फेट जैसी ऐन्टिकन्वल्सन्ट (Anticonvulsant) दवा का सुझाव दे सकते हैं।

आराम (Bed rest)

प्री-एक्लेमप्सिया से ग्रस्त महिलाओं को आराम करने की सलाह दी जाती है लेकिन शोधों के अनुसार, इससे कोई लाभ नहीं होता है बल्कि यह आपमें रक्त के थक्कों के न जमने के जोखिम को बढ़ा सकता है।

अस्पताल में भर्ती होना (Hospitalization)

गंभीर प्री-एक्लेमप्सिया से ग्रस्त होने पर अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता हो सकती है। अस्पताल में, बच्चे और एम्नियोटिक द्रव की मात्रा की नियमित रूप से नॉनस्ट्रेस टेस्ट या बायोफिजिकल प्रोफाइल द्वारा जांच होती है। एम्नियोटिक द्रव की मात्रा में कमी, बच्चे में ख़राब रक्त आपूर्ति का संकेत होता है।

डिलीवरी (Delivery)

यदि गर्भावस्था के अंत के चरणों में प्री-एक्लेमप्सिया का निदान होता है, तो डॉक्टर तुरंत डिलीवरी कराने की सलाह दे सकते हैं।

गंभीर स्थिति में, आपके बच्चे की गर्भकालीन आयु (Gestational age) या आपके गर्भाशय ग्रीवा के तैयार होने पर विचार नहीं किया जाता है। यदि यह इंतजार करना संभव नहीं है, तो डॉक्टर प्रेरित रूप से प्रसव कराने की सलाह या सी-सेक्शन (C-section) की व्यवस्था कर सकते हैं। प्रसव के दौरान, आपको सीज़र्स (seizures) से रोकने के लिए मैग्नीशियम सल्फेट, नसों द्वारा दिया जा सकता है।

यदि प्रसव के बाद दर्द निवारक दवा की आवश्यकता होती है तो इस बारे में डॉक्टर से पूछें। बिना सलाह के किसी भी दवा का सेवन आपका बीपी बढ़ा सकता है।

प्री-एक्लेमप्सिया गर्भावस्था की जटिलता के रूप में विकसित होने वाली स्थिति है। इसके जोखिम कारक इस प्रकार हैं:

  1. पूर्व में आपके या परिवार में किसी के प्री-एक्लेमप्सिया से ग्रस्त होने पर इसका जोखिम बढ़ता है।
  2. क्रोनिक हाइपरटेंशन (Chronic hypertension) यदि आप पहले से ही हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं तो आपमें प्री-एक्लेमप्सिया के विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है।
  3. पहली गर्भावस्था के दौरान प्री-एक्लेमप्सिया के विकास का जोखिम सबसे ज्यादा होता है।
  4. हर बार एक नए साथी से गर्भवती होने से भी प्री-एक्लेमप्सिया का खतरा बढ़ जाता है।
  5. प्री-एक्लेमप्सिया का जोखिम 40 वर्ष से अधिक उम्र के बाद गर्भवती होने या कम उम्र में गर्भवती होने से बढ़ जाता है।
  6. मोटापे से ग्रस्त होने पर प्री-एक्लेमप्सिया का खतरा अधिक हो जाता है।
  7. प्री-एक्लेमप्सिया उन महिलाओं में अधिक आम है जो एक बार में जुड़वां, तीन या अधिक बच्चों को जन्म देती हैं।
  8. दो साल से कम या 10 साल से अधिक उम्र के अंतराल में बच्चे पैदा करने से प्री-एक्लेमप्सिया का खतरा अधिक हो जाता है।
  9. आपके गर्भवती होने से पहले क्रोनिक हाई बीपी, माइग्रेन, टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज, किडनी रोग, रक्त के थक्के जमाने की प्रवृत्ति या ल्यूपस रोग आदि रोगों से पीड़ित होना प्री-एक्लेमप्सिया के जोखिम को बढ़ाता है।
  10. प्री-एक्लेमप्सिया से ग्रस्त होने का जोखिम बढ़ जाता है यदि गर्भधारण इन विट्रो (प्रयोगशाला में निषेचन की विधि से) किया जाता है।

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प्री-एक्लेमप्सिया जितना अधिक गंभीर और गर्भावस्था की शुरुआत में होता है उतना ही अधिक महिला और बच्चे में इसकी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। प्री-एक्लेमप्सिया में प्रेरित प्रसव (Induced labor) और डिलीवरी की आवश्यकता होती है। सिजेरियन डिलीवरी (सी-सेक्शन) द्वारा डिलीवरी आवश्यक हो सकती है।

प्री-एक्लेमप्सिया की निम्न जटिलताएं हो सकती हैं:

  1. भ्रूण के विकास में रुकावट (Fetal growth restriction): प्री-एक्लेमप्सिया प्लेसेंटा में रक्त प्रवाह करने वाली धमनियों को प्रभावित करती है। यदि प्लेसेंटा को पर्याप्त रक्त नहीं मिलता, तो बच्चे को भी अपर्याप्त रक्त, ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते हैं। इससे भ्रूण के विकास में रुकावट आती है और जन्म के समय बच्चे का कम वज़न या समय से पूर्व बच्चे के जन्म जैसी जटिलताओं की सम्भावना होती है।
  2. समय से पूर्व बच्चे का जन्म (Preterm birth): अगर आपको प्री-एक्लेमप्सिया है, तो आपको अपने और आपके बच्चे के जीवन को बचाने के लिए जल्दी ही डिलीवरी करवाने की आवश्यकता हो सकती है। समय से पूर्व जन्म के कारण आपके बच्चे में सांस लेने जैसी अन्य समस्याएं हो सकती हैं। डॉक्टर आपको बता देंगे कि आपके प्रसव के लिए आदर्श समय कौन सा है।
  3. प्लेसेंटा का टूटना (Placental abruption): प्री-एक्लेमप्सिया प्लेसेंटा के टूटने या फटने का जोखिम अधिक होता है। इस स्थिति जिसमें प्लेसेंटा प्रसव से पहले ही गर्भाशय के अंदरूनी अस्तर से अलग हो जाती है। गंभीर रूप से प्लेसेंटा के टूटने से भारी रक्तस्राव हो सकता है जो आपके और आपके बच्चे दोनों के लिए घातक हो सकता है।
  4. हेल्लप सिंड्रोम (HELLP syndrome): इसमें लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, लिवर के एंजाइम बढ़ जाते हैं और प्लेटलेट की संख्या कम हो जाती है। इस सिंड्रोम का अधिक गंभीर रूप प्री-एक्लेमप्सिया है और यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक है।
  5. एक्लेमप्सिया (Eclampsia): यह तब उत्पन्न होता है जब प्री-एक्लेमप्सिया नियंत्रित नहीं होता है। वास्तव में एक्लेमप्सिया प्री-एक्लेमप्सिया और सीज़र्स का मिश्रित रूप है। हालांकि एक्लेमप्सिया का पता करने के लिए कोई लक्षण या संकेत अनुभव नहीं होते हैं। इसके मां और बच्चे दोनों के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसलिए प्रसव प्रक्रिया आवश्यक हो जाती है, चाहे गर्भावस्था कितनी भी बची हो।
  6. अन्य अंगों की क्षति (Other organ damage): प्री-एक्लेमप्सिया का असर किडनी, लिवर, फेफड़ों, दिल या आंखों में हो सकता है। और इसके कारण स्ट्रोक या अन्य मस्तिष्क सम्बन्धी विकार हो सकते हैं। (और पढ़ें - फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए आहार)
  7. हृदय रोग (Cardiovascular disease): प्री-एक्लेमप्सिया होने से भविष्य में हृदय और रक्त वाहिका संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। डिलीवरी के बाद इसके जोखिम को कम करने के लिए वजन नियंत्रित रखने की कोशिश करें, विभिन्न प्रकार के फलों और सब्ज़ियों का सेवन करें। नियमित रूप से व्यायाम करें और धूम्रपान न करें। (और पढ़ें - डिलीवरी के बाद वजन कम कैसे करें)

(स्वस्थ गर्भावस्था के बाद अपने बच्चों का कूल नाम रखने के लिए पढ़ें - बच्चों के कूल नाम)

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