पहली बार मां बनने पर खुशी जितनी ज्‍यादा होती है उतनी ही ज्‍यादा उलझनें भी रहती हैं क्‍योंकि शिशु के जन्‍म के बाद ऐसी कई बातें हैं जिन्‍हें समझने में नई माओं को समय लगता है। शिशु के जन्‍म के पहले दिन मां का रोने के साथ-साथ हंसने का भी मन करता है। हर मां शिशु के जन्‍म के बाद उसकी सांसों को ध्‍यान से सुनने की कोशिश करती है और शिशु के सांस लेने में छोटी-सी भी कोई दिक्‍कत महसूस हो तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हालांकि, आपको यह समझना चाहिए जन्‍म के बाद शिशु के लिए बाहर का वातावरण बिलकुल अलग और नया होता है जिसके अनुसार ढलने में उसे समय लगता है।

  1. शिशु का पहली बार सांस लेना - Bache ka pehli baar saans lena
  2. क्‍या शिशु बहुत जल्‍दी सांसे ले रहा है - Bache ka tej saans lene ka kya matlab hai
  3. ट्रांसिएंट टेकिप्निया क्‍या है - Bache me Transient tachypnea kya hai
  4. माता-पिता के लिए सुझाव - Parents ke liye tips
जन्म के बाद पहले 24 घंटों में कैसे सांस लेता है नवजात शिशु के डॉक्टर

गर्भ में भ्रूण को गर्भनाल के जरिए ऑक्‍सीजन और पोषण प्राप्‍त होता है। गर्भनाल में भी खून कार्बन डाइऑक्‍साइड और अन्‍य अपशिष्‍ट पदार्थों को ले जाने का काम करता है। असल में जन्‍म के बाद शिशु सांस लेना सीखता है। अधिकतर शिशु डिलीवरी के 10 सेकेंड बाद पहली सांस लेते हैं। उनकी पहली सांस से हांफने की आवाज आ सकती है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि उनके छोटे-से फेफड़े उस समय फ्लूइड से भरे होते हैं। पहली बार सांस लेने पर नवजात शिशु उस फ्लूइड को वायुमार्ग से बाहर निकाल देता है जिससे श्‍वसन तंत्र साफ हो जाता है और कार्य करने लगता है।

नवजात शिुश का छींकना या नाक से आवाज आना सामान्‍य बात है क्‍योंकि इस समय शिशु के फेफड़ें और नाक सांस लेना सीख रहे होते हैं। कई बार शिशु नाक सिनक भी नहीं पाता है जिसकी वजह से नाक के अंदर म्‍यूकस अटक सकता है। जब ये म्‍यूकस गले में आ जाता है तो आपको छाती से घरघराहट की आवाज आना महसूस हो सकता है। इस स्थिति में चिंता करने की जरूरत नहीं है। हिचकी आना भी पूरी तरह से सामान्‍य है और इसकी वजह से शिशु को बिलकुल भी असहजता नहीं होती है। 

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आमतौर पर वयस्‍क व्‍यक्‍ति एक मिनट में 12 से 20 बार सांस लेता है। नींद के दौरान इसमें हल्‍की सी कमी आती है जो कि एक मिनट में 20 बार हो सकती है। नवजात शिशु भी तेज सांसें ले सकते हैं और इसके बाद एक बार में 10 सेकेंड का पॉज (रूकना) ले सकता है। इसे पीरियोडिक ब्रीदिंग कहते हैं जो कि शिशु में होना आम बात है। ऐसा शिशु के सोने या जागने के दौरान हो सकता है। अगर आप पहली बार मां बनी हैं तो इस बात को लेकर ज्‍यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। कुछ ही महीनों में सांस को लेकर अधिकतर अनियमितताएं अपने आप ही दूर हो जाती हैं।

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ट्रांसिएंट टेकिप्निया एक सामान्‍य सांस से संबंधित समस्‍या है जो कि कुछ प्री-टर्म (नौ महीने से पहले पैदा हुए) नवजात शिशुओं को प्रभावित कर सकती है। हालांकि, ये समस्‍या पूरे नौ महीने के बाद पैदा हुए नवजात शिशुओं में भी देखी जा सकती है। इसमें असामान्‍य रूप से तेज सांसें आती हैं जैसे कि एक मिनट में 40 से 60 बार सांस लेना।

टेकिप्निया तब होता है जब जन्‍म से पहले शिशु के फेफड़े फ्लूइड को अवशोषित नहीं कर पाते हैं। ऐसे शिशुओं को सही मात्रा में ऑक्‍सीजन लेने के लिए तेज सांसें लेनी पड़ती है।

फेफड़ों के फ्लूइड अवशोषण को आंशिक तौर पर प्रसव के दौरान शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव से नियंत्रित किया जा सकता है। सी-सेक्‍शन से पैदा हुए बच्‍चों में इस स्थिति का खतरा ज्‍यादा रहता है। ऐसे शिशुओं को जन्‍म के बाद लंग फ्लूइड को पुर्न-अवशोषित करने का काम करना पड़ता है। अस्‍थमा और डायबिटीज से ग्रस्‍त माओं के बच्‍चों में इस स्थिति का जोखिम अधिक रहता है।

(और पढ़ें - शिशु त्वचा की देखभाल कैसे करें)

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अपने शिशु के सांस लेने के पैटर्न पर नजर रखें। अगर आपको सांस से संबंधित कोई भी समस्‍या महसूस होती है तो डॉक्‍टर से बात करें। निम्‍न स्थितियों में मेडिकल केयर की जरूरत होती है:

  • शिशु को 20 सेकेंड या इससे अधिक समय तक सांस नही आ रही हो
  • उसके होंठ, जीभ, हाथ और पैरों के नाखूनों का रंग नीला पड़ने लगा हो
  • हर सांस के साथ घुरघुर की आवाज आना
  • सांस लेते समय नाक फूलना
  • गर्दन, कॉलरबोन (ब्रेस्टबोन को कंधे से जोड़ने वाली हड्डी) या पसलियों के आसपास की मांसपेशियों को अंदर की ओर खींचना
  • दूध पीने में दिक्‍कत होना और साथ ही सांस न ले पाना
  • थकानबुखार और सांस लेने में दिक्‍कत होना
  • सांस लेने के दौरान घरघराहट की आवाज आना जो कि निचले वायुमार्ग में रुकावट का संकेत हो सकता है
  • तेजी से सांस लेना जो कि निमोनिया और अन्‍य संक्रमण का संकेत हो सकता है
  • मुंह से लगातार तेज आवाज आना जो कि वायुमार्ग में किसी रुकावट का संकेत हो सकता है
  • तेज खांसी होना

(और पढ़ें - नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें)

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