दुनिया की खतरनाक और जानलेवा बीमारियों में से एक मलेरिया का टीका बच्चों को लगाया जाना शुरू हो गया है। मलावी (अफ्रीकी देश) में एक के बाद एक पीड़ित बच्चों को मलेरिया रोग से लड़ने के लिए पहला और अहम टीका लगाया जा रहा है। इस तरह से कहा जाए तो मलेरिया के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के जरिए अब इस बीमारी से ग्रसित अफ्रीकी देश (केन्या और घाना) मलेरिया से उबरने की कोशिश में लगे हैं।

मलेरिया के लिए बच्चों को दिया जा रहा यह टीका बीमारी से बचाव तो करेगा, लेकिन इस वैक्सीन का प्रभाव लगभग 40 प्रतिशत होगा। मलेरिया वैक्सीन को लेकर कुछ विशेषज्ञों को कहना है कि यह कम प्रभावी जरूर है, मगर यह टीका मलेरिया जैसी बीमारी के खिलाफ एक अच्छी कोशिश हो सकती है। इससे वैश्विक स्तर पर मलेरिया जैसी गंभीर बीमारी के मामलों को रोकने में मदद मिल सकती है।

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मलेरिया की भयावहता को बताते आंकड़े
आंकड़ों के मुताबिक मच्छरों के काटने से फैलने वाली इस बीमारी (मलेरिया) से हर साल मरने वालों की संख्‍या 4 लाख के पार जा रही है। मलेरिया से मरने वालों में सबसे ज्‍यादा संख्या बच्‍चों की है। ये आकंड़े बताते हैं कि अफ्रीका में मलेरिया से हर साल दो तिहाई बच्चों (5 साल से कम उम्र के बच्चे) की मौत होती है।

क्या है मलेरिया?
मलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज को सर्दी और सिरदर्द के साथ बार-बार बुखार आता है। इस स्थिति में बुखार कभी कम तो कभी ज्यादा होता है। मलेरिया से जुड़े गंभीर मामलों में मरीज कोमा में चला जाता है या उसकी मृत्यु तक हो जाती है। मलेरिया प्लाज़्मोडियम (plasmodium) नामक परजीवी (parasite) के कारण होता है। मलेरिया मादा एनोफेलीज मच्छर (Anopheles mosquito) के काटने से होता है, जो इस परजीवी को शरीर में छोड़ देती है।

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भारत में हालात काफी बेहतर
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्ल्यूएचओ की ओर से जारी की गई वर्ल्ड मलेरिया रिपोर्ट 2019 के आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो भारत की स्थिति काफी सुधरी है। भारत उन दो देशों में शामिल है, जिन्होंने साल 2018 के अंदर मलेरिया के मामलों पर रोकथाम लगाने में कामयाबी पाई है। भारत के अलावा दूसरा देश युगांडा है।

  • वर्ल्ड मलेरिया रिपोर्ट 2019 के अनुसार हमारे देश में साल 2017 से 2018 के बीच मलेरिया के मामलों में 28 प्रतिशत तक की कमी आई है, जबकि साल 2016 से 2017 के बीच इस बीमारी से जुड़े मामलों में 24 प्रतिशत तक कमी दर्ज की गई थी।
  • एक अनुमान के मुताबिक देश के सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 7 प्रदेशों में साल 2018 के अंदर मलेरिया से जुड़े करीब 90 प्रतिशत मामले सामने आए थे। इन राज्यों में पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात शामिल हैं।
  • इन सभी राज्यों में मलेरिया से जुड़े मामलों में बड़ी कमी दर्ज की गई। साल 2010 में जहां मलेरिया से ग्रसित लोगों का आंकड़ा 1 करोड़ 43 लाख था, वहीं साल 2018 में यह कम होकर 57 लाख पर आ गया।

मलेरिया से लड़ने के लिए बनाया लक्ष्य
अफ्रीकी देशों में फैले मलेरिया के प्रकोप को कम करने के लिए पिछले साल यानि 2019 में अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के तहत तीनों देशों (मलावी, केन्या और घाना) के 3 लाख 60 हजार बच्चों को हर साल टीका लगाना है। बच्चों को वैक्सीन की पहली खुराक लगभग 5 महीने पर दी जाएगी, जबकि आखिरी और चौथी खुराक बच्चे के दूसरे जन्मदिवस के पास दी जानी है।

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विशेषज्ञों की राय
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह पता करना अभी थोड़ा जल्दबाजी होगी कि यह टीका कितना कारगर साबित हो रहा है। इसलिए विशेषज्ञ अभी सटीक जानकारी के लिए मलेरिया से होने वाली मौत, संक्रमण और मेनिन्जाइटिस के मामलों को देख रहे हैं। कुछ आंकड़ों को अध्ययन के दौरान रिपोर्ट किया गया है, लेकिन वैक्सीन से जुड़े यह आंकड़े सटीक अनुमान के लिए काफी नहीं हैं।

मलावी में हालात का अंदाजा लगा रहे एक शोधकर्ता डॉन माथांगा का कहना है कि मलेरिया के लिए कुछ बिल्कुल नया करना उनके लिए उत्साहवर्धक का काम करता है।

कुल मिलाकर इस रिपोर्ट के आधार पर देखा जाए तो अफ्रीका में मलेरिया के प्रकोप का सामना कर रहे इन देशों के लिए यह नई वैक्सीन वरदान साबित हो सकती है, लेकिन यह वैक्सीन कितनी कारगर साबित होगी यह थोड़े वक्त के बाद पता चलेगा। वहीं भारत के हिसाब से देखा जाए तो मलेरिया से लड़ाई में यह हमारी बड़ी जीत जरूर है, लेकिन लगातार अच्छी कोशिश से इन आंकड़ों को और बेहतर करने में मदद मिलेगी।

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