एएलए ब्लड टेस्ट क्या है?

एमिनोलेवुलिनिक ब्लड टेस्ट को पोर्फोबिलिनोजन ब्लड टेस्ट और पॉरफाइरिन ब्लड टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है। एएलए, पोरफोबिलिनोजन और पॉरफाइरिन मुख्य रूप से हीम (Haem) बनने की प्रक्रिया के दौरान बनते हैं। हीम लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक पिगमेंट है, जिसमें आयरन मौजूद होता है।

हीम एक मल्टीस्टेप प्रक्रिया है, जिसमें आठ अलग-अलग प्रकार के एंजाइमों (विशेष प्रकार के प्रोटीन) की आवश्यकता पड़ती है। हीम सिंथेसिस प्रक्रिया से बनने वाला सबसे पहला उत्पाद एमिनोलेवुलिनिक एसिड होता है और फिर पोर्फोबिलिनोजन बनता है। इसके बाद पोर्फोबिलिनोजन पॉरफाइरिन नामक एक घटक बनाता है। ये कंपाउंड हीमोग्लोबिन बनाने में मदद करते हैं।

यदि इन आठ एंजाइमों में से कोई एक क्षतिग्रस्त या कम हो जाता है, तो इससे पूरी प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप शारीरिक द्रवों व ऊतकों में पॉरफाइरिन बनने लगता है। ऐसे में पॉरफाइरिन सामान्य रूप से एक छोटी मात्रा में खून, पेशाब व शरीर के अन्य द्रवों में मिलने लगता है। हालांकि, यदि खून में पॉरफाइरिन का स्तर विशेष रूप से अधिक बढ़ गया है, तो इसके परिणामस्वरूप पॉरफाइरिया नामक रोग विकसित हो जाता है।

एएलए ब्लड टेस्ट की मदद से पॉरफाइरिया रोग का परीक्षण किया जाता है। इस रोग के मुख्य दो प्रकार हैं :

  • एक्यूट पॉरफाइरिया - इसमें न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिकाओं संबंधी) लक्षण विकसित होने लगते हैं।
  • क्यूटेनियस पॉरफाइरिया - इसमें धूप के संपर्क में आते ही त्वचा संबंधी (क्यूटेनियस) लक्षण विकसित होने लगते हैं।

यदि आपको सीसा विषाक्तता (लेड पॉइजनिंग) है, तो भी आपके खून में पॉरफाइरिन के स्तर सामान्य से अधिक हो सकते हैं।

  1. एएलए ब्लड टेस्ट क्यों किया जाता है - ALA Blood Test kyu kiya jata hai
  2. एएलए ब्लड टेस्ट से पहले - ALA Blood Test se pahle
  3. एएलए ब्लड टेस्ट के दौरान - ALA Blood Test ke dauran
  4. एएलए ब्लड टेस्ट के रिजल्ट का क्या मतलब है - ALA Blood Test ke result ka kya matlab hai

एएलए टेस्ट क्यों किया जाता है?

क्यूटेनियस पॉरफाइरिया की स्थिति पर नजर रखने के लिए पॉरफाइरिन ब्लड टेस्ट को सबसे बेहतर माना जाता है।

यदि डॉक्टर को लगता है कि आपके शरीर में पॉरफाइरिया के लक्षण विकसित हो रहे हैं, तो वे यह टेस्ट कर सकते हैं।

क्यूटेनियस पॉरफाइरिया के लक्षणों में निम्न देखे जा सकते हैं :

ये लक्षण मुख्य रूप से त्वचा के उन हिस्सों पर विकसित होते है, जो धूप के संपर्क में आते हैं।

यह टेस्ट एक्यूट पॉरफाइरिया से ग्रस्त लोगों का परीक्षण करने के लिए भी किया जाता है, ऐसा आमतौर पर गुर्दे के रोगों के मरीजों में होता है। जिन लोगों के गुर्दे खराब होते हैं उनका यूरिन सैंपल नहीं लिया जा सकता है, इसलिए उनका एएलए ब्लड टेस्ट किया जाता है।

एक्यूट पॉरफाइरिया के लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं :

एक्यूट पॉरफाइरिया में ऊपर बताए गए लक्षण एक साथ विकसित हो सकते हैं और कुछ दिनों या हफ्तों तक बने रह सकते हैं। इन लक्षणों को ट्रिगर करने वाले कुछ कारक भी हैं, जैसे तनाव, आहार में परिवर्तन, कुछ प्रकार की दवाएं और विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना आदि।

परीक्षण करने पर जिन लोगों में पहले ही पॉरफाइरिया मिल चुका है, तो यह टेस्ट उनकी स्थिति पर नियमित रूप से नजर बनाए रखने के लिए किया जा सकता है। यह नोट करना भी जरूरी है कि पॉरफाइरिया से ग्रस्त कुछ लोगों में तंत्रिकाओं व त्वचा संबंधी दोनों लक्षण एक साथ देखे जा सकते हैं।

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एमिनोलेवुलिनिक एसिड ब्लड टेस्ट करने के 24 घंटे पहले तक डॉक्टर आपको शराब पीने या एल्कोहल संबंधी कोई भी पदार्थ खाने से मना कर सकते हैं। इतना ही नहीं डॉक्टर आपको टेस्ट से 11 से 12 घंटे पहले तक कुछ भी खाने से मना कर सकते हैं। हालांकि, इस दौरान पानी पीने की सलाह दी जा सकती है।

जिस दौरान आपको न्यूरोलॉजिकल लक्षण महसूस हो रहे होते हैं, यदि उसी समय ब्लड सैंपल ले लिया जाए तो बेहतर होता है।

एमिनोलेवुलिनिक ब्लड टेस्ट करने के लिए सामान्य रूप से रक्त का सैंपल चाहिए होता है। डॉक्टर आमतौर पर बांह की नस से खून का सैंपल निकालते हैं, जिसके लिए एक किटाणुरहित सुई का इस्तेमाल किया जाता है। सुई लगाने के दौरान आपको हल्की सी चुभन महसूस हो सकती है।

कुछ लोगों को खून निकलने के बाद हल्के से चक्कर भी आ सकते हैं और सुई लगी जगह पर नील या निशान भी पड़ सकता है। हालांकि, ये लक्षण कुछ ही समय के लिए होते हैं और अपने आप ठीक हो जाते हैं। यदि नील कुछ ही समय के भीतर ठीक न हो पाए, तो अपने डॉक्टर को दिखा लें।

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एएलए टेस्ट के परिणाम क्या बताते हैं?

सामान्य रिजल्ट

पोर्फोबिलिनोजन और एमीनोवुलिनिक एसिड के प्लाज्मा स्तर निम्नानुसार हैं:

  • एमिनोलेवुलिनिक एसिड - ≤0.5 नैनोमोल प्रति मिली लीटर (nmol/mL)
  • पोर्फोबिलिनोजन - ≤0.5 नैनोमोल प्रति मिली लीटर

खून के पॉरफाइरिन की संदर्भ वेल्यू निम्न है :

  • कुल पॉरफाइरिन स्तर - 0-1 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलिटर ( mcg/dL)
  • यूरोपोरफाइरिन स्तर - <2 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलिटर
  • प्रोटोपोरफाइरिन स्तर -  16-60 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलिटर
  • कोप्रोपॉरफाइरिन स्तर - <2 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलिटर

एएलए टेस्ट का सामान्य रिजल्ट संकेत देता है कि आपके रक्त में पॉरफाइरिन का स्तर सामान्य है और आप पॉरफाइरिया रोग से ग्रस्त नहीं हैं। यदि आपको लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो संभव है कि वे किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या के कारण हुऐ हैं।

असामान्य रिजल्ट

यदि रक्त में पॉरफाइरिन का स्तर सामान्य से अधिक है, तो स्थिति को असाधारण माना जाता है और यह पॉरफाइरिया रोग होने के संकेत देता है।

इसके कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं :

  • जो लोग कंजेनिटल एरीथ्रोपोइएटिक पॉरफाइरिया रोग से ग्रस्त हैं, तो यूरोपॉरफाइरिन, प्रोटोपॉरफाइरिनऔर कोप्रोपॉरफाइरिन का स्तन खून में बढ़ जाता है। कंजेनिटल एरीथ्रोपोइएटिक मुख्य रूप से क्यूटेनियस पॉरफाइरिया का ही एक प्रकार होता है।
  • एरीथ्रोपोइएटिक प्रोटोपॉरफाइरिया भी एक प्रकार का क्यूटेनियक पॉरफाइरिया है। पॉरफाइरिन के ज्यादातर स्तर फ्री प्रोटोपॉरफाइरिन स्तर के साथ बढ़ जाते हैं और जेडएन- प्रोटोपॉरफाइरिन से अधिक हो जाते हैं।
  • एक्स-लिंक्ड प्रोटोपॉरफाइरिया में प्रोटोपॉरफाइरिन के स्तर भी फ्री प्रोटोपॉरफाइरिन के साथ बढ़ जाते हैं और जेडएन-प्रोटोपोर्फाइरिन के स्तर के समान हो जाते हैं।

डॉक्टर परीक्षण की पुष्टि करने और आप में पॉरफाइरिया के प्रकार का पता लगाने के लिए कुछ अन्य टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। हालांकि, इस रोग का कोई संभव इलाज नहीं है, लेकिन जीवनशैली में बदलाव करके इसके लक्षणों की गंभीरता को कम किया जा सकता है।

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