हार्टवर्म डिजीज या डायरोफिलेरियसिस एक गंभीर और घातक बीमारी है, जो कि "डायरोफिलेरिया इमिटिस" नामक परजीवी के कारण होती है। इस बीमारी के परिणामस्वरूप फेफड़े से संबंधित गंभीर रोग, हार्ट फेलियर, किसी अन्य अंग को नुकसान होना और यहां तक कि पालतू जानवरों (मुख्य रूप से कुत्ते) की मृत्यु भी हो सकती है। ये संक्रमित मच्छर के काटने से होती है। एक बार जब ये परजीवी रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं तो कुत्ते के हृदय और फेफड़े में रहते हुए बढ़ते व पनपते हैं।

हार्टवर्म रोग कुत्तों के अलावा बिल्लियों और फेरेट्स (नेवले की प्रजाति का एक जानवर) जैसे पालतू जानवरों को भी प्रभावित कर सकता है। इसमें मादा कीड़ा 6-14 इंच लंबा (15-36 सेमी) और 1/8 इंच चौड़ा (5 मिमी) होता है, जबकि नर कीड़े का आकार मादा की तुलना में लगभग आधा होता है।

  1. हार्टवर्म कैसे फैलता है? - Heartworm kaise failta hai?
  2. कुत्ते में हार्टवर्म - Kutte me Heartworm
  3. कुत्ते में हार्टवर्म के लक्षण/संकेत - Kutte me heartworm ke lakshan
  4. कुत्ते में हार्टवर्म का परीक्षण/निदान - Kutte me heartworm ka parikshan
  5. बिल्ली में हार्टवर्म का उपचार - Billi me heartworm ka upchar
  6. कुत्ते में हार्टवर्म की रोकथाम - Kutte me heartworm ki Roktham
  7. बिल्ली में हार्टवर्म डिजीज/रोग क्या है? - Billi me Heartworm
  8. बिल्ली में हार्टवर्म के लक्षण/संकेत - Billi me heartworms ke lakshan
  9. बिल्ली में हार्टवर्म का परीक्षण/निदान - Billi me heartworm ka parikshan
  10. बिल्ली में हार्टवर्म की रोकथाम - Billi me heartworm ke liye roktham
  11. फेरट्स में हार्टवर्म - Ferrets me heartworm

हार्टवर्म के फैलने का मुख्य कारण मच्छर है। जब कोई मच्छर किसी संक्रमित जानवर को काटता है, तो उस जानवर में मौजूद माइक्रोफिलारिया नामक अविकसित कीड़े को कैरी कर लेता है, बाद में यह अविकसित कीड़ा 10-14 दिनों की अवधि में संक्रामक लार्वा का रूप ले लेता है।

इसके बाद जब वही मच्छर किसी अन्य जानवर को काटता है, तो संक्रमित लार्वा त्वचा की सतह पर जमा या चिपक जाता है।

एक बार जब यह लार्वा नए शरीर के अंदर घुस जाता है, तो इसे वयस्क हार्टवॉर्म में विकसित होने में लगभग छह महीने लगते हैं। इन कीड़ों के परिपक्व होने के बाद, वे कुत्तों में लगभग 5-7 साल तक जबकि बिल्लियों में 2-3 साल तक रह सकते हैं।

तीन महीनों के अंदर, यह लार्वा जानवर के रक्तप्रवाह में मिल जाता है और हृदय व फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं तक पहुंच जाता है। ये कीड़े रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, तो हृदय की पंप करने की क्षमता में कमी आती है, जिसके परिणामस्वरूप फेफड़े और हृदय दोनों को नुकसान होता है।

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हार्टवॉर्म का खतरा ज्यादातर कुत्तों में होता है क्योंकि यह कीड़े आसानी से वयस्क हो जाते हैं और कुत्ते के शरीर में ही संभोग करते व बच्चे पैदा करते हैं। अगर इस स्थिति का इलाज न किया जाए, तो यह बीमारी कुत्तों के लिए घातक हो सकती है, क्योंकि यह कीड़े तेजी से सैकड़ों की संख्या में बदल सकते हैं।

ऐसे कुत्ते जो लंबे समय से संक्रमित हैं या अक्सर सक्रिय रहते हैं, उनमें हार्टवर्म के लक्षण आसानी से पहचाने जा सकते हैं। बीमारी की गंभीरता के आधार पर कुत्तों में इस बीमारी के लक्षणों को चार वर्गों में बांटा गया है :

  • वर्ग 1: इसमें कुत्ते में किसी प्रकार के लक्षण नहीं दिखते हैं।
  • वर्ग 2: कुत्ते में हल्के या कुछ लक्षण दिखाई दे सकते हैं जैसे कभी-कभार खांसी और हल्की गतिविधि के बाद थकान।
  • वर्ग 3: इसमें कुत्ते को लगातार खांसी व सुस्ती, सांस लेने में कठिनाई, भूख कम लगना, वजन कम होना, बार-बार बेहोश होना जैसे गंभीर लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
  • वर्ग 4: इसमें दिल की ओर बहने वाला खून परजीवियों के कारण अवरुद्ध (ब्लॉक) हो जाता है। यह एक जानलेवा स्थिति है जिसे ‘कैवल सिंड्रोम’ के रूप में जाना जाता है। इसमें असामान्य रूप से सांस लेना, मसूड़ों का पीला होना, पेट में सूजन जैसी समस्या हो सकती है।

वर्ग 2 और वर्ग 3 स्थिति में, कुत्तों के ह्रदय और फेफड़ों में होने वाली परेशानी एक्स-रे के जरिए ही पता चलती हैं।

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ऊपर दिए गए लक्षणों को नोटिस या पहचानने के बाद कुत्ते को चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए।

  • कुत्ते में 'एडल्ट हार्टवर्म इंफेक्शन' की उपस्थिति का पता लगाने के लिए पशु चिकित्सक ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। जबकि 'एडल्ट फीमेल हार्टवर्म' की उपस्थिति का पता लगाने के लिए ज्यादातर एंटीजन टेस्ट की मदद ली जाती है। 
  • एंटीजन टेस्ट की मदद से यह भी पता लगाया जा सकता है कि आपका कुत्ता हार्टवर्म के संपर्क में आया है या नहीं।
  • इसके अलावा निदान, रोग की गंभीरता का मूल्यांकन करने और सर्वोत्तम उपचार के लिए छाती का एक्स-रे और इकोकार्डियोग्राम (दिल का अल्ट्रासाउंड) भी किया जा सकता है।

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हार्टवर्म इंफेक्शन के इलाज की तुलना में इसकी रोकथाम ज्यादा बेहतर है, क्योंकि कुत्ते में हार्टवर्म के इलाज में जोखिम भी शामिल हैं।

निदान हो जाने के बाद पशु चिकित्सक कुत्ते को अस्पताल में भर्ती करने के लिए सलाह दे सकते हैं। इलाज में नसों के माध्यम से जरूरी दवाई, फेफड़े और हृदय संबंधी लक्षणों का इलाज करने के लिए दवाएं, एंटीबायोटिक्स और जनरल नर्सिंग केयर शामिल है।

इलाज के दौरान पशु चिकित्सक का लक्ष्य कुत्ते में मौजूद वयस्क कीड़े और माइक्रोफिलारिया को सुरक्षित रूप से मारना होता है।

इलाज के दौरान या बाद में शरीर में होने वाले इंफ्लेमेटरी रिएक्शन को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त दवाओं की भी आवश्यकता हो सकती है। बता दें, ये रिएक्शन मृत कीड़ों की वजह से हो सकता है।

यदि आपका कुत्ता 'कैवल सिंड्रोम' (बहुत सारे हार्टवर्म की उपस्थिति) की स्टेज में आ चुका है, तो ऐसी स्थिति में जल्द से जल्द सर्जरी की आवश्यकता होती है। हालांकि, सर्जरी जोखिम भरी है और कैवल सिंड्रोम की स्थिति में सर्जरी हर बार सफल नहीं होती, परिणाम स्वरूप कुत्ते की मौत हो सकती है।

कुत्तों में हार्टवर्म को कैसे रोका जा सकता है?

हार्टवर्म संक्रमण को रोकने के लिए निम्नलिखित सावधानी बरतना जरूरी है। 

  • बाजार में कई ऐसी दवाएं मौजूद हैं, जो सुरक्षित और प्रभावित तरीके से संक्रमण को रोकने का काम करती हैं, लेकिन ध्यान रहे कि दवा की खुराक या डॉक्टर के अपॉइंटमेंट को बीच में छोड़ देने से परिणाम गंभीर हो सकते हैं। अगर ऐसा कुछ हुआ है, तो अपने पशु चिकित्सक को इस बारे में अवश्य बताएं।
  • जब पिल्लों की उम्र सात माह से कम होती है, तो यह बीमारी की रोकथाम के लिए उचित समय माना जाता है क्योंकि इस दौरान एंटीजन टेस्ट की जरूरत नहीं होती है। लेकिन पहली बार पशु चिकित्सक को दिखाने के 6 महीने बाद और फिर 1 साल बाद टेस्ट करवाना अनिवार्य होता है।
  • इसके विपरीत जब पिल्लों की उम्र सात महीने से अधिक होती है और रोकथाम के लिए दवाई या टीका नहीं लगाया जाता है, तो ऐसे में सबसे पहले उनका एंटीजेन टेस्ट किया जाता है। डॉक्टर से मिलने के 6 महीने और फिर 1 साल बाद भी टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है।
  • कुत्ते की हर साल जांच करवाना बहुत जरूरी होता है, चाहे कुत्ते को हार्टवर्म की रोकथाम करने के लिए दवाएं दी जा रही हों। हर साल जांच करवाने से यह पुष्टि हो जाती है, कि इलाज प्रक्रिया ठीक से काम कर रही है या नहीं।

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बिल्लियों में हार्टवर्म रोग कुत्तों में हार्टवर्म बीमारी से बहुत अलग है। बिल्लियों में अधिकांश कीड़े वयस्क अवस्था तक जीवित नहीं बच पाते हैं। वयस्क हार्टवर्म वाले बिल्लियों में आमतौर पर केवल एक से तीन कीड़े होते हैं, जो ज्यादातर मामलों में वयस्कता में भी परिपक्व नहीं हो पाते हैं।

इसका मतलब यह है कि बिल्लियों में हार्टवर्म की बीमारी का निदान करना मुश्किल हो पाता है। इसके अलावा, अपरिपक्व कीड़े अंदर ही अंदर बहुत नुकसान पहुंचाते रहते हैं, इस स्थिति को हार्टवर्म एसोसिएटेड रेस्पिरेटरी डिसीज (एचएआरडी) के रूप में जाना जाता है, जो एक प्रकार से इंफ्लामेटरी लंग डिसीज (आईएलडी) है। इस स्थिति में कुत्तों में हार्टवर्म इंफेक्शन का इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं का इस्तेमाल बिल्लियों में नहीं किया जा सकता है, इसलिए इलाज के रूप में बीमारी की रोकथाम ही एकमात्र तरीका है।

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बिल्लियों में हार्टवर्म रोग के लक्षण बहुत सूक्ष्म या आकस्मिक हो सकते हैं।

लक्षणों में खांसी आना, अस्थमा जैसे अटैक, बार-बार उल्टी आना, पर्याप्त भोजन न करना या भूख में कमी या वजन कम होना शामिल है।

कभी-कभी, प्रभावित बिल्ली को चलने में कठिनाई, बेहोशी या दौरे का अनुभव भी हो सकता है, जबकि कुछ मामलों में पेट में द्रव का संचय भी हो सकता है।

यदि किसी मालिक को अपनी बिल्ली में उपरोक्त लक्षण दिखाई देते हैं तो ऐसे में उसे तत्काल चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता है।

बिल्लियों में हार्टवर्म इंफेक्शन का निदान करना कुत्तों की तुलना में कठिन होता है, क्योंकि बिल्लियों में कुत्तों की तुलना में वयस्क कीटाणु होने की आशंका बहुत कम होती है। 

बिल्ली में हार्टवर्म बीमारी को निर्धारित करने में मदद करने के लिए विभिन्न परीक्षणों की आवश्यकता हो सकती है लेकिन तब भी, परिणाम निर्णायक आएं ऐसा जरूरी नहीं होता है।

सामान्य तौर पर, बिल्लियों के लिए एंटीजन और एंटीबॉडी टेस्ट दोनों करवाने की सलाह दी जाती है, ताकि हार्टवर्म की उपस्थिति का पता लगाया जा सके।

पशुचिकित्सक हार्टवर्म इंफेक्शन का पता लगाने के लिए एक्स-रे या अल्ट्रासाउंड भी कर सकते हैं।

हार्टवर्म के लिए रोकथाम बहुत जरूरी कदम है, क्योंकि बिल्लियों में हार्टवर्म संक्रमण के लिए कोई मान्यताप्राप्त उपचार नहीं है।

ठंडे क्षेत्रों में रहने वाली बिल्लियां, जहां मच्छर साल के कुछ निश्चित समय में ही प्रभावित करते हैं, वहां हार्टवर्म से बचाव के लिए हर माह (जितने माह मच्छरों का खतरा रहता है) एक डोज लेने की जरूरत पड़ती है।

यह जरूरी है कि बिल्ली को पशुचिकित्सक के निर्देशों के अनुसार हर महीने खुराक दी जानी चाहिए। यह दवाइयों, टैबलेट और लिक्विड दोनों रूप में उपलब्ध है।

यदि संक्रमित मच्छर बिल्ली को काटता है तो यह निवारक होने वाले संक्रमण को होने से रोकता है।

फेरट्स् नेवले की प्रजाति का एक जानवर है। यह घर के अंदर रहने वाले जानवरों में से एक हैं। बावजूद इसके इन जानवरों को भी हार्टवॉर्म इंफेक्शन का खतरा होता है। फेरेट्स के मामले में हार्टवर्म के विकसित होने की दर तेजी से बढ़ रही है। यहां तक कि फेरेट्स में एक कीड़ा भी गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है।

संकेत और लक्षण

फेरट्स में हार्टवर्म डिसीज होने पर उनमें एक्टिविटी लेवल में कमी, खांसी, सांस लेने में परेशानी और कमजोरी की समस्या हो सकती है। गंभीर मामलों में हार्ट फेलियर भी हो सकता है।

निदान

एक पशुचिकित्सक छाती का एक्स-रे और हार्ट अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह देते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आपके पालतू जानवर में हार्टवर्म डिसीज है अथवा नहीं।

उपचार

दुर्भाग्य से, फेरेट्स में हार्टवर्म रोग को ठीक करने के लिए कोई विशिष्ट दवा नहीं है। हालांकि, लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए दवाइयां दी जा सकती हैं।

रोकथाम

फेरेट्स में हार्टवर्म को रोकने के लिए इमिडाक्लोप्रिड और मोक्सीडैक्टिन युक्त दवा दी जा सकती है। यह एक सामयिक समाधान है जिसे हर माह फेरेट्स के त्वचा पर लगाए जाने की जरूरत होती है। इमिडाक्लोप्रिड प्लस मोक्सीडैक्टिन हार्टवर्म डिसीज से बचाने में सक्षम है, यह पिस्सू, राउंडवॉर्म, हुकवर्म और व्हिपवर्म के इलाज में भी मददगार है।

(और पढ़ें - कुत्तों में पिस्सू)

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